**मेरी नियति**

  **  ना जाने मेरी नियति
        मुझसे क्या -क्या करवाना
            चाहती है ।

       मैं संतुष्ट होती हूँ
       तो होने नहीं देती
       बेकरारी पैदा करती है ,
       जाने मुझसे कौन सा अद्भुत
       काम करवाना चाहती है ।

       मैं जानती हूँ ,मैं इस लायक नहीं हूँ
       फिर भी मेरी आत्मा की बेकरारी ,
       मुझे चैन से बैठने ही नहीं देती।
       समुन्दर में लहरों की तरह छलांगे
                  लगती रहती है।

      मुझमें इतनी औक़ात कहाँ की मैं
       कुछ अद्वितीय कर पाऊँ ,
          इतिहास रच पाऊँ
       पर मेरी नियति मुझसे कुछ
       तो बेहतर कराना चाहती है।

       तभी तो शान्त समुन्दर में
       विचारों का आना -जाना लगा रहता है ।
       और मेरे विचार स्वार्थ से ऊपर उठकर
        सर्वजनहिताय के लिये कुछ करने को
            सदा आतुर रहते हैं ।

        बस मेरी तो इतनी सी प्रार्थना है परमात्मा से
          की वो निरन्तर मेरा सहयोगी रहे ।
                 मेरा मार्गदर्शन करता रहे ।
       विचारों के तूफानों को सही दिशा देकर
      शब्दों के माध्यम से कागज़ पर उकेरते रहती हूँ।
               
   


4 टिप्‍पणियां:

  1. रितु, नियति हम से करवाना चाहती है यह उसे ही पता। बहुत सुंदर अभव्यक्ति।
    गलती से चौथी लाइन में 'होती हूं' कि जगह 'होता हूँ' हो गया है।

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  2. ज्योति जी आप सब की टिप्पणियाँ हमे हतोत्साहित तो करती हैं और हमारा सही मार्गदर्शन भी होता है

    जवाब देंहटाएं
  3. कशमकश को उभारती आपकी प्रस्तुति विचारणीय है। बधाई।

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    उत्तर
    1. रविन्द्र जी आपकी टिप्पणी उत्त्साह वर्जन के लिये महत्वपूर्ण है ।

      हटाएं

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