*ज़रा सम्भल कर ........



  बेटा :- अपनी मां से ,मां अभी चार दिन पहले ही मैंने अपने मित्र के घर जाकर ,उसका पालतू तोता जो पिंजरे में कैद था ,पिंजरा खोलकर खुले आकाश में उड़वा दिया था। 

मां जब आप छोटे थे ,तभी भी क्या कुछ ऐसा हुआ था ,की आप लोगों को घरों में कैद होकर बैठना पड़ा था , मां बेटे से नहीं बेटा हमारे जीवन काल में ऐसा कभी नहीं हुआ बेटा ।

बेटा :- मनुष्य पहले तो घर से निकला था दो रोटी कमाने के लिए ,लेकिन चलते - चलते भागने लगा ,फिर एक समय ऐसा आया मनुष्य भागते -भागते एक दूसरे की जान को परवाह किए बिना एक दूसरे को धक्के देकर एक दूसरे को चोट पहुंचाने लगा ।
  
 फिर समय बीतने के साथ -साथ मनुष्य स्वयं को धरती का भगवान समझने लगा ।
आसमान में उड़ने लगा ,अंतरिक्ष की यात्रा चांद की सतह तक भी पहुंच गया मनुष्य ।
यूं तो कोई विचित्र बात नहीं थी यह ,क्योंकि मनुष्य धरती पर सबसे बुद्धिमान प्राणी है ,वास्तव में यह धरती मनुष्यो के लिए ही है ,प्रकृति में हम मनुष्यों के पालन - पोषण आधि -व्याधियों की समस्त व्यवस्था है ।
उस पर भी मनुष्य दिमाग़ ने जीव - जंतुओं पर शोध करने आरम्भ कर दिए ,पशुओं को जंतुओं का भोजन करने लगा ।
 किसी प्राणी का भक्षण के उसे अपना भोजन बनाना कितना बड़ा अपराध है,मनुष्य ना जाने क्या-क्या अपराध करने लगा ।
 कई लोगों ने तो ऐसे जीवों पर शोध कर डाला ,जो स्वयं ही मनुष्यों के प्राणों के लिए घातक हथियार बन गए । 
 बेटा यह जो समय हम देख रहे हैं ना की आज मनुष्य घरों में कैद है और ,वो जहरीले जीव धरती पर एक व्याधि बनकर फैल गए हैं।
 सुनो बेटा, आवयश्कता से अधिक छेड़खानी भी मनुष्यों को आफत में डाल देती है।
 जो जानवर जंगलों में कैद रहते थे वो जानवर आज सड़कों पर आजाद घूम रहे हैं ,और हम मनुष्य घरों में कैद हैं।
 मां क्या हम कभी घर से बाहर निकल पाएंगे ।
मां अपने बेटे के सिर पर हाथ फेरते हुए बेटा ,सब ठीक हो जाएगा ,कुछ अच्छी शक्तियां हैं इस धरती पर जो उस दिव्य शक्ति से प्रार्थना कर इन व्याधियों को अंत करने में जरूर कामयाब होंगे ।
 बेटा मैं तुम्हें यही नसीहत देना चाहूंगी ,की तरह जिन्दगी में कभी भी किसी भी चीज का आवयश्कता से अधिक शोध और दुरुपयोग नहीं करना ।
बेटा प्रकृति यह धरती हम मनुष्यों के लिए ही है परमात्मा ने यह धरती हम मनुष्यो को रहने के लिए दी है, इसे संवारना इसे सुधारना हमारा कर्तव्य है ।
मनुष्य च

1 टिप्पणी:

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...