*घर वास *

आग लगी है बाहर वैश्विक संक्रमण की महमारी की
कुछ दिनों के लिए इस आग से दूर हो जाओ
आग स्वत: ही बूझ जायेगी ।

रुक जाओ थोड़ा ठहर जाओ
कुछ दिन घरों के अंदर कैद हो जाओ,
बाहर वैश्विक संक्रमण महामारी का राक्षस बैठा है
जिसको छूने से ही संक्रमण फैल जाता है

तोड़ दो कुछ दिनों के लिए समाजिक संपर्क
घरों में रहकर... लड़ना है एक महायुद्ध
अपने-अपने घरों में रहकर क्योंकि इस युद्ध के
क्रम को तोड़ना है ।

बाहर बैठा संक्रमण का शत्रु अकेले रहकर
समयावधि में स्वत:ही मर जाएगा
करोना का कहर
बन फैल रहा है जहर
थोड़ा ठहर ।

इधर-उधर मत भटको
हाथों को बार-बार धोओ
स्वच्छता पर विशेष ध्यान दो
थोड़ी दूरी बनाओ
समाजिक व्यवस्थाओं से
दे स्वयं को आराम ।

लगी है एक आग
वैश्विक संक्रमण महामरी की
इस आग की चिंगारी को संग अपने
ना ले जाना ,वरना तुम अकेले नहीं
समस्त मानवजाति खतरे में पड़
जायेगी तबाह हो जाएगी ।

बहुत निभाए समाजिक सम्पर्क हमने
अब समय मिला है, किसी बहाने से ही सही
परिवार के संग परिवार को
समझने का खुशियां बांटने का उन्हें जीने का ।

*चेहरे से उदासी का पहरा हटाओ*

मेरे नयनों का लगा
मुझ पर ही पहरा
आइने में जो देखा
स्वयं का चेहरा ।

मासूम से मुखड़े पर
उदासी का पहरा
भाता नहीं हमको
उदास चेहरा।

मुस्कराहट का थोड़ा सा
चेहरे पर मल दे गुलाल
करणों में कर्णफूल तो डाल

घुंघराली लटों को
संवार
कर थोड़ा श्रृंगार
मृग नयनी इन नयनों
 में काजल तू डाल।

पैरों में पायल की खनक
तू डाल, हिरनी सी मतवाली
तेरी है चाल ।

गौरी तुम वैसे ही लगती कमाल
उस पर श्रृंगार की आदत तू डाल

तुझसे ही दुनियां में रंग बेहिसाब
उस पर तुम बातें भी करती बेमिसाल

शब्दों के मंथन से विचारों का
अमृत निकाल इस दुनियां को
दे फिर मालामाल ।
अपने औचित्य का डंका बजा
दुनियां में अपने अस्तित्व का झण्डा फहरा।






Covid 19 करोना (याद आया गुजरा जमाना)

*याद आता है वो
दादा-दादी,नाना-नानी
चाचा-चाची बुआ-फूफा
का वो गुजरा जमाना *

 *अस्वच्छ हाथ ना हमें लगाना
हाथ ,पांव मूंह ,धोकर ही घर के
अंदर आना  तद  उपरांत ही किसी चीच को
हाथ लगाना *

*समझ छुआ -छूत उनका हमनें खूब मजाक उड़ाया*
आज करोना जैसी महामारी के संकट में अपने
बड़ों का कहा याद आया *

पादुका अपनी बाहर ही उतार कर आना
नहीं किसी बाहरी संक्रमण को घर के अंदर लाना।

पंच स्नान और स्वच्छ वस्त्रों को
धारण करके ही
भजन और भोजन करना ।

 झूठे हाथ ना कहीं और लगाना
बार-बार हाथ धोकर ही आना ।

उद्देश्य एक था संक्रामक रोगों से हमें बचाना।

*सौ प्रतिशत मिलावट का सच*

सौ प्रतिशत सच का  ,
मिलावटी सच
पक्के वादों का,
मिलावटी सच

दुग्ध में जल या जल में दुग्ध
मिलावट का अदृश्य सच

कहने में,करने में होने में,
मोहब्बत में,प्यार में ,
इरादों में,वादों में
सब में लगाया जाता है
स्वार्थ का मक्खन।

रंगों का बाजार
आकर्षण का संसार
तस्वीर के रंग हजार
मुखौटे लगा चल रहा है व्यापार
मिलावट की दुनियां के चर्चे हजार
फिर भी मिलावट का ही होता करोबार ।

सौ प्रतिशत सच का ,मिलावटी सच
चेहरे पर हंसी का मिलावटी पहरा
मिलावट का सौंदर्य, नायक -नायिकाओं के
आकर्षण का केंद्र

मिलावट की दुनियां के चर्चे हजार
मिलावट का रचता बसता संसार

बस एक ही विनती है और है मेरी
कुछ मिलावट कर लो नफरत में कुछ मिलावट
कर लो प्रेम की, स्वार्थ में कुछ मिलावट कर लो
निस्वार्थ प्रेम की ,
क्यों ना कर दें अब हम सब मिलकर मिलावट का ही
का काम तमाम।










*अति उत्तम हाथ जोड़ नमस्कार करो
लेन-देन कर्म एवं भोजन पूर्व
हाथ धोकर स्वच्छ करो
*घातक संक्रमण करोना* को दूर करो ना *




**दूर रहेगा घातक करोना **

**भारतीय परम्परा का अद्भुत
परिचय हाथ जोड़ नमस्कार करें **


भोर लालिमा हरी घास पर टहले
तन को भी सूरज की किरणों से 
सहलाएं,सूरज की गर्मी से रोग -
प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाएं ।

योगाभ्यास व्यायाम दिन चर्या बनाएं
जीवन रक्षक प्राकृतिक संपदाओं को
अपनाएं ।

दैनिक कार्यों के अंतराल
स्वच्छता के नियमों को अपनाकर
स्वच्छ हाथों करें जीवन यापन करें।

प्राकृतिक सम्पदाओं का भरपूर उपयोग करें 
नीम ,गिलोय तुलसी ,एलोवीरा का 
सेवन कर कई रोगों को दूर भगाएं ।

सार्वजनिक स्थलों पर गंदगी ना मचाएं
स्वच्छता के नियम अपनाकर स्वस्थ जीवन अपनाएं

 **करोना के संक्रमण से डरोना
स्वस्थ जीवन के गुण अपनाकर
दूर रहेगा घातक करोना **


**मेरा धर्म तो इंसानियत है **

   नहीं- नहीं -नहीं , मैं नहीं करूंगा जो तुम मुझसे करवाना चाहते हो ,चाहे मैं और मेरे बच्चे भूख से मर जाएं पर हम ऐसा काम कभी नहीं करेंगे ।
 इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं और हम अपने धर्म से कभी पीछे नहीं हटेंगे।
   अब्बा जान जरा दिमाग़ लगा कर सोचो ,सरकार ने नागरिकता बिल पास कराया है ,और सरकार का कहना है की सभी को नागरिकता लेनी पड़ेगी .....
 अब्बा जान - तो क्या हुआ ले लेंगे नागरिकता हमारा तो जन्म यहीं का है हमारी हमारा निका ह भी यहीं और यहीं के परिवार से हमारा रिश्ता जुड़ा अब कोई हम कहीं और थोड़े जाने वाले हैं , ले लेंगे यहीं को नागरिकता और यहीं के होकर रहेंगे इसमें दिक्कत क्या है।
 अब्बा जान ,आप भी ना बहुत सीधे हैं ये हिन्दुस्तान है,यहां हिन्दुओं का राज रहेगा ।
अब्बा जान अपने पड़ोसी मित्र पर झल्लाते हुए तो लल्लन हमें कौन सा राज करना है ,हमसे अपना घर परिवार सम्भल जाए वो ही काफी है ।
लल्लन, अब्बा जान से तुम्हें कोई नहीं समझ सकता  जब धक्के मार कर बाहर निकाल  जाओगे ना तब
पता चलेगा ।
अब्बा जान मैं आज ही यहां की नागरिकता लेता हूं फिर कौन निकलेगा हमें बाहर जब हम यहीं के हो जाएंगे ।

     दूसरा दृश्य.....

 बहुत अच्छे से ट्रेनिंग दी गई थी इन युवाओं को
जानवर ,भेड़िए,आस्तीन के सांप ,जैसे कितने भी अपशब्द कम थे ऐसे देश के गद्दारों के लिए ,जिस थाली में खा रहे थे उसी में छेद कर रहे थे ।

भटके हुए प्राणी कुछ पैसों के लालच और गलत शिक्षा के कारण भटके हुए थे ये हिंसक युवा .....


जब नोटों का लालच दिखाया जाता है ,तब बड़े- बड़ों का ईमान डोल जाता है ।
और जब पापी पेट का सवाल हो तो ...
अपना पेट तो छोड़ो बच्चों की जरूरतों की खातिर ।
 
  अगले ही दिन टेलीविजन पर आज  कुछ उपद्रवियों ने किसी पुलिस चौकी के समीप पथराव किया ,
फिर एक और ख़बर उपद्रव की बड़ी खबरें  शहर में जगह -जगह हिंसा पथराव,कई लोग घायल .....

लगातार कई दिनों से हिंसा की घटनाएं चल रही थीं अब्बा जान मन ही मन बहुत परेशान थे कुछ कर भी नहीं पा रहे थे । आखिर अपने ही सगों के खिलाफ आवाज उठान इतना आसान नहीं था ,लेकिन अब्बा जान का जमीर इस बात की गवाही नहीं दे रहा था ।
 शहर के कई इलाके नफरत की आग में झुलस रहे थे ।
 अब्बा जान क्योंकि लल्लन के पड़ोसी मित्र थे ,और उम्र में भी बड़े तो सब उन्हें अपने अब्बा सामान ही समझते थे ,लेकिन सुनता कौन था उनकी ।

बस अब और नहीं अब्बा जान की आत्मा उन्हें धिक्कार रही थी ,हर अगले दिन कौन सी वारदात होनी है उन्हें ख़बर होती  ,माना की वो उस वारदात का हिस्सा नहीं थे और ना ही चाहते थे परन्तु  हिंसा
या किसी वारदात की खबर होना और कुछ ना कर पाना यह भी किसी हिंसा से कम नहीं था ।
अब्बा जान स्वयं को दोषी मानने लगे थे ,अल्लाह तो सब जानता है ,क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा का पाठ कभी नहीं पढाता  ।
अब्बा जान जब आल्लाह से मुलाकात होगी तो दोषी मैं भी ठहराया जाऊंगा ।
 अब्बा जान नहीं मुझे कुछ करना होगा कैसे रौंकू इस उपद्रव की गन्दगी को ....
अब्बा जान कश्मकश में थे उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था, तभी अब्बा जान अचानक कहीं चले गए ।
 पूरी रात बीत गई थी अब्बा जान घर नहीं पहुंचे थे घर वालों को चिंता हो रही थी ,आखिर अब्बा जान किधर गए ,कई जगहों से पता लगाया परंतु अब्बा जान का कुछ भी पता नहीं चल रहा था ।
 इधर दंगाइयों का उपद्रव सिर चड़ कर बोल रहा था ,शहर में आगजनी की वारदातें भी बड़ रही थीं ।
  पुलिस फोर्स भी इन दंगों पर काबू नहीं कर पा रही थी ।
 आखिर बढते हुए दंगे जान- माल का भारी नुकसान । अगले दिन ही समाचार सुनने को मिला की सरकार ने दंगा पीड़ित इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया है । शहर के हालात दो -चार दिन सामान्य होने लगे थे ।
   थोड़े दिनों बाद छब्बीस जनवरी थी ।
 आज अब्बा जान अच्छे से तैयार होकर कहां चले लल्लन ने व्यंग कसते हुए कहा ।
 गले में सम्मान प्रतीक मेडल और हाथ में राष्ट्रपति सम्मान का प्रमाण पत्र लिए अब्बा जान अपनी गली से अपने घर के लिए जा रहे थे अब्बा जान की चाल में  सवभिमान की साफ झलक रहा था ।
 गली के और घर के लोग बाहर खड़े मन ही मन अब्बा जान का स्वागत कर रहे थे ,खुश थे की अब्बा जान ने कुछ बेहतरीन काम किया है जो आज उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है ।
 अपने घर की  चौखट पर अभी अब्बा जान ने कदम बढाया ही था की अचानक जोर की आवाज हुई ,अब्बा जान की पीठ लहूलुहान थी ,सब लोग अब्बा जान कि तरफ दौड़े , अब्बा जान ने आखिरी सांसे लेते हुए ,वंदेमातरम कहते हुए अपने प्राण छोड़ दिए और सबकी आंखें नम हो गईं ।






आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...