निस्वार्थ मोहब्बत का
पुजारी हूं इस दुनियां
में इंसानियत का चिराग
लेकर घूम रहा हूं
घोर अन्धकार में दिया
जला देता हूं
मैं नौसिखिया वीणा के तारों
में इंसानियत
का राग सजा देता हूं ।
ढूंढ रहा हूं
इधर-उधर
नहीं मिल रही कहीं मगर
फिर रहा हूं डगर-डगर
नगर -नगर
व्यर्थ हो गया,
मेरे जीवन का सफर,
इंसान तो मिले बहुत मगर
इंसानियत ना मिली मुझे
मैं हारा थककर
स्वार्थ का बोलबाला था
मैं तो राही मतवाला था
परस्पर प्रेम के बीज मैं
स्वार्थ की बंजर भूमि में बो आया आने वाले कल को
पुजारी हूं इस दुनियां
में इंसानियत का चिराग
लेकर घूम रहा हूं
घोर अन्धकार में दिया
जला देता हूं
मैं नौसिखिया वीणा के तारों
में इंसानियत
का राग सजा देता हूं ।
ढूंढ रहा हूं
इधर-उधर
नहीं मिल रही कहीं मगर
फिर रहा हूं डगर-डगर
नगर -नगर
व्यर्थ हो गया,
मेरे जीवन का सफर,
इंसान तो मिले बहुत मगर
इंसानियत ना मिली मुझे
मैं हारा थककर
स्वार्थ का बोलबाला था
मैं तो राही मतवाला था
परस्पर प्रेम के बीज मैं
स्वार्थ की बंजर भूमि में बो आया आने वाले कल को