कविता मात्र शब्दों का मेल नहीं
वाक्यों के जोड़ - तोड़ का खेल भी नहीं
कविता विचारों का प्रवाह है
आत्मा की गहराई में से
समुद्र मंथन के पश्चात निकली
शुद्ध पवित्र एवम् परिपक्व विचारो के
अमूल्य रत्नों का अमृतपान है
धैर्य की पूंजी सौंदर्य की पवित्रता
प्रकृति सा आभूषण धरती सा धैर्य
अनन्त आकाश में रोशन होते असंख्य सितारों के
दिव्य तेज का पुंज चंद्रमा सी शीतलता का एहसास
सूर्य के तेज से तपती काव्य धारा
स्वच्छ निर्मल जल की तरलता का प्रवाह
काव्य अंतरिक्ष के रहस्यमयी त्थयों की परिकल्पना
का सार है, साका रत्मक विचारो के जागृति की मशाल होती है।
वाह रितु जी बहुत ही सु्न्दर जवं सार्थक परिभाषा रची है आपने कविता की....
जवाब देंहटाएंलाजवाब सृजन
वाह!!!
बहुत सुंदर और सार्थक सृजन आदरणीया
जवाब देंहटाएंनमन आभार अनुराधा जी
जवाब देंहटाएं