*गुड़िया का दर्द*

  **मां मैं बाहर खेलने जा रही हूं 

नहीं -नहीं गुड़िया   

तुम बाहर खेलने नहीं जा सकती 

बाहर कुछ जानवर घूम रहे हैं 

गुड़िया बोली :- मां मैंने अभी अभी अभी बाहर देखा

बाहर कोई जानवर नहीं था

मां बोली:- अरे नहीं -नहीं गुड़िया 

वह जानवर ही हैं दिखते इंसान जैसे हैं

पर हैं हैवान, बेटी वो दरिंदे हैं

तुम्हें नहीं पता, तुम अभी छोटी सी गुड़िया हो ना

वह गुड़िया को भी नहीं छोड़ते, 

उसके भी टुकड़े टुकड़े कर देते हैं 

तुम बाहर मत जाना गुड़िया

मैं तुम्हारे जैसी मासूम गुड़िया 

और कहां से लाऊंगी

मैं तो तुम्हारे बिना मर ही जाऊंगी 

नहीं नहीं गुड़िया

तुम मुझे बहुत प्यारी हो

मेरी राज दुलारी हो

मेरी आंखों का तारा

तुम ही हो मेरे जीने का सहारा

बेटी बोली:-मां वो इंसान ऐसे क्यों हैं 

क्या उन्हें कभी किसी ने समझाया नहीं

क्या उनके घर में मेरी जैसी और कुछ छोटी कुछ बड़ी आपके जैसी गुड़िया ही नहीं

मां आप भी तो बड़ी गुड़िया हो ना

मैंने सुना है जब पापा कहते हैं जा छोटी गुड़िया

अपनी मां बड़ी गुड़िया को बुला ले ,

मां हम सब गुड़ियाओं को मिलकर इन 

इंसानों में छिपे जानवर ,राक्षसों ,हैवानों को 

तब तक मारना चाहिए जब तक वो एक अच्छे 

इंसान ना बन जाएं

7 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 09/06/2019 की बुलेटिन, " ब्लॉग बुलेटिन - ब्लॉग रत्न सम्मान प्रतियोगिता 2019 “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. आदरणीय जी आभार मेरे द्वारा सृजित रचना को ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग रतन सम्मान शामिल करने के लिए सादर आभार

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  2. न जाने कब सभी गुड़िया को इस तरह के दर्द से मुक्ति मिलेगी?
    सुंदर अभिव्यक्ति।

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  3. माँ के मन के भाव और उसके माध्यम से दिया गहरा संदेह ...
    सच में समाज कहाँ जा रहा है ...

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