💐👌👍 🎂 🎂बचपन का मीठा सा नया साल 🎂🎂💐💐👍👌

            💐👌👍 🎂 🎂बचपन का मीठा सा नया साल 🎂🎂💐💐👍👌

 सच है ,बचपन के बारे में जितना कहा जाये वास्तव में कम है ।     यूँ तो मैं बचपन को बहुत पीछे छोड़ आयी हूँ  ,परन्तु अपने अन्दर  के  बचपने को कभी मरने नहीं दिया मैंने  ।क्योंकि बचपन से मासूम ,सादगी से भर जीवन दोबारा नहीं मिलता ।

इसी लिये कहते हैं न ,जिन्दगी को जिन्दा दिली से गुजारो क्यों रो -रो कर गुज़ारें ज़िन्दगी 😃 जितनी साँसों की माला मिली है जीना तो है ही फिर क्यों  ना हर लम्हे को हँस के जिंदादिली से जिये ।

नये साल का मौका है । आज मुझे नये साल से जुड़े कुछ लम्हें याद आ रहे हैं । नये साल का मौका नयी उमंग नयी तरंग  कुछ नया करने का मौका  हम क्यों पीछे रहते  पार्टी करना तो स्वभाविक ही था । अब तो नये साल हो या कोई भी भी अच्छा मौका हम सब लोग परिवार वाले ,दोस्त आदि पार्टी अरेंज करते हैं या फिर किसी होटल में जा कर पार्टी करते हैं । लेकिन आज से दस पंद्रह साल पहले ऐसा नहीं होता था ,जो भी मौज मस्ती करते थे घर पर  ,या फिर किसी मनोरंजन स्थल पर खाना बना कर ले जाते थे  और प्राकृतिक वातावरण में खेलते खाते ,मौज-मस्ती करते थे । 🌲🌳🌴🌹

कई वर्षों तक हम भी ऐसे ही नये साल के मौके पर खुशियाँ मनाते रहे । याद है मुझे वो दिन हम पाँच पड़ोसियों ने नया साल कुछ इस तरह मनाया पाँचों पड़ोसियों ने फैसला किया की हर एक अपने -अपने घर से कुछ न कुछ बना कर लायेगा ।खुश थे कि अलग -अलग व्यंजन खाने को मिलेंगे जब घर आकर हमने अपना प्रोग्राम घर वालों को बताया  ,पहले तो मेरी माता जी खुश हुई बोली तुम क्या बना कर ले जाओगे मैंने बोला कुछ भी पंजाबी खाना सब कह रहे थे ,कि मेरे घर से राजमा चावल आयेंगे ,और माँ आप सब भी चलोगे और सबके घर से सब लोग आयेंगे घर पर कोई नहीं रहेगा नया साल है , पहले हम मसूरी से थोड़ी दूर पहाड़ी पर स्थित है ,फिर मसूरी की हसीन वादियों का आनन्द लेंगे और खाना खायेंगे । मेरी माँ बोली अच्छा सुरकण्डा देवी हाँ मैं कब से जाने की सोच रही हूँ नये साल का पहला दिन माँ के दर्शन होंगे चलो अच्छा है ,और ये बता और कौन -कौन जा रहा है ,मैंने उन्हें सबके नाम बता दिये।माँ बोली अरे वो सलमा की माँ तो मुसलमान हैं ,वो थोड़ी मन्दिर जायेंगी ,मैंने माँ को बताया सबसे पहले उन्ही के घर पर प्रोग्राम् बनाया था उन्हें कोई एतराज नहीं है ,माँ बोली अच्छा वो भी खाना बना कर लायेगी  मैं तो नहीं खाऊँगी उसके घर का खाना ,मैं सकपकाई बोली माँ जब सलमा आँटी की बेटी घर आती है वो तो यहाँ सब खाती है और मैं उनके घर पर खाती हूँ ,माँ बोली तुम जो भी करो मैं नहीं खाऊँगी वो मॉस मछली खाने वाले नहीं मैं तो अपने घर का खा लूँगी हाँ सविता और बबीता के घर का कोई बात नहीं ,मैं माँ की बात सुनकर थोड़ी परेशान हुई फिर सोचा माता रानी सब ठीक करेगी ।🍇🍔🍟🍝

नये साल का पहला दिन हम लोग माता के दर्शनोँ के लिये अपने -अपने घरों से निकल दिये ,हम सब एक मिनी बस बैठ गये बस चल दी सबने जय माता का जय करा लगाया । हम सब माता के दर्शन के लिये चढाई चढ़ रहे थे ,सलमा आँटी बड़े जोर से बोली जय माता की मैं तो थक गयी सब सलमा आँटी को कहने लगे आँटी थोड़ी ही दूर है, चलो फिर खाना भी खाना है॥

लगभग एक घंटे में हम मन्दिर तक पहुंचे सबने माता के दर्शन किये पूजा पाठ भी किया और अपनी-अपनी मन्नते भी माँगी ।
 दर्शन करके हम लोग आस-पास के प्राकृतिक नजारों का आन्नद लेने लगे तभी मेरी माँ मेरे पास आकर बोली ये सलमा तो बड़े अच्छे से पूजा कर रही थी ऐसा लग ही नहीं रहा था की ,ये अलग धर्म की है । इतने में पीछे से आवाज आयी चलो भई खाई बैठने की करो बड़े जोर से भूख लगी है ,सबने अपना-खाना निकाल कर बीच में रख दिया सब थके हुए थे भूख भी लग रही थी बस जिसको जो अच्छा लग रहा था खाने लगा इतने में मेरे बगल में बैठी मेरी माँ धीरे से मेरे कान में बोली मुझे मत देना सलमा के घर का खाना मैंने भी ठीक है कहकर माँ को चुप करा दिया ,सब ही लोग एक दुसरे के घर के खाने का मजा ले रहे थे ,कोई कह रहा था राजमा तो लजावाब बनी है।
 कोई अरे ये भिण्डी खाओ ये दम आलू ये मटर पनीर आज तो मजा ही आ गया इतने में खाना खाते -खाते मेरी माँ बोली वो भिन्डी देना बड़ी अच्छी लग रही है और ये मटर पनीर वाह जिसने भी बनाये हैं उसके हाथों में तो जादू है।मैं मन ही मन मुस्करा रही थी और डर भी रही थी की अगर माँ को पता चला की मटर पनीर और भिण्डी सलमा आँटी ने बनाये थी तो वो बस पता नहीं मुझे कितना बुरा भला कहेंगी ।
*👌👍
 उस वर्ष का पहला दिन हम सबने बड़ा अच्छा बिताया ,सब अपने -अपने घर पहुँच रहे थे ,एक दुसरे के खाने की तारीफ़ भी कर रहे थे। सलमा आन्टी का घर आ गया था सबने उन्हें नये साल की बधाई दी ,इतने में मेरी माँ सलमा आन्टी के पास जाकर बोलीं तुम खाना तो बहुत अच्छा बनाती हो ,आज तो मजा आ गया मटर पनीर और भिण्डी खा के फिर कब खिलाओगी अपने हाथ का बना खाना सलमा आन्टी जानती थी की मेरी माँ सलमा आँटी के यह का खाना खाना पसंद नहीं करती क्योंकि वो मॉस मछली खाते है। सलमा आण्टी थोडा सकपकाई फिर बोली जब चाहो ,मेरी माँ बोली बस शाकाहारी होना चाहिये तुम तो मेरी छोटी बहन हो बहन के हाथ का खाना भला क्यों नहीं खाऊँगी ,और सलमा तुम भी आना हमारे घर खाने पर । सलमा आँटी, बबीता, सविता सब अपने -अपने घर चल दिये सबने एक दूसरे को नये साल की बधाई देकर विदा किया ।
घर के अन्दर पहुँचते ही मेरी माँ बोली आज तूने मुझे सलमा के घर का खाना खिला दिया मैंने बोला माँ सबके खाने में पता ही नहीं चला की कौन सा सलमा आन्टी के घर का खाना है , मेरी माँ बोली बेटा मुझे बुद्धू समझती है क्या ये तूने ठीक ,मैंने माँ की बात बीच में काटते हुये बोला माँ आप भी ना पता नहीं कौन से जमाने में जी रही हो ,मेरी माँ बोली  तो तुम्हे भी पता नहींकि तुम कौन से ज़माने में रह रही हो ।
हैं तो हम सब ईंसान ही ना क्या हुआ कोई किस जाती का है। वैसे तेरी सलमा आन्टी खाना स्वादिष्ट बनाती है ।👌👌👍👍🎂🎂🎂🌲👍👍👍👍☺☺☺☺☺😊😊
 सच है ,बचपन के बारे में जितना कहा जाये वास्तव में कम है ।     यूँ तो मैं बचपन को बहुत पीछे छोड़ आयी हूँ  ,परन्तु अपने अन्दर  के  बचपने को कभी मरने नहीं दिया मैंने  ।क्योंकि बचपन से मासूम ,सादगी से भर जीवन दोबारा नहीं मिलता ।

इसी लिये कहते हैं न ,जिन्दगी को जिन्दा दिली से गुजारो क्यों रो -रो कर गुज़ारें ज़िन्दगी 😃 जितनी साँसों की माला मिली है जीना तो है ही फिर क्यों  ना हर लम्हे को हँस के जिंदादिली से जिये ।

नये साल का मौका है । आज मुझे नये साल से जुड़े कुछ लम्हें याद आ रहे हैं । नये साल का मौका नयी उमंग नयी तरंग  कुछ नया करने का मौका  हम क्यों पीछे रहते  पार्टी करना तो स्वभाविक ही था । अब तो नये साल हो या कोई भी भी अच्छा मौका हम सब लोग परिवार वाले ,दोस्त आदि पार्टी अरेंज करते हैं या फिर किसी होटल में जा कर पार्टी करते हैं । लेकिन आज से दस पंद्रह साल पहले ऐसा नहीं होता था ,जो भी मौज मस्ती करते थे घर पर  ,या फिर किसी मनोरंजन स्थल पर खाना बना कर ले जाते थे  और प्राकृतिक वातावरण में खेलते खाते ,मौज-मस्ती करते थे । 🌲🌳🌴🌹

कई वर्षों तक हम भी ऐसे ही नये साल के मौके पर खुशियाँ मनाते रहे । याद है मुझे वो दिन हम पाँच पड़ोसियों ने नया साल कुछ इस तरह मनाया पाँचों पड़ोसियों ने फैसला किया की हर एक अपने -अपने घर से कुछ न कुछ बना कर लायेगा ।खुश थे कि अलग -अलग व्यंजन खाने को मिलेंगे जब घर आकर हमने अपना प्रोग्राम घर वालों को बताया  ,पहले तो मेरी माता जी खुश हुई बोली तुम क्या बना कर ले जाओगे मैंने बोला कुछ भी पंजाबी खाना सब कह रहे थे ,कि मेरे घर से राजमा चावल आयेंगे ,और माँ आप सब भी चलोगे और सबके घर से सब लोग आयेंगे घर पर कोई नहीं रहेगा नया साल है , पहले हम मसूरी से थोड़ी दूर पहाड़ी पर स्थित है ,फिर मसूरी की हसीन वादियों का आनन्द लेंगे और खाना खायेंगे । मेरी माँ बोली अच्छा सुरकण्डा देवी हाँ मैं कब से जाने की सोच रही हूँ नये साल का पहला दिन माँ के दर्शन होंगे चलो अच्छा है ,और ये बता और कौन -कौन जा रहा है ,मैंने उन्हें सबके नाम बता दिये।माँ बोली अरे वो सलमा की माँ तो मुसलमान हैं ,वो थोड़ी मन्दिर जायेंगी ,मैंने माँ को बताया सबसे पहले उन्ही के घर पर प्रोग्राम् बनाया था उन्हें कोई एतराज नहीं है ,माँ बोली अच्छा वो भी खाना बना कर लायेगी  मैं तो नहीं खाऊँगी उसके घर का खाना ,मैं सकपकाई बोली माँ जब सलमा आँटी की बेटी घर आती है वो तो यहाँ सब खाती है और मैं उनके घर पर खाती हूँ ,माँ बोली तुम जो भी करो मैं नहीं खाऊँगी वो मॉस मछली खाने वाले नहीं मैं तो अपने घर का खा लूँगी हाँ सविता और बबीता के घर का कोई बात नहीं ,मैं माँ की बात सुनकर थोड़ी परेशान हुई फिर सोचा माता रानी सब ठीक करेगी ।🍇🍔🍟🍝

नये साल का पहला दिन हम लोग माता के दर्शनोँ के लिये अपने -अपने घरों से निकल दिये ,हम सब एक मिनी बस बैठ गये बस चल दी सबने जय माता का जय करा लगाया । हम सब माता के दर्शन के लिये चढाई चढ़ रहे थे ,सलमा आँटी बड़े जोर से बोली जय माता की मैं तो थक गयी सब सलमा आँटी को कहने लगे आँटी थोड़ी ही दूर है, चलो फिर खाना भी खाना है॥

लगभग एक घंटे में हम मन्दिर तक पहुंचे सबने माता के दर्शन किये पूजा पाठ भी किया और अपनी-अपनी मन्नते भी माँगी ।
 दर्शन करके हम लोग आस-पास के प्राकृतिक नजारों का आन्नद लेने लगे तभी मेरी माँ मेरे पास आकर बोली ये सलमा तो बड़े अच्छे से पूजा कर रही थी ऐसा लग ही नहीं रहा था की ,ये अलग धर्म की है । इतने में पीछे से आवाज आयी चलो भई खाई बैठने की करो बड़े जोर से भूख लगी है ,सबने अपना-खाना निकाल कर बीच में रख दिया सब थके हुए थे भूख भी लग रही थी बस जिसको जो अच्छा लग रहा था खाने लगा इतने में मेरे बगल में बैठी मेरी माँ धीरे से मेरे कान में बोली मुझे मत देना सलमा के घर का खाना मैंने भी ठीक है कहकर माँ को चुप करा दिया ,सब ही लोग एक दुसरे के घर के खाने का मजा ले रहे थे ,कोई कह रहा था राजमा तो लजावाब बनी है।
 कोई अरे ये भिण्डी खाओ ये दम आलू ये मटर पनीर आज तो मजा ही आ गया इतने में खाना खाते -खाते मेरी माँ बोली वो भिन्डी देना बड़ी अच्छी लग रही है और ये मटर पनीर वाह जिसने भी बनाये हैं उसके हाथों में तो जादू है।मैं मन ही मन मुस्करा रही थी और डर भी रही थी की अगर माँ को पता चला की मटर पनीर और भिण्डी सलमा आँटी ने बनाये थी तो वो बस पता नहीं मुझे कितना बुरा भला कहेंगी ।
*👌👍
 उस वर्ष का पहला दिन हम सबने बड़ा अच्छा बिताया ,सब अपने -अपने घर पहुँच रहे थे ,एक दुसरे के खाने की तारीफ़ भी कर रहे थे। सलमा आन्टी का घर आ गया था सबने उन्हें नये साल की बधाई दी ,इतने में मेरी माँ सलमा आन्टी के पास जाकर बोलीं तुम खाना तो बहुत अच्छा बनाती हो ,आज तो मजा आ गया मटर पनीर और भिण्डी खा के फिर कब खिलाओगी अपने हाथ का बना खाना सलमा आन्टी जानती थी की मेरी माँ सलमा आँटी के यह का खाना खाना पसंद नहीं करती क्योंकि वो मॉस मछली खाते है। सलमा आण्टी थोडा सकपकाई फिर बोली जब चाहो ,मेरी माँ बोली बस शाकाहारी होना चाहिये तुम तो मेरी छोटी बहन हो बहन के हाथ का खाना भला क्यों नहीं खाऊँगी ,और सलमा तुम भी आना हमारे घर खाने पर । सलमा आँटी, बबीता, सविता सब अपने -अपने घर चल दिये सबने एक दूसरे को नये साल की बधाई देकर विदा किया ।
घर के अन्दर पहुँचते ही मेरी माँ बोली आज तूने मुझे सलमा के घर का खाना खिला दिया मैंने बोला माँ सबके खाने में पता ही नहीं चला की कौन सा सलमा आन्टी के घर का खाना है , मेरी माँ बोली बेटा मुझे बुद्धू समझती है क्या ये तूने ठीक ,मैंने माँ की बात बीच में काटते हुये बोला माँ आप भी ना पता नहीं कौन से जमाने में जी रही हो ,मेरी माँ बोली  तो तुम्हे भी पता नहींकि तुम कौन से ज़माने में रह रही हो ।
हैं तो हम सब ईंसान ही ना क्या हुआ कोई किस जाती का है। वैसे तेरी सलमा आन्टी खाना स्वादिष्ट बनाती है ।👌👌👍👍🎂🎂🎂🌲👍👍👍👍☺☺☺☺☺😊😊

"☺💐 खुशहाल नववर्ष 💐☺"

प्रतिभावान ,प्रगतिशील,समृद्ध,
नव वर्ष में नवयुग की सौगात
नयी कोपलें, नयी पीढ़ी की नयी
फसल है ,समृद्ध करने को नववर्ष
         खुशहाल ।
पवित्र ,शुभ परस्पर प्रेम रुपी
      शुभ विचार  की खाद
" नव वर्ष फिर से दे रहा है ,दस्तक
  अब कर लो नव नूतन पंचांग दीवारों
         पर सुसज्जित।"
बारह मास , तीन सौ पैंसठ दिन का
एक वर्ष का काल । अब पूर्ण होने
   को है , दो हज़ार सोलह के
      वर्ष का  कार्यकाल।
अब दो हज़ार सत्तरह का सफ़र शुरू है
   बीते वर्ष का सुहाना सफ़र                                
   कुछ खोया, और कुछ पाया
  दुनियाँ के मेले में ,सपनों का मेला

 नववर्ष में ,नव नूतन सपनोँ का रेला
 हरी -भरी धरती पर सुख समृद्धि से
       परी पूर्ण वसुन्धरा।

स्वर्णिम सोच है, स्वर्णिम सपने
फिर से सोने की चिड़िया बन चेहकेगा
  भारतवर्ष का इतिहास सुनहरा।

आध्यात्मिक ता का अब दीप प्रज्ज्वलित
आत्माओं में अमर प्रेम की ज्योत जली है।
     ना कोई द्वेष है ,ना कोई वैर है
     इन्सानियत सबका धर्म होगा ।
     सादगी और ईमानदारी का जीवन होगा।

सुहाने सफ़र की सुहानी कहानी
मेहनती हाथों में है ,तकदीर देश की
सबको मिलेगी अपने  हक़ की रोटी
 नहीं सोयेगा अब कोई भूखा
शिक्षित होगा हर नौजवान ,बच्चा-बच्चा

संस्कृति ,शिक्षा,और  कर्मठता का जब रंग चढ़ेगा
 स्वर्ग धरा पर आ जायेगा
भारतवर्ष फिर सोने की चिड़िया कहलाएगा।





                   
                     





  

काश की वो वक्त वहीं थम जाता । हम बड़े न होते बच्चे ही रह जाते । पर क्या करें की प्रकर्ति का नियम है ,बचपन , जवानी बुढ़ापा , दुनियां यूं ही चलती रहती है । जिसने जन्म लिया है ,उसकी मृत्यु भी शास्वत सत्य है उससे मुँह नहीं मोड़ा जा सकता ये एक कड़वा सच है । हम बात कर रहे थे ,बचपन की , बचपन क्यों अच्छा लगता है । बचपन में हमें किसी से कोई वैर नहीं होता । बचपन का भोलापन ,सादगी ,हर रंग में रंग जाने की अदा भी क्या खूब होती है । मन में कोई द्वेष नहीं दो पल को लड़े रोये, फिर मस्त । कोई तेरा मेरा नहीं निष्पाप निर्द्वेष निष्कलंक मीठा प्यारा भोला बचपन । ना जाने हम क्यों बड़े हो गये , मन में कितने द्वेष पल गये बच्चे थे तो सच्चे थे , माना की अक्ल से कच्चे थे ,फिर भी बहुत ही अच्छे थे , भोलेपन से जीते थे फरेब न किसी से करते थे तितलियों संग बातें करते थे , चाँद सितारोँ में ऊँची उड़ाने भरते थे प्रेम की मीठी भाषा से सबको मोहित करते थे । बच्चे थे तो अच्छे थे । 

        काश की वो वक्त वहीं थम जाता । हम बड़े न होते बच्चे ही रह जाते ।
 पर क्या करें की प्रकर्ति का नियम है ,बचपन , जवानी बुढ़ापा , दुनियां यूं ही चलती रहती है ।
जिसने जन्म लिया है ,उसकी मृत्यु भी शास्वत सत्य है उससे मुँह नहीं मोड़ा जा सकता ये एक कड़वा सच है ।

हम बात कर रहे थे ,बचपन की , बचपन क्यों अच्छा लगता है ।
बचपन में हमें किसी से कोई वैर नहीं होता ।
बचपन का भोलापन ,सादगी ,हर रंग में रंग जाने की अदा भी क्या खूब होती है ।
मन में कोई द्वेष नहीं दो पल को लड़े रोये,  फिर मस्त  । कोई तेरा मेरा नहीं  निष्पाप निर्द्वेष निष्कलंक  मीठा प्यारा भोला बचपन ।

 
  ना जाने हम क्यों बड़े हो गये , मन में कितने द्वेष पल गये
  बच्चे थे तो सच्चे थे , माना की अक्ल से कच्चे थे ,फिर भी
  बहुत ही अच्छे थे , भोलेपन से जीते थे फरेब न किसी से करते थे
   तितलियों संग बातें करते थे , चाँद सितारोँ में ऊँची उड़ाने भरते थे
  प्रेम की मीठी भाषा से सबको मोहित करते थे ।
  बच्चे थे तो अच्छे थे ।



💐👍" स्वर्णिम युग ने दी दस्तक "👍💐

       
  💐👍" स्वर्णिम युग ने दी दस्तक "👍💐

    यह बात तो निःसंदेह सत्य है ,कि हर पक्ष के दो पहलू होते हैं ।
     ऐसा भी नहीं की मेरी राजनीति में कोई विशेष रुचि है ।न ही मैं किसी पार्टी विशेष् की पक्षधर हूँ ।
    हाँ मैं देश हित की पक्षधर हूँ ,जहाँ बात देश हित की हो उससे कैसे मुँह मोड़ा जा सकता है ।
   
   हाँ मैं बात कर रही हूँ ,देश के प्रधानमंत्री आदरणीय मोदी जी ...
   पुराने नोटों की बंदी और नये नोटों का चलाना ।
 
   मोदी जी के इस फैसले के बाद मानो देश में कोई भूकंप आ गया था , सारा देश विचलित माता बहने भी  घरों में अपनी जमा पूँजी
 समेटने लगी ।व्यपारी वर्ग, आम जनता भी पुराने नियमों के लागू न होने से और नए नियमो के आने से काफी परेशान हुए ।
 

 परन्तु यह बात भी पूर्णतया सत्य है ,कि भारत देश की सवा सौ करोड़  जनता भले ही अपने मुँह से कुछ न कहे पर वो मन ही मन बहुत खुश है । खुश है क्योंकि पुरानी भरष्टाचार की बेडियाँ अब खुलेंगी ।
पुरानी  नीतियॉं पुराना काला धन अब सफेद होजाएगा।

 ,बहुत हल्का पन महसूस होगा ,मानसिक तनाव भीं खत्म होगा जो जितनी मेहनत करेगा उतना धन कमाएगा । अगर नोट बंदी का यह कदम अनुचित होता तो देश की जनता इतनी परेशनियाँ सेह कर चुप न रहती।

चोर बाजारी खत्म होगी ,हर कोई अपने हक़ की खाएगा ।

जब हमार सारा धन बैंको में जमा होगा तो  हाथ में कैश ही नहीं होगा तो ,नकली नोटों का कोई सवाल ही नहीं होगा ।

जो भी है, मोदी जी का कदम देश के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया है ।

देश बदलेगा युग बदलेगा ।।      " जय हिन्द भारत माता की जय "

👍 बचपन के खट्टे मीठे अनुभव👍😉😂😂

        😄 👍  बचपन के खट्टे मीठे अनुभव👍😉😂😂

   कल की ही बात है ,मैं और मेरी मित्र कई दिनों बाद मिले । हम दोनोँ बचपन से एक स्कूल में पड़े ,स्कूल के बाद
      एक ही कालेज से हमने डिग्री ली ।
     क्योंकि बचपन से हम संग रहे तो ,एक दुसरे की पसंद नापसन्द  भी हमें अच्छे से पता थी ।
     हम दोनों ने संग -संग बहुत ख़ेल कूद खेले खूब मस्तियाँ करी,पर ऐसा कुछ नहीं किया जिससे किसी को कोई भारी नुक्सान हो ।
      अनजाने में बालपन में हुई गलती को तो भगवान भी माफ़ करता है
   
       पर एक बार की बात है, खेलते खेलते हमारी बॉल पड़ोसन आन्टी के शीशे पर जा लगी और शीशा टूट गया ,बस क्या था हम
     दोनों सहेलियाँ अपने-अपने घरों में यूँ जा बैठी जैसे हम तो कई घंटों से अपनी जगह से हिली ही ना हों ।          

     भाग्यवश उस समय वो पड़ोसन आँटी घर पर नहीं थी घर पर ताला लगा वो सब्जी लेने गयी हुईं थी ।
🐒🐒उन दिनों कुछ बन्दरों ने हमारे  घर के आस -पास डेरा डाला हुआ था मौका मिलते ही बंदर टूटे हुए शीशे से आंटी के घर जा घुसे मैं और मेरी सहेली सारा नजारा छुप-चुप कर देख रहे थे मन ही मन खुश थे की आँटी सोचेगी की बन्दरों 🐒ने शीशा तोड़ा, फिर ये भी सोच रहे थे की बन्दर तो आँटी के घर का सारा सामान उलट -पुलट कर देंगे ।

एक बार तो सोचा जाकर आँटी को ख़बर दें की आँटी आपके घर में बन्दर घुस गये है, फिर ये सोच कर चुप हो गये की आंटी बोलेगी तुमको कैसे पता कि मेरे घर में बंदर घुस गये हैं ,फिर मैं और मेरी सहेली एक साथ बैठ कर स्कूल का काम करने लगे

लगभग एक घंटे बाद आँटी बाज़ार से घूम कर सब्जी लेकर घर लौटी ,घर का दरवाज़ा खोलते ही जोर -जोर से चिल्लाने लगी चोर -चोर मेरे घर में चोर घुस गये देखो सारा सामान उलट-पुलट कर दिया है ,न जाने क्या-क्या उठा कर ले गये होंगे ।इतने में सारे पडोसी इक्कठे हो गये सब लोग आँटी को हिम्मत देने लगे उनके घर का सारा बिखरा सामान ठीक से लगाने लगे ,इतने में एक आँटी बोली ये कैसे चोर थे सारा सामान उलट -पुलट कर दिया आटे का ड्रम भी गिरा दिया दाल सब्जी पानी सब कुछ बिखेर दिया चोरों को और कुछ नहीं मिला ।
तभी एक आंटी की नजर खिड़की के टूटे हुए शीशे पर गयी अरे देखो चोर शीशा तोड़ कर अन्दर घुसा होगा ।तभी एक कहने लगी अपनी अलमारी चेक करो सारा कीमती सामान जेवर तो पड़े हैं ना

आँटी ने अपना कीमती सामान जेवर रुपया सब चेक किया सब ज्यों का त्यों था आँटी ने चैन की साँस ली। सब पडोसी कहने लगे की शायद कोई भूखे चोर होंगे सिर्फ खाने के सामान को ही हाथ लगाया।
 मैं और मेरी सहेली हाथ पकडे चुप -चाप सब देख रहे थे मन ही मन खुश हो रहे थे, की हमारी गलती पकड़ी नहीं गयी
और दबे पाँव वहाँ से खिसके और फिर बाद में हम जो दहाड़ दहाड़कर हँसे वो हँसी आज भी हमें रोमांचित कर जाती है ,क्या करते अगर आँटी को सच बोलते की वो चोर नहीं बन्दर थे ,तो हम फँसते बस चुप ही रह गये .......
 कुछ ऐसे ही खट्टे मीठे अनुभवों के साथ फिर मिलेंगे .......... 😂😂😁😂😁

💐 शब्द तो वहीँ हैं 💐

 
☺शब्द तो वहीं हैं☺

हाँ शब्द तो वही है
बातें भी वही है
पर मेरे लिखने का अंदाज
मेरा अपना है।

दिल की बातों को ,
शब्दों की माला में पिरो
एक सुव्यवस्थित आकार दे
श्रृंगार करते रहता हूँ ।
कभी करुणा ,कभी प्रेम ,कभी हास्य,
कभी वीर रस के रंग में रंगते रहता हूँ ।

कभी कहानी लिख कर अपनी बात कहता हूँ
कभी कोई कविता लिख समाज को
समर्पित करते रहता हूँ ।

लिखता तो वही हूँ ,जो हम सब को ज्ञात होता है
शब्द भी वही होते हैं ,जज़्बात भी वही होते है।

पर अपनी बात को अपने ढँग से
सवाँर कर समाज को समर्पित कर देता हूँ।

मेरी कविता ,कहानी ,लेख ,कहीं कोई
अपनी छाप छोड़ जाये ,किसी के दिल
की गहराइयों में उतर अपना करिश्मा
दिखा जाये ,किसी के जीने का अंदाज़ बदल जाये
किसी की सोच में सकारात्मक परिवर्तन आ जाये
तो मेरे परमात्मा के द्वारा मुझे सौंपा गया
मेरा कर्म सफल हो जाये ।
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💐अभिनय💐

     ☺"अभिनय"☺

मगर जब से हमने हर मौसम में लुत्फ़ लेना सीख लिया ,

जिंदगी के सब शिकवे बेकार हो गए ।

ज़िन्दगी तो बस एक नाटक है ,

दुनियाँ के रंगमंच में हमें अपने किरदार को बखूबी निभाना है ।

फिर क्यों रो _रो कर दुखी होकर गुजारें जिंदगी

जीवन के हर किरदार का अपना एक अलग अंदाज़ है

क्यों अपना-अपना किदार बखूबी निभा लें हम

इस नाटक की एक विशेष बात है ,

क़ि हमने जो परमात्मा से मस्तिक्ष की निधि पायी है ,

बस उस निधि का उपयोग ,करने की जो छूट है ,

उससे हमें खुद के रास्ते बनाने होते हैं

हमारी समझ हमारी राहें निशिचित करती हैं ,

परिश्रम ,निष्ठा, और निस्वार्थ कर्मों का मिश्रण जब होता है,

तब मानव अपने किरदार में सुंदर रंग भरता है,

और तरक्की की सीढियाँ चढ़ता है ,

भाग्य को कोसने वाले अभागे होते हैं ,

वह अपने किदार में शुभ कर्मों का पवित्र रंग तो भरते नहीं

फिर भाग्य को कोसते हैं ,

और परमात्मा को दोषी ठहराते हैं।



आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...