*मैं प्रकृति अत्यंत दिलदार हूं मैं *

*मैं प्रकृति अत्यंत दिलदार हूं मैं*
प्रकृति प्रदत अमिय
जीवन का सार हूं मैं
स्वच्छंद निर्मल जलधार हूं मैं
हां मैं प्रकृति, देवस्थान अनन्त
निस्वार्थ सेवा की रसधार हूं मैं।

मैं प्रकृति बहुत दिलदार हूं मैं
अन्न, कंद - मंद फल, फूल का भंडार हूं मैं।

ममत्व का सरस-सरल अद्भुत, संसार हूं मैं
पूज्य धरती माता, उठाती दुनियां का भार हूं मैं।

उस पर भी सहती अत्याचार हूं मैं
मैं वसुंधरा मुझ पर ही बनते सपनों के महल
और पाती खंजर से वार हूं मैं
मेरे द्वारा ही पोषित , मैं ही पालना
मैं प्रकृति प्राणियों का संसार हूं मैं
मैं प्रकृति प्राणियों से समृद्ध,
प्राणियों से ही संसार का अस्तित्व....


8 टिप्‍पणियां:

  1. सुरक्षित, सोमवार के लिए..
    सादर..

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १६ मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. नमन स्वेता जी सहृदय आभार मेरे द्वारा सृजित रचना को सोमवारिय विशेषांक में सम्मलित्त करने के लिए

      हटाएं

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