"जल ही अमृत है "

"जल ही अमृत है "

जल ही जीवन है ,जल के बिना जीवन सम्भव नहीं ।
जल का संरक्षण और स्वच्छ्ता हमारा कर्तव्य है ,जल जो हमारी ही
सम्पत्ति है ,हमारा जीवन है ,जिसके बिना हम मनुष्यों का जीवन सम्भव ही नहीं फिर क्यों जल को प्रदूषित करना इसका दुरुपयोग करना जल में विष भरना ,कहाँ की समझदारी है ये ।

हम मनुष्य बहुत ही स्वार्थी हैं अपने ही उपयोग में आने वाली चीजों को में हम विष भर देते है ।

जल में गन्दगी ,वायु में अत्यधिक वाहनों द्वारा प्रदूष्ण ।
जल,वायु धरती ,जिनसे हमारा जीवन है ,हम उन्ही को नष्ट कर रहे हैं ।

हम मनुष्य वास्तव में स्वार्थी हैं ।आज अपना स्वार्थ सिद्ध हुआ कल की कौन सोचता है ।

प्रकृति द्वारा प्रदत्त , सम्पदायें, वृक्ष, जल, वायु और सबसे बड़ी हमारी धरती ,जिसने हमे रहने के जगह दी और हम मनुष्यों ने इस धरती का क्या हाल कर दिया है ,धरती कराह रही ,वायु में अंधाधुन्ध प्रदूषण ,
और जल हमारी नदियाँ उसमे हम सारी गन्दगी डाल रहे है ।
परमात्मा ने हमें इतनी सुन्दर प्रकृति और मनुष्यों के जीविका के साधन दिये और हम मनुष्य अपने ही साधनों का विनाश कर रहे हैं ।
कितना नासमझ है मनुष्य दूर की नहीं सोच पता वह यह नहीं सोच प् रहा की वो अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या दे रहा है ।

भारत में नदियाँ भी अपनी विशिष्ट पहचान लिए हैं ,ये हम भारतीयों का सौभग्य है कि हमे देवों की सुरसरि मिली ,माँ गँगा ,ये सिर्फ नदी नहीं हमारे लिए अमृत है ,माँ गंगा की अमृत मयी जल धारा में स्नान, दान ,तप इत्यादि करके भक्त जन अपने ,रोग संताप मिटाते हैं ।

प्रकृति ने हमे ये जो संजीवनी दी है ,हमें इसका संरक्षण करना होगा
इसमें गंदगी आदि डालकर इसको प्रदूषित न करें ।
जल जीवन है ,इसका संरक्षण करें अपना और अपनों का जीवन खुशहाल करें
युग परिवर्तन ने दी है दस्तक "

बहुत ही उत्तम संजोग नज़र आ रहे हैं, ये युग परिवर्तन नहीं तो
क्या है?

हमारी प्रचीन संस्कृति फिर से जागृत हो रही है ,ऋषि मुनियों का देश कहे जाने वाला भारत देश फिर से अपनी प्राचीन संस्कृति को सहर्ष अपना रहा है ।

ऋषि परम्परा जो जीवन के सत्य को बखूबी जानती है, और यही ऋषि परम्परा है जो स्वार्थ से ऊपर उठकर सर्जनहिताय काम कर सकती है ।
"युग परिवर्तन ने दस्तक दे दी है ।"


परिवर्तन तो साक्षात् दिखायी दे रहा है । लोगों का अध्यात्म की और रूचि बढ़ रही है । भरतीय युवा पीढ़ी सत्य को समझ रही है।
लोभ वृति से ऊपर उठकर सर्वजन हिताय के बारे में कदम उठाये जा रहे है ,क्योंकि देश के हित में ही अपना हित है ।
युग परिवर्तन अवश्य होगा क्योंकि अब योगी लोगों ने देश की सता की बागडोर अपने हाथ में ले ली है ।


हिन्दुत्व हिंदुस्तान की संस्कृति है "

हिन्दुत्व हिंदुस्तान की संस्कृति है  "  

        " हाँ हम हिन्दू हैं "
   
     हाँ हम हिन्दू हैं ,हिन्दुस्तान की धरती पर हमारा जन्म हुआ ।

       हम हिंदुस्तानी हैं ।

  हाँ हमें गर्व से है कि, हिंदुस्तान जैसी पवित्र धरती पर हम  जीवनयापन हो रहा है । अपनी मातृभूमि का व् अपनी मातृभाषा हिन्दी का और अपने हिंदुत्व धर्म की रक्षा करना हम सब हिंदुओं का  कर्तव्य है ।
हिंदुत्व धर्म भाईचारे का सन्देश देता है और उसे मानता है ।
हिन्दू धर्म विश्व कौटूम्बकम की संस्कृति वाला देश है।
 ना हम किसी धर्म का  अपमान करेंगे और ना ही  अपने धर्म का  अपमान सहेंगे ।।

🌸💐श्रद्धा और विश्वास💐💐

💐श्रद्धा और विश्वास💐

🌷 कहते हैं ,कलयुग में नाम की बड़ी महिमा है ,🌷
परमात्मा का सिर्फ नाम लेने मात्र से परमात्मा मिल जाते है ।
जिस प्रकार जब एक बच्चा अपनी माँ को पुकारता है तो माँ दौड़ी
चली आती है ।
उसी तरह हम उस परमात्मा के अंश हैं ,जब भी हम सच्चे मन से श्रद्धा और विश्वास से उसका नाम लेते हैं ,उसे पुकारते हैं तो उसे आन
आना पड़ता है ।

* परमात्मा पर विश्वास हो अटूट
श्रद्धा से दामन हो भरपूर

परमात्मा सिर्फ भाव के भूखे
प्रेम से वो स्वीकारते हैं ,फल हो
चाहें रूखे -सूखे ।

वो खुद दाता ,देवन हार ,
उसे नहीं चाहिये हमारे कीमती उपहार
श्रद्धा और विश्वास से स्वयं को कर दो उसके
चरणों में समर्पित ।

वो विश्व विधाता , हम उसकी ज्योत के अंश
परमात्मा से रहे जुड़ा हम सबका अंतर्मन

"मैं शक्ति का अवतार हूँ ' , "माहिलायें किसी एक विशेष दिवस की मोहताज नहीं"

 "मैं समाज का श्रृंगार हूँ ",  " संस्कारों का प्रकाश हूँ " ममता    का द्वॉर हूँ ", "मैं सशक्त शक्ति का अवतार हूँ"

माहिलायें किसी एक दिवस की मोहताज़ नहीं, महिला दिवस तो हर रोज़ होता है कोई माने या ना माने ।

"बेटियाँ" प्रारम्भ यहाँ से होता है । बेटियाँ बचेंगी तभी तो समाज  की प्रग्रति होगी । 
आप ही बताइये क्या बेटियों के बिना समाज की उन्नति सम्भव है ? नहीं बिलकुल नहीं अगर बेटे कुलदीपक हैं ,तो बेटीयाँ कुलदेवीयां है । बेटियों के बिना कुलदीपक प्रकाशित होना असंभव है ।
बेटियाँ समाज की नींव है । और नींव का मजबूत होना अति आवयशक है ।क्योंकि यही बेटियां समाज को सवाँरती है।
यही बेटियाँ एक महिला के रूप में ,एक माँ के रूप मे सशक्त  समाज की स्थापना करती है । इस लिये महिलाओं को सुशिक्षा से कभी दूर नहीं रखना चाहिये ,क्योंकि कल यह ही महिलायें पलना के रूप में ,अपनी शिक्षा से आने वाली पीढ़ी को सुसंस्कृत और एक सुसभ्य समाज का  निर्माण करने में योगदान करेंगी ।
यूँ तो आज महिलायें हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा चुकी हैं ,और वो कोरी तारीफों की मोहताज़ नहीं ।
हमारी संस्कृति भी इस बात का प्रमाण देती हैं ,कि नारी का स्थान हमेशा से ऊँचा और पूजनीय है ।
अंग्रेजों की गुलामी के काल से विवशता वश बढ़ते अपराध के कारण महिलाओं पर बहुत  अत्याचार हुये ।परन्तु आज देश आज़ाद है ,गुलामी की बेड़ियां खुल चुकी है इस स्वन्त्रता में भी महिलाओं का बहुत बड़ा योगदान रहा , रानी लक्ष्मी इसका बहुत बड़ा उदाहरण है ।
आज के आधुनिक युग में महिलाओं के बढ़ते क़दम आसमान की ऊँचाइयाँ छू रही है । सुनीता विलियम जो अंतरिक्ष जा के आ चुकी है । कल्पना चावला ,विज्ञान के क्षेत्र में महिलायें बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं। 
आज एक महिला, डॉक्टर, इंजीनयर, अध्यापिका, लेखक, नेता, अन्य कई क्षेत्रों में निरन्तर अग्रसर हैं, और तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ रही हैं । 

💐इस होली लायी हूँ" मैं" इन्सानियत के रंग💐


 रंगों के इस मौसम में ,कुछ रंग मैं भी लायी हूँ।
  फाल्गुनी बहार में ,कुछ रंग मीठास के लायी हूँ" मैं "

  धरती की हरियाली भी है, आसमानी नीला भी है ,
   इंद्रधनुषी रंगों की सतरंगी फुहार लायी हूँ" मैं"

    इंसानियत के रंग में रंगने आज सबको आयी हूँ,"मैं"
    निस्वार्थ प्रेम की मीठी मिश्री सबको खिलाने आयी हूँ "मैं"
 
     ईर्ष्या,द्वेष, के भद्दे रंगों को सदा के लिए  मिटाने आयी हूँ          इस होली इंसानियत के रंग लायी हूँ "मैं"
   
      पुष्पों के मौसम में ,दिलों को  प्रफुल्लित करने आयी हूँ           "मै"
       सब धर्मों से ऊपर उठकर, इनसानियत का धर्म निभाने          आयी हूँ "मैं",होली के त्यौहार में कुछ रंग प्रेम के लायी हूँ         "मैं  "   निर्मल मन से,स्वच्छता के रंगों की बरसात करने          आयी हूँ " मैं" स्वच्छ्ता के हर रंग में रंगने आयी हूँ "मैं"

💐💐मोहब्बतों का दिया 💐

💐💐मोहब्बतों का दिया 💐💐

मोहब्बतों के दिये जला कर ,रोशन कर रहा हूँ संसार
नफरतों की आँधियों से मेरी लौ डग मगा रही है
मैं हर बार आँधियों से मोहब्बतों की लौ बचा लेता हूँ।

बुझने नहीं देता मैं दिया मोहब्बत का
दिन पर दिन बड़ रहा है, मेरा प्यारा सा कारोबार ।

एक लौ से दूसरी लौ जल रही है अब चल पड़ी है
मोहब्बत की फुहार ,अपनत्व के रंग में रंगा है संसार।
मेरे खाव्बों की कश्ती ,में सपनों की बहार ।

हर सपना बन के आया उपहार
मेरे सपनों का संसार ,मोहब्बतों के उपहार
कर रहा हूँ आजकल मैं मोहब्बतों का इकरार
मेरा आशीयाना की बात ही निराली है,
यहाँ हर दिन है ,होली, दीपावली ।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...