*जीने की कला *

जिन्दगी के सफ़र में हैं
कर्मों के बीजों से अपनी फसल
तैयार कर रहे हैं ।
ज्यादा सम्भल कर ,
बेहतरीन सोच कर
धरती एक सराय है
कर्मों का कारवां तैयार
किया है स्वयं को समर्पित
कर खुशियों के बहाने ढूढ़ कर
खुशियां रोप रहे हैं
जिन्दगी के सफ़र में जीविका
की दौड़ में बेहतरीन कर गुजरने को
स्वयं से और हालातों से सामंजस्य
बना कर अपने अस्तित्व में नए रंग
भर रहे हैं ,अपने व्यक्तित्व को निखार
रहे है,किन्तु ऐसा कदापि नहीं की हम
बदल रहे हैं ,हम जीने के हुनर बांट रहे हैं
यूं ना कहो की हम बदल रहे हैं
वक़्त अनुसार अपने किरदार में ढल रहे हैं
जीवन जीने की कला में में निपुण हो रहे हैं ।

*धरा के भगवान*


धरती पर मनुष्यों के भगवान
कैसे कह दूं उन्हें मात्र इंसान
कहते हैं जिन्हें धरा के भगवान
या कहें फ़रिश्ते ए आसमान
जीव विज्ञान का अद्भुत ज्ञान
कठिन साधना का परिणाम
जीवन एक तपस्या जिनकी
दूर करने को प्रतिबद्ध शारीरिक एवं
मानसिक समस्या असाध्य रोंगों से घिरा
इंसान ढूंढ़ता है एक चिकत्सक के रूप में भगवान
 जब खतरे में होती है मनुष्य जीवन के प्राण
जीवन और मृत्यु की जंग में बनकर रक्षा प्रेहरी
करते हैं समस्त प्रयास और देते हैं जीवन दान
हमें गर्व है  आप सब चिकित्सकों पर, महान योद्धा ओं पर महामारी के संकटकाल में जब सभी जन अपने -अपने घरों में बैठे होते हैं, आप सभी स्वास्थ्य योद्धा, डटे हुए रहते हैं स्वास्थ्य लाभ देते हैं अपनी जान जोखिम में डालकर ।
 नमन है,नतमस्तक हैं, महामारी में बनकर योद्धा
सरहद पर तैनात सिपाही करता है
दुश्मनों से देश की रक्षा
वहीं धरती पर दूसरे योद्धा जो
जो सदैव तैयार रहते हैं करने को दूर
शारीरिक समस्या दिलाते हैं असहनिय दर्द से
मुक्ति ,पास इनके होती है निष्ठा और कठीन
साधना की शक्ति
धरती पर परमात्मा की सौगात
दिव्य जीवन का आशीर्वाद,स्वस्थ जीवन
जीने का देते हैं महादान ।

जिन्दगी इतनी भी सस्ती नहीं


आता है मुझे दुविधाओं से लड़ना
आता है अपनी ख्वाहिशों पर कुर्बान होना
आता है इंतजार करना।

जिन्दगी मेरी इतनी सस्ती भी नहीं
करूं मैं आत्महत्या ,जिन्दगी मेरी अपनी है
किसी और की नहीं है।
कई लाख योनियों के उपरांत मनुष्य
जीवन पाया है ।

नहीं जाने दूंगी जीवन को जाया मैं
माना की आज मेरी किस्मत से दुश्मनी है
मेरी जिन्दगी दौराहे पर खड़ी है।
यह बात भी ना कम बड़ी है
उम्मीद की डोर मैंने भी आखिरी दम
तक पकड़ी है ।

मेरे भाग्य की मुझसे जिद्द बड़ी है उसे मुझे हराने की
और मुझे उससे जीतने की जिद्द बड़ी है ।
मेरे अकेले पन का हमराही मेरा दर्द ही सही
मेरा हमदर्द भी वही है ।

मैंने जिन्दगी के हर दौर से समझौते की
सीखी कारीगरी है
उसकी और मेरी जिद्द में अब समझौते की घड़ी आ गई है ।





* संकल्प शक्ति की सार्थकता*

मैं भारत माता गौरवान्वित
हो जाती हूं अपने वीर जवानों
की संकल्प शक्ति पर
सार्थकता तब ही
सिद्ध होती है जब
उसमें सत्यता निस्वार्थ
प्रेम, निश्चलता और शांति
का समावेश होता है
सहन शक्ति में छिपी
अदृश्य शक्ति अद्वितीय होती है
हां मैं शांति प्रिय हूं
हां किसी को आहत
करने में विश्वास में
मेरा विश्वास नहीं
हां मैं किसी पर
आक्रमण करने की
पहल नहीं करती
और सदा सर्वदा
शांति और सद्भावना
को अपने स्वभाव में
संजोकर रखता हूं ।
किसी अन्य की सम्पत्ति,
वस्तु,जायदाद को मैं कभी
छीनना मेरा स्वभाव नहीं
किन्तु जब कोई मेरे अपनों की
भी वस्तु पर नजर रखता है
या छीनने का प्रयास करता है उसे
सबक सीखना मुझे खूब आता है
मैं भारत माता हूं ,मुझे गर्व है मेरे वीरों पर
जो मेरी रक्षा के लिए शून्य डिग्री के तापमान
में तैनात रहकर मेरे लिए अपने प्राणों को
दांव पर लगाना अपनी शान समझते हैं
और शहीद होना उनके लिए गौरव होता है।




आत्मबल का धन सदा ही संग रखना

ऐ मानव तुम कभी मत टूटना
आत्मबल का धन सदा ही अपने संग रखना
आत्मसंयम की निधि भी संग तुम्हारे
धैर्य के खजाने की कूजी
विश्वास की शक्ति भी संग तुम्हारे
सशक्त शक्तियों के दिव्य खजाने भी तुममें निहित
ऐ मानव तुम मत टूटना
तुम मत बिखरना
जीवन की कसौटी पर खरे उतरना तुम्हें है
किसी भी विप्पत्ति में कमजोर मत होना
तुममें निहित आत्म ज्योत जलाकर
साकारात्मक सोच को सदा ही अपने संग रखना
नकारात्मकता की कई दुविधाएं तुम्हें आजमाएगी
परीक्षाओं में तुम्हें है खरे उतरना
तुम मत हारना विपत्तियों में हौसलों को सदा ही संग रखना ,संयम संग धैर्य की डोर को तुम थामें रखना
जिन्दगी में परीक्षाओं के दौर से मत हारना
तुम हो दिव्य तेज़ का पुंज
सकरारात्मक प्रकाश का उजाला
अपनी शक्तियों को सदा ही संग रखना
धैर्य संग स्वयं में विश्वास को सदा ही जीवित रखना
ऐ मानव तुम मत टूटना
आत्मबल का धन सदा ही संग रखना ।
क्रमांक  - सभी व्यंजन (बिना स्वर केएक मात्रिक होते हैं
जैसे -  ... आदि  मात्रिक हैं ।
क्रमांक  -  स्वर  अनुस्वर चन्द्रबिंदी तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन एक मात्रिक होते हैं ।
जैसे - किसिपुसु हँ  आदि एक मात्रिक हैं ।
क्रमांक  -      अं स्वर तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन दो मात्रिक होते हैं
जैसे -सोपाजूसीनेपैसौसं आदि  मात्रिक हैं ।
क्रमांक . () - यदि किसी शब्द में दो ’एक मात्रिक’ व्यंजन हैं तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक अर्थात दीर्घ बन जाते हैं जैसे ह१+म१ = हम =   ऐसे दो मात्रिक शाश्वत दीर्घ होते हैं जिनको जरूरत के अनुसार ११ अथवा  नहीं किया जा सकता है ।
जैसे -समदमचलघरपलकल आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं ।
. (परन्तु जिस शब्द के उच्चारण में दोनो अक्षर अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ दोनों लघु हमेशा अलग अलग अर्थात ११ गिना जायेगा ।
जैसे - असमय = //मय =  अ१ स१ मय२ = ११२    
क्रमांक  (किसी लघु मात्रिक के पहले या बाद में कोई शुद्ध व्यंजन हो तो उच्चारण अनुसार दोनों लघु मिल कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है।
उदाहरण - “तुम” शब्द में “’’” ’“’” के साथ जुड कर ’“तु’” होता है “तु” एक मात्रिक है और “तुम” शब्द में “” भी एक मात्रिक है और बोलते समय “तु+म” को एक साथ बोलते हैं तो ये दोनों जुड कर शाश्वत दीर्घ बन जाते हैं इसे ११ नहीं गिना जा सकता ।
इसके और उदाहरण देखें - यदिकपिकुछरुक आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं ।
  (परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दोनो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही अर्थात ११ गिना जायेगा
जैसे द-  सुमधुर = सु /धुर = +उ१ म१ धुर२ = ११२  
क्रमांक  () - यदि किसी शब्द में अगल बगल के दोनो व्यंजन किन्हीं स्वर के साथ जुड कर लघु ही रहते हैंतो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है इसे ११ नहीं गिना जा सकता ।
जैसे - पुरु = + / र+उ = पुरु = ,  
इसके और उदाहरण देखें = गिरि
 (परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही गिना जायेगा-
जैसे -  सुविचार = सुवि / चा /  = +उ१ व+इ१ चा२ र१ = ११२१
क्रमांक  () - ग़ज़ल के मात्रा गणना में अर्ध व्यंजन को  मात्रा माना गया है तथा यदि शब्द में उच्चारण अनुसार पहले अथवा बाद के व्यंजन के साथ जुड जाता है और जिससे जुड़ता है वो व्यंजन यदि  मात्रिक है तो वह  मात्रिक हो जाता है और यदि दो मात्रिक है तो जुडने के बाद भी  मात्रिक ही रहता है ऐसे  मात्रिक को ११ नहीं गिना जा सकता है
उदाहरण -
सच्चा = स१+च्१ / च१+आ१  = सच्  चा  = २२
(अतः सच्चा को ११२ नहीं गिना जा सकता है)
आनन्द =  / +न् /  = आ२ नन्२ द१ = २२१  
कार्य = का+र् /  = र्का     = २१  (कार्य में का पहले से दो मात्रिक है तथा आधा  के जुडने पर भी दो मात्रिक ही रहता है)
तुम्हारा = तुम्हारा = तु१ म्हा२ रा२ = १२२
तुम्हें = तु / म्हें = तु१ म्हें२ = १२
उन्हें =  / न्हें = उ१ न्हें२ = १२
 (अपवाद स्वरूप अर्ध व्यंजन के इस नियम में अर्ध  व्यंजन के साथ एक अपवाद यह है कि यदि अर्ध  के पहले या बाद में कोई एक मात्रिक अक्षर होता है तब तो यह उच्चारण के अनुसार बगल के शब्द के साथ जुड जाता है परन्तु यदि अर्ध  के दोनों ओर पहले से दीर्घ मात्रिक अक्षर होते हैं तो कुछ शब्दों में अर्ध  को स्वतंत्र एक मात्रिक भी माना लिया जाता है
जैसे = रस्ता = र+स् / ता २२ होता है मगर रास्ता = रा/स्/ता = २१२ होता है
दोस्त = दो+स् /२१ होता है मगर दोस्ती = दो/स्/ती = २१२ होता है
इस प्रकार और शब्द देखें
सस्ता = २२दोस्तों = २१२मस्ताना = २२२मुस्कान = २२१संस्कार२१२१    
क्रमांक . () - संयुक्ताक्षर जैसे = क्षत्रज्ञ द्ध द्व आदि दो व्यंजन के योग से बने होने के कारण दीर्घ मात्रिक हैं परन्तु मात्र गणना में खुद लघु हो कर अपने पहले के लघु व्यंजन को दीर्घ कर देते है अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी स्वयं लघु हो जाते हैं  
उदाहरण = पत्र२१वक्र = २१यक्ष = २१कक्ष - २१यज्ञ = २१शुद्ध =२१ क्रुद्ध =२१
गोत्र = २१मूत्र = २१,
. (यदि संयुक्ताक्षर से शब्द प्रारंभ हो तो संयुक्ताक्षर लघु हो जाते हैं
उदाहरण = त्रिशूल = १२१क्रमांक = १२१क्षितिज = १२
. (संयुक्ताक्षर जब दीर्घ स्वर युक्त होते हैं तो अपने पहले के व्यंजन को दीर्घ करते हुए स्वयं भी दीर्घ रहते हैं अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी दीर्घ स्वर युक्त संयुक्ताक्षर दीर्घ मात्रिक गिने जाते हैं
उदाहरण -प्रज्ञा = २२  राजाज्ञा = २२२,
 (उच्चारण अनुसार मात्रा गणना के कारण कुछ शब्द इस नियम के अपवाद भी है -
उदाहरण = अनुक्रमांक = अनु/क्र/मां/ = २१२१ (’नु’ अक्षर लघु होते हुए भी ’क्र’ के योग से दीर्घ नहीं हुआ और उच्चारण अनुसार  के साथ जुड कर दीर्घ हो गया और क्र लघु हो गया)      क्रमांक  - विसर्ग युक्त व्यंजन दीर्ध मात्रिक होते हैं ऐसे व्यंजन को  मात्रिक नहीं गिना जा सकता ।
उदाहरण = दुःख = २१ होता है इसे दीर्घ (नहीं गिन सकते यदि हमें  मात्रा में इसका प्रयोग करना है तो इसके तद्भव रूप में ’दुख’ लिखना चाहिए इस प्रकार यह दीर्घ मात्रिक हो जायेगा ।
मात्रा गणना के लिए अन्य शब्द देखें -
तिरंगा = ति + रं + गा =  ति  रं  गा  = १२२    
उधर = /धर उ१ धर२ = १२
ऊपर = /पर =   पर  = २२    
इस तरह अन्य शब्द की मात्राओं पर ध्यान दें =
मारा = मा / रा  = मा  रा  = २२
मरा  =  / रा  =   रा  = १२
मर = मर  = 
सत्य = सत् /  = सत्    = २१

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...