यूं कश्ती भी भूल गई है
कागज वाली आज ठिकाना
ना जाने क्यों मेरा दिल
गुनगुनाना चाहता है
कोई भुला हुआ तराना
भूल कर अपने घर का
पता पुराना, ढूंढ़ रहा हूं
गुजरा हुआ जमाना ।
धुंधली सी आंखों में
यादों का यतीमखाना
जब लौटकर नहीं आने
वाला गुजरा जमाना
फिर क्यों यादों में रहता है
वो कागज़ की कश्ती और
बारिश का आना ।
कागज वाली आज ठिकाना
ना जाने क्यों मेरा दिल
गुनगुनाना चाहता है
कोई भुला हुआ तराना
भूल कर अपने घर का
पता पुराना, ढूंढ़ रहा हूं
गुजरा हुआ जमाना ।
धुंधली सी आंखों में
यादों का यतीमखाना
जब लौटकर नहीं आने
वाला गुजरा जमाना
फिर क्यों यादों में रहता है
वो कागज़ की कश्ती और
बारिश का आना ।
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