*ए चाॅद*

*ए चाॅंद*
कुछ तो विषेश है तुममें 
जिसने देखा अपना रब देखा तुममें  
ए चाॅद तुम तो एक हो 
तुम्हें चाहने वालों ने जाने क्यों 
अलग-अलग किया खुद को 
ए चाॅद तुम किस-किस के हो 
जिसने देखा जिधर से देखा 
तुमको अपना मान लिया 
नज़र भर के देखा, तुमने ना 
कोई भेदभाव किया समस्त 
संसार को अपना दीदार दिया तुमने 
संसार में सभी को नज़र आते हो  
पूर्णिमा का चांद हो 
सुहागन का वरदान
यश कीर्ति सम्मान हो 
करवाचौथ का अभिमान
भाईदूज का चांद हो 
ईद का पैगाम हो 
सौन्दर्य की उपमा हो 
चाहने वालों का सपना हो 
ए चाॅद तुम हर इंसान के हो 
हिन्दुओं के भी हो मुस्लिमों के भी हो 
ए चाॅद तुम जो भी हो विषेषताओं का भण्डार हो 
किसी के भी सपनों का आधार हो ।


मैं चाहूं चांद पर अपना आशियाना बनाऊं
खूबसूरत परियों की दुनियां में आऊं-जाऊं 
एक जादू की छड़ी ले आऊं ,उसे घूमाऊं 
सबके सपने सच कर जाऊं परस्पर प्रेम 
की पौध लगाऊं,ईर्ष्या,द्वेष,की कंटीली झाड़ियां 
काट गिराऊं , सबको ज्ञान का पाठ पढाऊं
ऊंची सोच की राह दिखाऊं,आगे बढ़ने को प्रेरित 
करती जाऊं , जातिवाद का भेद मिटाऊं 
इंसानियत के रंग में सबको रंगती जाऊं ।।





रास्ते

 रास्ते भी क्या खूब हैं निकल पड़ो 

चल पड़ो मंजिलों की तलाश में 

किसी सफर पर रास्ते बनते जाते हैं 

रास्ते चलना सिखाते हैं,गिरना-समभलना 

फिर उठ कर चलना मंजिलों के साक्षी 

 खट्टे-मीठे तजुर्बों के साथी रास्ते 

किनारे पर लगे वृक्षों की ठंडी छांव में 

थकान पर आराम की झपकी का सुखद एहसास 

मंजिल पर पहुंच जाने के बाद रास्ते बहुत 

याद आते हैं, रास्ते हसाते है , गुदगुदाते हैं

वास्तव में रास्ते ही तो जीवन के सच्चे साथी 

होते हैं ,जीवन के सफर में रास्तों पर चलना होगा 

रास्तों को सुगमय तो बनाना ही होगा 

रास्ते ही जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं 

सुख -दुख का किस्सा हैं ।

इंसान होना भी कहां आसान है

 इंसान होना भी कहां आसान है    

कभी अपने कभी अपनों‌ के लिए 

रहता परेशान है मन‌ में भावनाओं ‌‌‌‌‌का  

उठता तूफान‌ है कशमकश रहती सुबह-शाम है

बदनाम होताा‌‌ इंसान है, इच्छाओं का सारा काम है 

कभी हंसता कभी रोता कभी गिरता,कभी सम्भलता

इच्छाओं का पिटारा कभी खत्म नहीं होता 

दिल में भावनाओं का रसायन मचाता कोहराम है 

सपनों के महल बनाता सुबह-शाम है 

बुद्धि विवेक से चमत्कारों से भी किया अजूबा काम है 

चांद पर आशियाना बनाने को बेताब विचित्र परिस्थितियों 

में भी भी मुस्कराता मनुष्य नादान है ......

अरे पगले ! पहले धरती पर जीवन जीना तो सीख ले 

धरती तुम मनुष्यों के ही नाम है,धरती पर जन्नत बनाना 

तेरा ही तो काम है जो मिला है उसे संवार ले 

प्रकृति का उपकार है ,जीना तब साकार है 

जब प्रत्येक प्राणी संतुष्ट मुस्कुराता निभाता सेवा धर्म का काम है ।



नज़र लूं उतार

पलक नहीं झपकती जी चाहता है 
निरंतर होता रहे सुन्दर प्रकृति का दीदार 
आरती का थाल लाओ नजर लूं उतार 
प्रकृति क्या खूब किया है तुमने
वसुन्धरा का श्रृंगार ....
 अतुलनीय, अद्वितीय 
तुम तो अद्भुत चित्रकार सुन्दर रंग-बिरंगे 
पुष्पों का संसार ,  सौन्दर्यकरण संग वातावरण को
 सुगन्धित करने का भी सम्पूर्ण प्रयास 
मदमस्त आकर्षक तितलियों 
का इठलाना झट से उड़ जाना क्या खूब 
प्रकृति का श्रृंगार वृक्षों की कतार 
प्राण वायु देते वृक्षों का उपकार
सत्य तो यह हुआ की प्रकृति में  निहित  
प्राणियों के प्राणों की आस यह सत्य है 
मत कर प्राणी प्रकृति से खिलवाड़ 
स्वयं का ही जीवन ना बिगाड़ 
प्रकृति का करो संरक्षण , वृक्षों की लगा कतार 
प्रकृति की सेवा कर तुम 
 स्वयं पर ही करोगे उपकार 
 
 
रंग -बिरंगे पुष्पों की कतार 
सौन्दर्यकरण संग वातावरण को
 सुगन्धित करने काभी सम्पूर्ण प्रयास 

कारवां

चंद वर्षों का आवागमन है ज़िन्दगी  

गिनती तो नहीं, सांसों की टिक-टिक 

पर टिकी है ज़िन्दगी जीने के लिए 

कर्मों के बीज बोते हैं सहयोगी 

साथी बनते चले जाते हैं और एक 

बाद एक कारवां जुड़ता चला जाता है

हंसती- मुस्कुराती बिंदास सी जिन्दगी को 

समेटे सुख -दुख के पल बांट लेते हैं साथी

मुश्किलों में एक दूजे के संग चलते हैं साथी 

एकजुटता से दुविधाओं का सैलाब 

भी पार कर लेते हैं साथी भागती -दौडती जिन्दगी में 

खुशियों की कूंजी लिए फिरते हैं साथी 

कारवें का कोई साथी जब बिछड़ जाता है 

वक्त ठहर जाता है सहम जाता है 

उदासी का कोहरा दर्द का पहरा 

रिक्त हो जाता है एक हिस्सा कारवे का‌ 

रिक्तता धीमे-धीमे वक्त का मरहम भरता जाता है 

और कारवां चलता चलता जाता है 

वक्त का पहिया अपना काम करते जाता है ।







 अनहोनी के कारण 

ठहर जाता है ,सहम जाता है 







वक्त का सिलसिला

वक्त है कोई भी हो बीत ही जाता है 
और यह भी सत्य है गया वक्त लौट 
कर नहीं आता ।
वक्त करवट बदलता है 
तभी तो दिन और रात का सिलसिला 
चलता है ।
मनुष्य को वक्त के हिसाब से ढलना पड़ता है 
और चलना पड़ता है , नहीं तो वक्त स्वयं सिखा 
देता है ।
वक्त रहते वक्त की कद्र कर लो मेरे अपनों 
वक्त अपने ‌‌‌‌‌ना होने का एहसास खुद कराता है 
वक्त हंसाता है रुलाता है डराता है गुदगुदाता भी है  
वक्त  रहते वक्त पर कुछ काम कर लेने चाहिए 
सही वक्त निकल‌ जाने पर काम का अर्थ ही बदल 
जाता है ।
व्यर्थ ना करो वक्त को, वरना वक्त अपना 
अर्थ स्वयं बताता है ।
वक्त तो वक्त है सही वक्त पर किया गया कार्य
वक्त की लकीरों पर अपना नाम सदा -सदा के 
लिए अमर कर अंकित कर जाता है ।



उद्देश्य मेरा सेवा का पौधारोपण



उद्देश्य मेरा निस्वार्थ प्रेम का पौधारोपण 

अपनत्व का गुण मेरे स्वभाव में 

शायद इसी लिए नहीं रहता अभाव में 

 सर्वप्रथम खड़ा हूं पंक्ति में 

समाज हित की पौध लिए

श्रद्धा के पुष्प लिए भावों की 

ज्योत जलाएं चाहूं फैले च हूं और 

उजियारा निस्वार्थ दया धर्म

का बहता  दरिया हूं बहता हूं निरंतर 

आगे की ओर बढ़ता सदा निर्मलता 

का संदेश देता भेदभाव का सम्पूर्ण 

मल किनारे लगाता सर्व जन 

हित में उपयोग होता सर्वप्रथम खड़ा हूं पंक्ति में 

निर्मलता का गागर भरता ।







आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...