*जिन्दगी को जीने के बहाने *

    " कुछ खोने के दर्द में

      कुछ पाने के बहाने मिल गए"

**जिन्दगी को जीने के बहाने मिल गए

मकान को घर बनाने के अफसाने मिल गए

धीमी रफ़्तार में चलने के ठिकाने मिल गए

थोड़ा आराम करने के दिन जो सयाने मिल गए

हंसने मुस्कराने के तराने मिल गए

बेवजह गुनगुनाने को गाने मिल गए

खेल-कूद मौज-मस्ती के मानों दिन 

वो बचपन के पुराने मिल गए 

एक दूजे संग सामंजस्य बिठाने के 

लिए रिश्तों को निभाने के लिए 

फुर्सत के पल एहसास ए तराने मिल गए 

किसी बहाने से ही सही ,जिन्दगी को 

जीने के बहाने मिल गए ।

जिन्दगी को जीने के बहाने मिल गए

      " इंसान को बैठना पड़ा घरों में  

    कैद होकर ,प्रकृति को लहलहाने 

             के बहाने मिल गए 

    वसुन्धरा को समृद्ध होने के

         वक़्त ए जमाने मिल गए              

     वायुमंडल में शुद्ध हवा के झौकों को 

         ठिकाने मिल गए "




8 टिप्‍पणियां:

  1. सच कहा है ...
    जब इंसान नहीं देता तो प्राकृति छीन लेती है ... पर ऐसे भी नहीं छीन ...

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  2. वाह!! ऋतु जी चिंतनपरक रचना
    ! ये कोरोना लॉकडॉउन नही एक समाजिक और पारिवारिक क्रांति है इसका फायदा सबसे ज्यादा प्रकृति को मिला , कि वह खुलकर,, सांस ले रही है। सुंदर
    रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें👌👌👌👌सस्नेह 🙏🙏

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    उत्तर
    1. जी रेणु जी रचना पड़ने और एक सार्थक प्रतिक्रिया देने के लिए सहृदय आभार

      हटाएं

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