स्मरणीय यात्रा

यात्रा यानि जीवन को एक नई ऊर्जा नया उत्साह प्रदान करना।
रोजमर्रा की भागती -दौड़ती जिन्दगी ैऔर वही हर दिन ैएक जैसे जीवन प्रक्रिया ,कभी -कभी नीरसता और थकान का कारण बन जाती है।
याद है मुझे मेरी वो यात्रा जब हम सब परिवार वाले एकत्र होकर माता वैष्णानों देवी के दर्शनों को गए थे ,लगभग बीस लोग थे हम सब परिवार वाले ।
हेमकुंड एक्सप्रेस ट्रेन से हम लोग जम्मू पहुंचे ,जम्मू से हम कटरा तक के लिए एक बस में बैठ गए रात भर ट्रेन का सफ़र किया था कटरा तक का रास्ता भी थोड़ा पहाड़ी और घुमाओ दार था हम लोगों को नींद पूरी ना होने के कारण सभी लोग ट्रेन में नींद के झोंकों में एक दूसरों के ऊपर गिर रहे थे कभी कोई एक को जगाता कभी कोई दूसरे को लगभग डेढ़ घंटे के बाद हम कटरा पहुंच गए ।
कटरा पहुंच कर हमने एक होटल में कमरे लिए अपना सारा समान कमरों में पहुंचाया थोड़ी देर आराम करने के बाद हम सब तैयार होकर हम लोग होटल से निकले ,आखिर भूख भी लग रही थी
एक अच्छे से रेस्टोरेंट में बैठकर हमने नाश्ता किया सबने अपने मनपसंद का खाना खाया मैंने तो वहां के राजमा और परांठा खाया जम्मू के राजमा का स्वाद बहुत ही लजीज होता है ।
अब हम सब के पेट भर चुके थे हम लोग तैयार थे ,अब माता के भवन तक जाने के लिए चढ़ाई च ढ ने के लिए सभी भक्त मतांके जयकारे लगा रहे थे जय माता की जय माता की ...
सबसे पहले बाड़ गंगा के दर्शन किए कहते हैं यहां रुककर माता वैष्णो देवी ने अपने केश धोए थे तभी इस नदी का नाम बाड़ गंगा पड़ा ,थोड़ा आगे चलकर चरण पादुका ,के दर्शन किए हम सबने ।
आते बोलो कीमत दी जाते बोलो जय माता दी आगे वाले है माता दी पीछे वाले जय माता दी सब और माता रानी के जयकारों की गूंज थी ,जगह -जगह पीने के पानी की व्यवस्था, चाय ,खाने का सामान सभी जरूरत के सामानों की व्यवस्था सम्पूर्ण थी ।
यहां तक की किसी के बीमार होने पर चिकित्सा व्यवस्था की भी पूर्ण व्यवस्था थी ।
अब हम आर्धकुमारी के मंदिर के पास पहुंच गए थे कभी लम्बी लाइन लगी थी यहां भी हम भी लाइन में खड़े हो गए कहते हैं इस गुफा पर मां ने आर्धकुमारी रूप में नौ महीने विश्राम किया था तभी इस पवित्र स्थल का नाम आर्धकुमा री पड़ा । बहुत छोटी सी और सकती गुफा थी यह बस माता के विश्वास की डर पकड़े हमने भी यह गुफा पार कर ली मां के प्रति श्रद्धा की कोई कमी ना थी ।
अब तो अर्धकूमार से हमारे तकनीकी विशेषज्ञों ने एक ने बहुत ही सीधा सरल रास्ता बना दिया है माता के भवन तक के लिए ।
कुछ बुजुर्गों ,निर्बल तन से कमजोर लोगों के लिए वहां से ऑटो की भी व्यवस्था कर दी गई है ।
कई लोग घोड़ों पर बैठकर भी यात्रा कर रहे थे ।
लेकिन हमारे ग्रुप में से कोई भी घोड़े पर बैठने को तैयार नहीं हुआ जबकि हमारे साथ जो बच्चे थे हमने उन्हें बहुत खा घोडॉन्नप्र बैठ जाओ परंतु वह तैयार नहीं हुए।
मन में माता रानी के प्रति श्रद्धा हमारा मनोबल कम नहीं होने दे रही थी
पौड़ी पौड़ी चड़ते जा जय माता दी करदे जा .....चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है माता के भजन और नाम गाते हुए हम माता के भवन की ओर बड रहे थे ,अब भवन के बहुत निकट पहुंच गए थे मन को बहुत शांति मिल रही थी कुछ ही पल की दूरी पर था अब माता रानी का भवन , भवन में माता के दर्शन करने से पहले सभी लोग स्नान कर रहे थे ।
सर्दी का मौसम था ठंड भी थी परन्तु मन माता के भवन में माता के दर्शन का जोश भरपूर था सभी ने एक एक करके ठंडे पानी में स्नान किया ।
थोड़ी देर में सभी लोग माता वैष्णव देवी के भवन में माता रानी के साक्षात दर्शन करने को तैयार थे ।
माता के भवन में जाने के लिए बहुत श्रद्धालु दर्शनों के लिए पंक्ति में लगे थे हम भी पंक्तियों में खड़े हो गए लगभग एक घंटे में हमारा नंबर आना था सभी श्रद्धालु माता रानी की जय माता रानी जय की माता की बोल रहे थे ।
आखिर हमारे भी पाप मानों पंक्तियों में खड़े इंतजार में कट रहे थे
धीरे - धीरे हम भवन की और बड रहे थे दिल में एक अजीब सी शांति थी ,आखिर हम माता के दर्शन कर रहे थे हमने माता के पिंडी रूपो के दर्शन करने का सुक पाया मां काली ,मां सरस्वती और माता वैष्णदेवी के पिंडी रूप दर्शन करने का सुख अद्भुत ,अतुलनीय था ।
भीड़ अधिक होने और सुरक्षा व्यवस्था के कारण हम ज्यादा देर तो भवन में ना खड़े हो सके ,परंतु माता ने मानों हम मन ही मन संदेशा दिया बेटा मन से श्रद्धा से तुम मुझे याद करोगे तुम मुझे अपने पास पाओगे ।
जय माता दी जय माता दी माता वैष्णव देवी जाना आज भी मन में उत्साह भर देता है ।

*जीवन मूल्य*

जीवन मूल्यों के उच्च संस्कारों
के आदर्शों को धारण करके
व्यक्तित्व में निखार आता है।

लेबल लगे उत्पादों से कोई बड़ा नहीं होता
यह सिर्फ भ्रम पैदा करता है बड़ा होने का
लेबल लगे मंहगे उत्पादों तो पुतले की भी
शोभा बढ़ाते हैं।

व्यक्तित्व में निखार आता है
सादगी से, सत्यता से ,विनम्रता से
परस्पर प्रेम से....
चेहरे पर मेकअप लगा कर तो
सिनेमा में लुभाया जाता है।

धन -दौलत को सर्वोपरि समझने वालों
सम्मान दो उस शिक्षकों को, शिक्षा को
जिसके ज्ञान से तुम्हें ऊंचे पदों प्राप्त हुए।

सम्मान तो वास्तव में उच्च जीवन मूल्यों
और उच्च आदर्शों का और नैतिक मूल्यों
का ही होता है ,जो जीवन को सर्वसंपन्न कराती है
मनुष्य को देखो साधनों को औकात समझ कर
इतराते फिरते हैं।

* भारतीय संस्कृति *

*भारतीय संस्कृति एक अमूल्य धरोहर*
    भारत मेरी जन्म भूमि मेरे लिए मां तुल्य पूजनीय है विविध संस्कृतियों विविध धर्मों को स्वयं में समेटे हुए भारतीय संस्कृति अनेकता में एकता का प्रतीक है।
हिन्दू ,सिख,जैन,मुस्लिम,ईसाई आदि कई धर्मों का पालन अपनी -अपनी परम्पराओं से करते हुए भी हम सब हिन्दू हैं हिदुस्तानी हैं ।
भारतीय संस्कृति हमें हर धर्म का सम्मान करना सिखाती है।
रंगों का त्यौहार होली हर रंग में घुलमिल जाने का त्यौहार है ।
दीपावली का त्यौहार प्रकाश उत्सव यानि जीवन के अन्धकार को दूर करना अन्धकार जो मनुष्य मन के भीतर अज्ञान का अन्धकार का अंधेरा है उसे दूर करके सब और ज्ञान का प्रकाश फैलाने का त्यौहार है ।
हम भारतीय जितने उल्लास से होली, दीवाली मनाते हैं उतना ही उत्साह ,अन्य धर्मों के त्यौहारों के मौके पर भी दिखाते हैं ,क्योंकि हम भारतीय प्रस्पर प्रेम और अपनत्व की खेती करते हैं ,भेदभाव, छल -कपट से हम कोसों दूर रहते हैं ।
हम भारतीयों के लिए हर दिन उत्सव है ।
 हां आधुनिक समाज को संदेशा है जितना मर्जी आप पाश्चात्य संस्कृति को अपनाओ  परंतु अपना भला ,बुरा देखकर अपनी भारतीय संस्कृति और सभ्यता को कभी मत भूलना
अपनी भारतीय संस्कृति जो तुम्हारी जननी है उसे कभी अपमानित मत होने देना ।
क्योंकि अगर तुम अपने नहीं तो किसी और के क्या होगे।
भारतीय संस्कृति हमें प्रकृति में परमात्मा के दर्शन करवाती है ,हमारे यहां वृक्षों को देवता मानते हैं ,पूजनीय तुलसी का पौधा जिसके बिना परमात्मा का भोग अधूरा माना जाता है   । गंगा का जल अमृत और यह सिर्फ नदी नहीं गंगा माता कहलाती है ।
मेरी भारतीय संस्कृति के विशेषताओं के भंडार असीमित हैं ।
भारतीय संस्कृति जीवन जीने की कला सिखाती है ......

डर किस बात का ....

अमन:- अरे भाई क्या कर रहे हो ,इतना दंगा, फसाद 
तोड़-फोड़ क्यों और किस लिए .....

 अमान :- देश में नागरिकता बिल आया है सुना है उससे देश की जनता को बहुत परेशानियां झेलनी पड़ेगी देश को नुकसान होगा ।

अमन:- देश को नुकसान वो भी नागरिकता बिल से ऐसे कैसे हो सकता है सरकार तो चाहती है जितने भी शरणार्थी हैं उनको यहां की नागरिकता दे दी जाए और जो नहीं लेना चाहते नागरिकता तो वो यहां रहने के नियमों का पालन करें ...

अमान:- नहीं -नहीं देश में इतनी हिंसा हो रही है कोई तो वजह होगी ।

अमन:- वजह है ,जानकारी का अभाव ,पहले अच्छे से समझो इस बिल में है क्या फिर ......करना जो ठीक लगे ,कुछ विपक्षी लोगों के भकने मात्र से चिंगारी लगाई जाती है ,और वो हिंसा की चिंगारी इतने बड़ी हिंसा का रूप ले लेती है।

अमन :-अच्छा ये बताओ तुम क्या चाहते हो।

अमान:-मैं कुछ नहीं बस सब लोग अच्छे से अमन और चैन से रहें ।

अमन :-अच्छा ये बताओ क्या तुम स्वयं को भारत का नागरिक मानते हो।

अमान:- हां बिल्कुल मैं भारत में जन्मा ,मेरे दादा, पिताजी सब पहले से ही यहीं पर रहते हैं ,उनका पुश्तैनी कारोबार है और शहर में लोग हमारे परिवार की बहुत इज्जत भी करते हैं ।

  अमन :- तो फिर एक जिम्मेदार नागरिक बनो अपने ही घर को नुकसान पहुं चाने से बचो ये देश तुम्हारा है तो इसका सम्मान करो तुमसे तुम्हारी नागरिकता कोई नहीं छीन रहा ।
यह अभियान तो उन सब के लिए है हो कई वर्षों से यहां हैं और उन्होंने इस देश की नागरिकता नहीं ली
सरकार का कहना है की इस देश में रहना है तो इस देश की पहचान के साथ रहो उन्हें सरकार सम्मान देना चाहती है सरकार किसी से कुछ छीन नहीं रही ।
अगर फिर भी कोई विद्रोह करता है तो फिर इसका मतलब उसके दिल में देश के लिए सम्मान हो नहीं ।
जब हम किसी को अपना मानते हैं ना तब हम उसे नुकसान नहीं पहुंचाते बल्कि उसकी सुरक्षा करते हैं।

अमान:-हां भाई तुमने मेरी आंखे खोल दी ।

*दिखावा*

  नए में  शुनभागमन करना था तो कोई शुभ कार्य भी करना था, इसलिए हमने *मां जगदम्बा माता रानी* के जागरण का आयोजन किया था ।
 सभी रिश्तेदारों सगे-संबंधियों को और मित्रों को न्योता दिया गया था ।
 रात्रि जागरण सर्दियों का मौसम सभी व्यवस्था यथोचित हो आखिर हमारे अतिथि हमारे देव होते हैं  
और उनका ध्यान रखना हमारा कर्तव्य, अपनी और से हमने सभी व्यवस्थाएं अच्छे से सुनियोजित की थीं।
 लगभग सभी अतिथि मातारानी के जागरण में उपस्थित हुए जिन्हें हमने बुलाया था सभी ने बहुत उत्साह पूर्वक हिस्सा लिया सब बहुत प्रसन्नचित्त थे की उनका स्वागत अच्छे से हुआ और नए घर की बधाइयां देते हुए घर सुन्दर बना है उपमा देते रहे ।
 अगला दिन था सब कुछ मातारानी का जागरण सभी कुछ अच्छे से हो गया था मैंने मातारानी को शुक्रिया अदा किया ।
 आखिर एक परम्परा और निभानी थी कौन -कौन लोग आए थे क्या-क्या उपहार लाए थे देखने का सिलसिला शुरू हुआ ,लगभग सभी मेहमान आए थे जिनको हमने बुलाया था ।
तभी एक एक कीमती उपहार पर नजर पड़ी ... अरे ये मेरा बचपन का मित्र है आज बहुत बड़ा आदमी बन गया है,फिर भी इसका बड़पन्न है ये हमारे घर  आया ये मेरा मित्र बचपन से ही दिल का बहुत अच्छा है, तभी तो इतने आगे निकल गया आज क्या नहीं है इसके पास हम तो इसके आगे कुछ भी नहीं... ये ना जाने कितनी दौलत का मालिक है ,वास्तव में इसकी अच्छाई और सादगी ही इसे इतने आगे लेकर गई है ।   सके घर जाकर कुछ उपहार देना चाहिए और इसका शुक्रिया भी अदा करूंगा की ये हमारे घर अपना कीमती समय लेकर आया,कल ही जाऊंगा इसके घर ।
 अगले दिन मैं अपने मित्र के घर जाने के लिए अच्छे से तैयार हो गया और एक सुन्दर सा उपहार भी लिया उसके लिए ...
 मैं खुश था और स्वयं में गर्वानवित महसूस कर रहा था की शहर का इतना बड़ा आदमी मेरे घर के मुहूर्त में आया ,आखिर रास्ता तय हुआ मैं अपने मित्र के घर के बाहर खड़ा था जहां पहले से ही दो सुरक्षाकर्मी मौजूद थे ,उन्होंने मुझे मेरा नाम ,पता और वहां आने का कारण पूछा ,मैंने कहा वो मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं ,और कल वो मेरे घर के मुहूर्त पर माता का जागरण था वहां भी आए थे ,और तुम्हें तो सब पता होगा ,वो सुरक्षाकर्मी बोले हां पता है वो गए थे अच्छा तो वो तुम हो बड़े भाग्यशाली हो जो साहब तुम्हारे घर आए वो ऐसे ही किसी के घर नहीं जाते ,अब बोलो तुम्हे उनसे क्या काम है ।
मैं उनसे बोला उनका मित्र हूं उनसे मिलना है ।
एक सुरक्षा कर्मी ने अपने कैबिन म से फोन किया ।
फोन पर उत्तर मिला वो आज बहुत व्यस्त हैं जरूरी काम हो तो या तो शाम तक इंतजार करे या फिर किसी दिन आये।
अब मैं थोड़ा सकुचाया धनी सेठ का मिजाज समझ आया मैंने सुरक्षा कर्मी को बोला कि वो बोले मैं उनका बचपन का मित्र रमेश हूं ।
सुरक्षाकर्मी देखो हमें पता है अगर साहब ने मना कर दिया तो समझो मना कर दिया फिर चाहे उनका कोई भी रिश्तेदार हो....
फिर भी तुम कहते हो तो देखता हूं एक बार फिर फोन करके ,सुरक्षाकर्मी ने फोन किया ,उत्तर मिला मैं कोई कृष्ण नहीं हूं और ना ही वो सुदामा ।
मन में हजारों प्रश्न थे अगर कुछ नहीं तो फिर वो मेरे घर उस आयोजन में क्यों आया ....
 सुरक्षाकर्मी अच्छे स्वभाव का व्यक्ति था उसने मुझे पानी पिलाया ,फिर बात करने लगा ,अच्छा तो आप और साहब बचपन में साथ पड़ते थे बहुत अच्छे मित्र थे ,मैंने सिर हिला कर उत्तर दिया हां ....
सुरक्षाकर्मी बोला तुम एक सज्जन व्यक्ति हो इसलिए तुमसे कह रहा हूं ,जब इंसान के पास पैसा आ जाता है ना तब उसका सब कुछ उसका पैसा उसकी हैसियत होता वो किसी का नहीं होता बस वो को भी करता है ना दिखावे के लिए  ऐसे वो कई जगह जाते हैं समाज को दिखाने के लिए और तुम्हारे घर भी आए समाज को दिखाने के लिए की देखो मैं कितना समाजिक और व्यवहारिक हूं सब कुछ अपना रुतबा बढ़ाने के लिए ।
कल को ये भी हो सकता है ,की अगर तुम कहीं रास्ते में दिखो तो वो तुम्हे पहचानने से भी इंकार कर दें
ये दिखावे की दुनिया है भैय्या इनके लिए पैसे बड़ा कुछ भी नहीं ।
दिखावे की दुनिया से बेहतर मैंने अपने घर लौट जाना समझा और मैं उल्टे पांव घर लौट आया।




*मानवता की पुकार*

बहुत फैल चुका है
समाज में जंगलराज
जंगली जानवरों का साम्राज्य
खूंखार भेड़ियों की दरिंदगी
तबाह हो रही है
कई बेटियों की जिंदगी
असहनीय है यह दर्द
मानवता का निभाना होगा फर्ज
सर पर चढ़ रहा है बहुत कर्ज
अब पूरी करनी होगी अर्ज
जंगली भेड़ियों का करना होगा अंत
उठाओ तलवार और कर दो वार
मानवता की पुकार
इंसानियत कर रही है ललकार 😠😡

*मीठा,सरल ,सीधा बचपन*

मीठा,सरल,सीधा बचपन
बच्चे थे तो अच्छे थे
आसमान से भी ऊंचे सपने थे
दादी,नानी से किस्से सुनते थे
वीरों के पराक्रम और
महापुरूषों प्रेरक प्रसंग
नैतिकता का देते परिचय
बन जीवन का प्रेरणास्रोत
उन जैसा बनने को करते प्रेरित ..... 
स्वर्ग से अप्सराएं आती थीं
परियां जादू की झडियों
 से मन की मुरादी बातें पूरी करती थीं
चंदा को मामा कहते थे 
पक्षियों की तरह चहचहाते थे
ऊंची -ऊंची उड़ाने भरते थे
खेलकूद ही अपना जीवन था
भविष्य तो बड़ों का सपना था
दोस्ती भी खूब निभाते थे 
कट्टी-अप्पा से रूठते मनाते थे
बचपन में बड़प्पन दिखाकर
सबको खूब हंसाते थे 
सबके मन को भाते थे 
शायद तब हम सच्चे थे 
अक्ल के थोड़े कच्चे थे 
पर बच्चे थे तो अच्छे थे 
मैं मुझमें मेरा बचपन बेफिक्र
 होकर जीवन भर जीना चाहता हूं

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...