सफ़र

सफ़र की शुरुआत
बड़ी हसीन थी
हँसते थे ,मुस्कुराते थे
चिड़ियों संग बातें करते थे
सपनों की ऊँची उड़ाने भरते थे
हर पल मुस्कुराते थे
वो बचपन के दिन भी कितने अच्छे थे
सफ़र ये कैसा सफ़र
प्रतिस्पर्धा की दौड़ मैं
चेहरे की मुस्कान छिन गयी
चिंता की रेखाएँ चेहरे पर पर बोलती हैं
जाने क्यों हम बड़े हो गए
मन में हज़ारों द्वेष पल गए
संग्रह करते -करते हम
विभाजित हो गये
अपराधी हो गए
व्यवसायिक हो गए
व्यवहारिकता स्वार्थी हो गयी
इंसान तो रहे ,इंसानियत गुम गयी
जीवन एक
सफ़र है,सब को है ज्ञात
सफ़र में सुविधाओं के लिए
धरती लहुलोहान हो गयी
मिट्टी के तन की मिट्टी पहचान हो गयी
फिर भी अकड़ ना गयी
जिस जीवन की ख़ातिर आतंक फैलाया
वही आतंकवाद जीवन का विनाश कर रहा
जीवन एक सफ़र है किसी का लम्बा
किसी का छोटा ,
सफ़र का अन्त तो निश्चित है
फिर क्यों आतंकवाद से सफ़र का मज़ा किरकिरा करना
हँसना ,मुस्कराना जीवन के सफ़र को
आनंद मयी यादगार और प्रेरणास्पद बनाना ।





13 टिप्‍पणियां:

  1. सफ़र का अन्त तो निश्चित है
    फिर क्यों आतंकवाद से सफ़र का मज़ा किरकिरा करना
    हँसना ,मुस्कराना जीवन के सफ़र को
    आनंद मयी यादगार और प्रेरणास्पद बनाना ।
    बहुत बढ़िया।

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" सशक्त महिला रचनाकार विशेषांक के लिए चुनी गई है एवं सोमवार २७ नवंबर २०१७ को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"

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    1. आभार सहित धन्यवाद मेरी रचना को हलचल में सम्मिलित करने हेतु

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  3. यादों से उलझती और सफर में नित नयी सुखद कामनाओं की कल्पना करती रचना के अंतर्निहित भाव बहुत प्रेरक हैं | सच मुच कितना अच्छा हो जीवन के इस सफ़र को नित नए आह्लाद और जीवटता के साथ जिया -- ना कि विध्वंसकारी सोच के साथ -- जो दूसरों को तो तबाह करती ही है -- स्वयं को भी मिटा देती है | बहुत खूब ऋतू जी --सस्नेह

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    1. रेणु जी एक सार्थक टिप्पणी देने के लिए धन्यवाद

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  4. जिन्दगी का सफर...
    वाह!!!!
    इन्सान तो रहे इन्सानियत गुम हो गयी
    बहुत ही सुन्दर... सार्थक अभिव्यक्ति।

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  5. सार्थक और सोचने को मजबूर करती है रचना ... बचपन के दिनों की यादें रहती हैं पर इंसान कब बड़ा हो जाता है ... इंसानियत गुम जाती है ...

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