**यहां मेरी भावनाओं की कोई कदर नहीं .....

प्रेरणास्पद, भावात्मक, काल्पनिक,हास्यास्पद,

( नाटक)

श्रीमान जी :- सुनो श्रीमती जी बाहर से 

किसी रद्धि वाले की आवाज आए तो उसे रोक लेना।

और मुझे बुला लेना  मुझे कुछ बेचना है ।


श्रीमती जी:- अब क्या बेचना है ,अभी परसों ही तो सारा रद्दी  सामान दिया था ,जबकि मैंने कहा था एक दो अखबार बचा लेना अलमारी में बिछाने के लिए चाहिए थे ,तुमने तो एक भी अखबार नहीं छोड़ा था, अब क्या रह गया है कुछ, जो बेचना है ।


श्रीमान जी:- अरे भाग्यवान बस कुछ बेचना है ,बहुत कीमती है, परंतु कोई उनका मोल नहीं जानता ।


श्रीमती जी :- कीमती है और बेचना है,ऐसा क्या है कहीं मेरे गहने तो नहीं ....


श्रीमान जी:- तुम्हारे गहने वो तुम्हारे हैं अभी इतने भी बुरे दिन नहीं आए ,की मुझे ऐसा  कुछ बेचना पड़़े ।

 

श्रीमती जी:- अनमोल अजी मुझे तो घबराहट हो रही है आप ऐसा  क्या है जो रद्दी वाले को बेचने वाले हैं ,कहीं आप मुझे तो रद्दी वाले लो तो नहीं दे देंगे ......


श्रीमान जी:- राम -राम..... रद्दी वाला तुम्हें लेकर क्या करेगा , तुम्हें तो मैं ही झेल लूं इतना ही बहुत है.... व्यंग करते हुए श्री मान जी .....


श्रीमती जी:- हां -हां मेरी कीमत तो मेरे जाने के बाद ही पता चलेगी ।


श्रीमान जी :- आवाज सुनो रद्दी वाले की है शायद ....


श्रीमती जी:- दरवाजा खोल कर देखती हैं इधर-उधर ताकने के बाद ,कोई नहीं है यहां ...


श्रीमान जी :- चलो तो फिर एक कप चाय ही पीला दो


थोड़ी देर में चाय भी बनकर तैयार थी श्रीमानजी चाय की चुस्कियां ले ही रहे थे ,तभी श्रीमती जी ने थोड़ा साहस करके प्रेम से श्रीमान जी से पूछा  ,अच्छा ये बताईए आपको रद्दी वाले को क्या सामान बेचना है।


श्रीमान जी :- कुछ डायरियां निकाल कर रखी थीं कुछ पेपर कुछ पत्रिकाएं   बोले इन्हे बेचना है 


श्रीमती जी :- परंतु ये तो आपकी भावनाएं हैं आपकी धरोहर हैं आपकी अमानत हैं 

आपको तो ये बहुत प्रिय हैं।


श्रीमान जी :- हां ये मेरी भावनाएं हैं ,मेरी आत्मा की आवाज हैं ,ये मेरे द्वारा लिखे गए वो भाव हैं जिनमें विचारों की गहराई है ।


श्रीमती जी मैंने आज तक जो लिखा समाज के हित में प्रेरणादायक लिखा और प्रयास किया , परंतु श्रीमती जी कौन कदर करता है इन भावनाओं की ,आज विज्ञान के युग में तकनीकी दुनियां में कोमल भावनाओं का तो मानों अंतिम संस्कार हो चुका है । श्रीमती जी तुम सही कहती थी जिसके पास समय है आज के युग में ये सब पड़ने का कोई मोल नहीं मेरी लिखी रचनाओं का .....श्रीमती जी दे दो इन्हें किसी रद्दी वाले को .....


श्रीमती जी:- आप निराश न हों श्रीमान जी हम तो बस यूं ही कह देते हैं , हमें बहुत कदर है आपकी भावनाओं की ,हम जानते हैं आप लिखते हैं क्योंकि आप समाज को कुछ अच्छा सिखाना ,और बताना चाहते हैं ,आप निराश न हों एक दिन आएगा जब आपकी भावनाओं की लोग कदर करेंगे ,आपका लिखा हुआ पड़ने के लिए प्रतीक्षा की पंक्तियों में खड़े होंगे ,

और वो क्या कहते हैं आपसे आपके हस्ताक्षर यानी ऑटोग्राफ लेने  शानमें अपनी समझेंगे ।

तभी द्वार पर किसी ने दस्तक दी ,श्रीमती जी ने द्वार खोला डाकिए था कोई पत्र था पकड़ा कर चला गया.....

श्रीमान जी :- हाथ में पत्र लेते हुए अब ये क्या है ,पत्र हाथ में था श्रीमान जी के चेहरे पर आत्मसम्मान की लहर दौड़ पड़ी 

श्रीमती जी :- ऐसा क्या है कोई मनी ऑर्डर आया है क्या , श्रीमान जी चुप थे ,श्री मती जी ने श्रीमान जी के हाथ से पत्र ले लिया और पड़ने लगी श्रीमती जी के चेहरे पर भी   खुशी की लहर दौड़ पड़ी ।

श्रीमती जी :-क्या अभी भी ये सब रद्दी वाले को देना है 


श्रीमान जी :- तुम सही कहती थी श्रीमती जी ,एक दिन ऐसा आएगा जब मेरी भावनाओं को भी कोई समझेगा और आज वो सच हुआ ।


श्रीमती जी :-चलिए सबसे पहले परमात्मा को नमन कीजिए ,शुक्रिया कीजिए ।


फिर मैं सारे शहर को बता कर आती हूं कि मेरे श्रीमान जी को उनके उत्कृष्ट लेखन के लिए राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया है ।




4 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी उत्साहवर्द्धक और प्रेरणा से भरी लघुकथा ... वार्तालाप के शक़्ल में रची हुई ... पर परमात्मा की जगह क़ुदरत को नमन करना चाहिए ... रचनाओं को गढ़ते समय सहयोगी रहा होगा ....

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  2. प्रेरक कहानी ...
    बातचीत के अंदाज़ में लिखी ... नाटक ऐसे ही लिखे जाते हैं शायद ...

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    1. जी नमन शुक्रिया आभार दिगम्बर नवासा जी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए

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