** विचारों की खेती**

 
 *****आजकल मैं विचारों की खेती करता हूँ ।
 शब्दों के बीज बोते रहता हूँ ।

 कई क्यारियाँ बन गयी हैं 💐
 उनमे अब फ़सल लहलहाने लगी है ।💐💐

किसी क्यारी में ,कविताएं हैं ,किसी मैं कहानियाँ ,
किसी मे गज़ल ,किसी में कोई लेख, आदि हैं।

बाग हरा-भरा हो गया है ,कभी कविता गुनगुनाती है ,
कभी कोई कहानी मुस्कराती है ।

जिन्दगी बड़ी शान से बीत रही है ।
किसी का मनोरंजन हो रहा है
किसी को प्रेरणा मिल रही है ।

किसी की उदासीनता दूर हो रही है
मैं खुश हूँ, मेरे विचारों की खेती फल-फूल रही है ।।


"*वसुन्धरा**

वसुन्धरा**
जिस धरती पर मैंने जन्म लिया ,
उस धरा पर मेरा छोटा सा घर
मेरे सपनों से बड़ा ।।
बड़े -बड़े अविष्कारों की साक्षी वसुन्धरा
ओद्योगिक व्यवसायों से पनपती वसुन्धरा ।

पुकार रही है वसुन्धरा
,कराह रही है वसुन्धरा ।

देखो तुमने ये मेरा क्या हाल किया
मेरा प्राकृतिक सौन्दर्य ही बिगाड़ दिया ।

हवाओं में तुमने ज़हर भरा
में थर-थर कॉप रही हूँ वसुन्धरा
अपने ही विनाश को तुमने मेरे

दामन में फौलाद भरा
तू भूल गया है ,ऐ मानव

मैंने तुझे रहने को दी थी धरा ।
तू कर रहा है मेरे साथ जुल्म बड़ा

मेरे सीने में दौड़ा -दौड़ा कर पहिया
मेरा आँचल छलनी किया ।

मै हूँ तुम्हारी वसुन्धरा
मेरा जीवन फिर से कर दो हरा -भरा

उन्नत्ति के नाम पर धरा पर है प्रदूषण भरा
जरा सम्भल कर ऐ मानव प्राकृतिक साधनों का तू कर उपयोग जरा
तुमने ही मेरा धरती माता नाम धरा
ये तुम्हारी ही माँ की आवाज है ,सुन तो जरा ।।

* धरती पर स्वर्ग जैसा है *ऋषिकेश*


      *ऋषिकेश* यह वास्तव में देवों की धरती है
       गौ मुख से प्रवाहित ,गंगोत्री जिसका धाम ,
       अमृतमयी ,निर्मल गँगा माता को मेरा शत-शत
             प्रणाम *

        
 *  देवों की भूमि है,अमृतमयी गँगा की अमृत धारा है *
       " ये जो शहर हमारा है "
  * इसका बड़ा ही रमणीय नज़ारा है ,
 *  हिमालय की पहाड़ियों का रक्षा कवच है ,*
  *  नीलकण्ठ महादेव का वास है 
   
   * बदरीनाथ, केदारनाथ,का आशीर्वाद है,*
      लक्ष्मण झूला का भी प्रमाण है।
   * मन्दिरों में गूँजते शंखनाद हैं ।

    महात्माओं के मुख से सुनते सत्संग का प्रसाद है ।
    निर्मल,शान्त,अध्यात्म से परिपूर्ण सत्संगी वायुमंडल सारा है
   
   वास्तव में प्रकर्ति,और परमात्मा ने इसे खूब सवांरा  है
    अद्भुत अतुलनीय ,स्वर्गमयी ये *ऋषिकेश*शहर हमारा है।।
    
    

**सुप्रभात**

सुप्रभात **
********
💐वन्दन परमात्मा ,💐
एक और नयी सुबह
नयी-नयी अभिलाषाएं
नव निर्माण को एक और क़दम
नयी पीढ़ी की नयी सोच संग ,
नव सपनों को सच करने की
नयी तरंग ,नया ढँग है ,नयी उमंग
नये इरादे, नयी सीढ़ियाँ ,
नयी दुनियाँ की ,नयी इबारत लिखने को
नयी पीढ़ी के नये क़दम
इस नयी पीढ़ी को ,
नव नूतन समाज की,
बुनियाद रखने को दो
परमात्मा तुम अपने आशीर्वाद
का संग, जीवन की सरगम
फले-फूले नव -नूतन समाज
चाहे नया रूप हो,नया-नया ढँग
सज्जनता संग , प्रग्रति के पथ पर
अग्रसर उन्नति की ऊंचाइयाँ ,छुये
मेरे देश का जन-जन ,
समृद्धि से परिपूर्ण हो मेरे देश
का कण-कण ।

**स्वास्थ्य धन**


 * स्वास्थ्य यानी तन-और मन दोनों की सुदृणता *
जहाँ *शारीरिक स्वास्थ्य के लिये पौष्टिक आहार ,व्यायाम ,योगा लाभदायक है।
वैसे ही मन की स्वस्तथा के लिये मैडिटेशन,योगा ,साथ ही साथ विचारों की सकारात्मकता क्योंकि* ज़िंदगी की दौड़ में अगर जीत है तो हार भी है* मुश्किलें भी हैं ,बस हमें अपनी हार और नाकामयाबी से निराश नही होना है ,ये नही तो दूसरा रास्ता अपनाये अपने मन की सुनिए ।

    *हमारे विचार बहते हुए पानी की तरह हैं, और पानी का काम है बहते रहना रुके हुए पानी मे से दुर्गन्ध आने लगती है ।*
 *  जहाँ तन का स्वस्थ होना आवयशक है वहीं मन मस्तिष्क का स्वस्थ होना भी अनिवार्य है *
आज की भागती दौड़ती जिन्दगी में हम मन के स्वास्थ्य पर बिल्कुल भी ध्यान ही नही देते मतलब कामयाबी की सीढ़ियाँ चढ़ते- चढ़ते हम मनुष्य अपने दिमाग़ पर एक बोझ बना लेते हैं, बोझा कामयबी और काम के दवाब का ;

कामयाबी तो मिलती है धन भी बहुत कमाते हैं ,परन्तु अपना सबसे बड़ा धन अपना स्वास्थ्य बिगाड़ देते हैं, किस काम की ऐसी कामयाबी और दौलत जिसका हम सही ढंग से उपयोग भी न कर सकें।
दुनियाँ का सबसे बड़ा धन क्या है ।आम जन तो यही कहेंगे रुपया, पैसा, धन-,दौलत गाड़ी, बंगला ,और बैंक बैलेंस
   परन्तु मुझे अपने एक मित्र की बात हमेशा याद रहती है जो       हर -पल परमात्मा से कहती है, कि मेरा स्वास्थ्य ठीक रखना, कभी-कभी मन मे सवाल उठता की कैसी है यह , हम तो भगवान से इतना सब कुछ मांगते है सुख -शांति, धन-दौलत वगैरा-वगैरा और ये सिर्फ मेरा स्वास्थ्य ठीक रहे ,जब मैंने उससे पूछा तुझे और कुछ नही चाहिये भगवान से बस स्वास्थ्य,इस पर मेरी मित्र मुस्करा के बोली हाँ ,यार सबसे बड़ा धन तो स्वास्थ्य है ,अगर स्वास्थ्य सही रहेगा तो मैं किसी भी उमर में खुद काम कर के खा लूँगी धन भी कमा लूँगी ,किसी की मोहताज़ नही होऊँगी, जब किसी बीमार को मेरी आव्यशकता होगी तो उसकी सहायता भी कर दूँगी, मुझे अपनी मित्र की सोच बहुत अच्छी लगी ।
वाकई स्वास्थ्य से बड़ा कोई धन नहीं। अगर कोई भी मनुष्य स्वस्थ है ,तो वह आजकल के युग में सबसे बड़ा धनवान है।

बिल्कुल सही रुपया पैसा भी धन ही हैं
,परन्तु इस धन से हम सुख -सुविधाओं के साधन तो खरीद सकते हैं ,यह धन हमारे जीवकोपार्जन के लिये आवयशक भी है ।       परन्तु क्या धन-दौलत से आप स्वास्थ्य खरीद सकते हैं ,आप कहेंगे हम डॉक्टर के पास जायेंगे और अपना इलाज करायेंगे ,बिल्कुल ठीक ।  परन्तु ? ऐसा भी धन क्या कमाना जो जीवन भर डॉक्टरों की फीस भरने में चला जाये ।

ये तो वही बात हुयी की* पहले धन कमाने के लिये स्वास्थ्य धन खोया फिर ,?  स्वास्थ्य धन को पाने के लिये वही  अपनी मेहनत से कमाया हुआ धन खर्च किया* ।
*कहाँ की समझदारी है ये आप ही बताइये ।
स्वस्थ तन और स्वस्थ मन दोनों ही आवयशक हैं ।
कामयाबी की सीढ़ियाँ चढ़ो ,बहुत आवयशक है स्वयं के लिए समाज और देश की प्रग्रति के लिये परन्तु ध्यान रहे कि शरीर की गाड़ी के सारे पुर्जे ठीक रहें *।

*अवसाद या डिप्रेशन *पर विशेष *


अवसाद या डिप्रेशन *पर विशेष *

  *क्या हुआ जो हम किसी के जैसे नहीं
  हम जैसे है , वैसे ही अच्छे हैं
 हमारी अपनी पहचान है ,क्यों हम
   किसी की पहचान जैसे बने

   " डिपरेशन" या "अवसाद"
  आखिर ये डिप्रेशन है क्या ?
क्या डिप्रेशन कोई बीमारी है ?
आज के युवाओं में डिप्रेशन एक महामारी के रूप में फ़ैल रहा है।
  डिप्रेशन  दीमक की तरह किसी भी इंसान  को अन्दर ही अन्दर खोखला कर देता है ।
डिप्रेशन है ,हमारी सोच ,किसी भी बात को सोचने के दो पहलू होते हैं ।
एक सकारात्मकता , और एक नकारात्मकता
 डिप्रेशन नकारात्मक सोच का बड़ा ही जहरीला रूप है ।,डिप्रेशन की अवस्था में इन्सान की सोच इतनी नकारात्मक हो जाती है ,कि वह इंसान अच्छी चीज में उलटा सोचने लगता है ,डिप्रेशन वाले व्यक्ति को लगता है जैसे उसके खिलाफ कोई साजिशें रच रहा है ,क्योंकि उसकी आँखों पर नकारात्मकता का चश्मा जो चढ़ा होता है।
कभी -कभी हमारा डिप्रेशन ,यानि हमारी नकारात्मक सोच इतना भयंकर रूप ले लेती है,कि डिप्रेशन वाला व्यक्ति स्वयं ही स्वयं का दुश्मन बन आत्महत्या तक कर लेता है ।

अवसाद की स्थिति आने ही न पायें ,इसकेलिए इस पीढ़ी को और भावी पीढ़ी को अपने जीवन जीने के तरीकों में परिवर्तन करना होगा।

1. संयुक्त परिवारों को बढ़ावा देना होगा ।
2.बड़ों का आदर, आपसी स्नेह, परस्पर प्रेम को बढ़ावा दें।
3.ये बात हमें समझनी होगी की प्रत्येक व्यक्ति की अपनी विशेष विशेषता होती है ।
4.कभी किसी की किसी से तुलना करके अपशब्द न कहें।
5.सबको अपने जैसे बनाने की कोशिश ना करो ,प्रत्येक की अपनी रूचि ,और विशिष्टता होती है ।
6.किसी को इतना ना दुत्कारें की वह निराशा के अँधेरे में घिरने लगे ।
7. अगर आपके परिवार का या आपका कोई मित्र सम्बन्धी
के बर्ताब में परिवर्तन आने लगे ,उसे किसी के साथ से अधिक अकेला पन भाने लगे,तो ऐसे व्यक्ति को ज्यादा देर अकेला न छोड़ें।
8. शान्ति प्रिय होना अच्छी बात है ,पर समाज से कट कर अपनी ही धुन में रहने वाले पर कड़ी नज़र रखें ।
9.उसके इस व्यवहार की वज़ह बड़ी उदारता से पूंछे ,और उसे सहयोग दें ,और सपनी सहानुभूति भी दें ।
10.डिप्रेशन वाले व्यक्ति को बहुत ही ज्यादा ,प्रेम की अपनेपन की और सहयोग की आव्यशकता होती है ,उसे एहसास दिलाते रहें कि वह भी एक विशिष्ट व्यक्ति है ,उसकी इस समाज में विशेष उपयोगिता है ।
11.कोई भी व्यक्ति निर्थक नहीं हर व्यक्ति के जन्म के पीछे कोई न कोई अर्थ जरूर है ।

डिप्रेशन का एक प्रमुख कारण आज के युग में, एकल परिवारों की प्रमुखता ,पहले हमारे दादा,दादी,नाना ,नानी के काल में संयुक्त परिवारों की प्रथा थी ,यह संयुक्त परिवारों में रहने की प्रथा बहुत ही अच्छी थी ।जो लोग संयुक्त परिवारों में रहते हैं, या रहते थे उन लोगों का डिप्रेशन से दूर -दूर तक कोई वास्ता नहीं है ,क्योंकि जब एक परिवार संयुक्त रूप से एक ही जगह रहता है ,तब उस परिवार में रहने वालों के दिन हँसी ख़ुशी बीतता है ,एक रूठा ,दूसरे ने मना लिया एक से गलती हुई घर के किसी सदस्य ने समझा लिया ,अपनी बात कहने के लिये एक साथ इतने रिश्ते मिल जाते है।
माना की संयुक्त परिवारों में अलग स्वभावों वाले इन्सान भी होते हैं कई बार उनसे ताल -मेल बिठाना इतना आसान नहीं होता ,पर क्या हुआ परिवार यानि एक हाथ की पांच उँगलियाँ
उनको थामने वाली हथेली ,यानि परिवार का मुखिया ,चार उँगलियाँ एक अँगूठा यानि परिवार की सदस्य सभी छोटी बड़ी उँगलियों को तालमेल बना कर रखना पड़ता है एक भी कटी हाथ बेकार,यही परिवार का भी हाल होता है तालमेल बना कर रखना पड़ता है ।

मत होना जीवन में इतना कमजोर कि, जीवन एक बोझ लगने लगे ।क्या हुआ जो आज समय हमारे विपरीत है ।
विपरीत परिस्थियों में ही रास्ते खोजने का आनन्द ही अलग  है। ।ना हारे थे ,न हारेंगे हम वो आग हैं ,जो अपनी ही आग से चूल्हा जला लेते है, पर्वतों में ही अपना आशियाना बना लेंते है।
हम आँधी, तूफानों को अपने घरोंदें बना लिया करते हैं ।
प्रेरक प्रसंग पड़े और लोगों को भी सुनायें ।हमेशा उत्साह वर्धक बातें कीजिये ।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...