विधा :- नवगीत प्रदत पंक्तियां

ऊर्मिया घूंघट उठाकर
फिर मचलती आ रही है


 मन की आंखों के घूंघट से
 नयनों में पलकों के पर्दों से
 मेरे दिल के दरवाजों से
 मेरा सपना कहता है मुझसे

 जैसे सीप में मोती
 नयनों में ज्योति 
घूंघट की आड़ में
पगली क्यों रोती

तारों की बारात है सजी
चन्दा को चांदनी जमीं पर उतरी
सपनों के सच होने में अब ना होगी देरी
देख उर्मीया घूंघट उठाकर
फिर मचलती आ रही हैं ।

स्वरचित, ऋतु असूजा







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