वायुमंडल की तरंगों में
रचता-बसता है संगीत
तभी तो वाद्य यंत्रों की
ध्वनि से बजता है संगीत
सरगम के सुरों से बन कर
कोई गीत ,गुनगुनाता है
जब कोई मीत तब सफ़र
का साथी बन जाता है संगीत
होठों पर गीत ,प्रकृति से प्रीत
कभी ध्यान से सुनना .....
वायु में वीणा के तारों की सुमधुर झंकार
होती है ,वृक्षों की डालियों पर
महफ़िल सजती है
पक्षियों की अंत्राक्षी होती है
कव्वाली होती है ,मैंने सुना है
कोयल की मीठी बोली तो मन ही
मोह लेती है
जब सावन की झडी लगती है
वर्षा की बूंदों से भी संगीत बजता है
आसमां में जब बादल घुमड़ता है
तब आसमां भी रोता है
धरती को तपता देख उसे
अपने अश्रुओं से ठंडक देता देता
तब मेघ मल्हार का राग बजता है
धरती तब समृद्ध होती है
वर्षा के जल से धरती का
अभिषेक आसमां करता है
हरी घास के कालीन पर
पर विहार होता है
प्रकृति की सुंदरता पर
हर कोई मोहित होता है
वृक्षों की डालियां
भी समीर के रिदम पर
नृत्य करती हैं
वृक्षों से टकराकर वायु विहार करते हुए
जब सांय-,सांय की आवाज करती है
तब प्रकृति भी गाती है
गुनगुनाती है
वायु से जो ध्वनि संगीत के रूप में निकलती है
प्रकृति को आनंदित करती है ,प्रफुल्लित करती है ।
वाह्ह्ह्ह.. खूबसूरत प्रकृति का यनमोहक मधुर संगीत...👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना
वाह !बेहतरीन सृजन दी जी प्रकृति के स्नेह में मुग्ध मन.. .. वाह !और वाह !
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 23/06/2019 की बुलेटिन, " अमर शहीद राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी जी की ११८ वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंनमन जी शुक्रिया मेरे द्वारा सृजित रचना को ब्लॉग बुलिटन में सम्म्मलित करने के लिए
हटाएंसंगीत का जीवन में बहुत माहत्व है पर प्रकृति से उपजा संगीत मात्र अनुभूति का विषय है , अभिव्यक्ति का नहीं | सुंदर रचना इस दिव्य संगीत को समर्पित प्रिय रितु जी | सस्नेह आभार और शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंनमन आभार रेणु जी
हटाएंवाह,बहुत खूब
जवाब देंहटाएंनमन ओंकार जी शुक्रिया
हटाएंये प्राकृति अपने आप में एक संगीत है ... उसके हर कण, हल चाप, हर स्वांस में संगीत है जिसको इंसान पहचान ले तो जीवन संगीत बनजाता है ... सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंआभार दिगम्बर जी
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