*जीने की कला *

जिन्दगी के सफ़र में हैं
कर्मों के बीजों से अपनी फसल
तैयार कर रहे हैं ।
ज्यादा सम्भल कर ,
बेहतरीन सोच कर
धरती एक सराय है
कर्मों का कारवां तैयार
किया है स्वयं को समर्पित
कर खुशियों के बहाने ढूढ़ कर
खुशियां रोप रहे हैं
जिन्दगी के सफ़र में जीविका
की दौड़ में बेहतरीन कर गुजरने को
स्वयं से और हालातों से सामंजस्य
बना कर अपने अस्तित्व में नए रंग
भर रहे हैं ,अपने व्यक्तित्व को निखार
रहे है,किन्तु ऐसा कदापि नहीं की हम
बदल रहे हैं ,हम जीने के हुनर बांट रहे हैं
यूं ना कहो की हम बदल रहे हैं
वक़्त अनुसार अपने किरदार में ढल रहे हैं
जीवन जीने की कला में में निपुण हो रहे हैं ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचना ऋतू जी ,
    हम सब किरदार ही तो हैं जो जीवन के रंगमंच पर अपनी प्रस्तुतियां दे रहे हैं ...

    सादर

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