रंगों के इस मौसम में ,कुछ रंग मैं भी लायी हूँ।
फाल्गुनी बहार में ,कुछ रंग मीठास के लायी हूँ" मैं "
धरती की हरियाली भी है, आसमानी नीला भी है ,
इंद्रधनुषी रंगों की सतरंगी फुहार लायी हूँ" मैं"
इंसानियत के रंग में रंगने आज सबको आयी हूँ,"मैं"
निस्वार्थ प्रेम की मीठी मिश्री सबको खिलाने आयी हूँ "मैं"
ईर्ष्या,द्वेष, के भद्दे रंगों को सदा के लिए मिटाने आयी हूँ इस होली इंसानियत के रंग लायी हूँ "मैं"
पुष्पों के मौसम में ,दिलों को प्रफुल्लित करने आयी हूँ "मै"
सब धर्मों से ऊपर उठकर, इनसानियत का धर्म निभाने आयी हूँ "मैं",होली के त्यौहार में कुछ रंग प्रेम के लायी हूँ "मैं " निर्मल मन से,स्वच्छता के रंगों की बरसात करने आयी हूँ " मैं" स्वच्छ्ता के हर रंग में रंगने आयी हूँ "मैं"
इंसानियत के रंग में रंगने आज सबको आयी हूँ,"मैं"
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया... क्योंकि इंसानियत के रंग से बढ़ कर इस दूनिया में कोई रंग ही नहीं है।
Sahi kha jyoti ji aaj duniya me sab rang hain ,par insaniyat ka rang kam ho raha hai . Mai to chungi ki sabke dilon me praspar prem ho .
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर विचार विश्व कल्याण के सुंदर भाव।
जवाब देंहटाएंआभार मीना जी
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआभार अभिलाषा जी
हटाएंVery inspiring...nice l
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