"सकरात्मकता का व्रत"

"जब से मुझे सकारात्मकता के बीज

मिले हैं मैं तो मालामाल हो गया

अरे, ये तो बहुत कमाल हो गया 

अब  मैं सकारात्मकता के बीज

डालकर सकारात्मकता की फ़सल

उगा रहा हूँ ,नकारात्मकता की सारी

झाड़ियाँ काट रहा हूँ "

एक व्रत जो मैंने हर वक़्त लिया है ठान

आव्यशक्ता से अधिक में खाता नहीं 

अन्न को दुरुपयोग होने से बचाता हूँ

सिर्फ़ अन्न का ही नहीं

अनावश्यक विचारों को स्वयं में

समाहित होने देता नहीं

नकारात्मक विचारों को स्वयं से

दूर रखने का लिया है

मैंने जीवन भर का व्रत ठान

स्वच्छ निर्मल जल में हो

प्रतिबिम्बित यही मेरी  पहचान 



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