**मैं बेटी हूँ यही तो मेरा सौभाग्य है**

जब मैं घर में बेटी बनकर जन्मी

सबके चेहरों पर हँसी थी ,

हँसी में भी ,पूरी ख़ुशी नहीं थी,

लक्षमी बनकर आयी है ,शब्दों से सम्मान मिला ।

माता - पिता के दिल का टुकड़ा ,

चिड़िया सी चहकती , तितली सी थिरकती

घर आँगन की शोभा बढ़ाती ।

ऊँची-ऊँची उड़ाने भरती

आसमाँ से ऊँचे हौंसले ,

सबको अपने रंग में रंगने की प्रेरणा लिए

माँ की लाड़ली बेटी ,भाई की प्यारी बहना ,पिता की राजकुमारी बन जाती ।

एक आँगन में पलती,   और किसी दूसरे आँगन की पालना करती ।

मेरे जीवन का बड़ा उद्देश्य ,एक नहीं दो-दो घरों की में कहलाती ।

कुछ तो देखा होगा मुझमे ,जो मुझे मिली ये बड़ी जिम्मेदारी।

सहनशीलता का अद्भुत गुण मुझे मिला है ,

अपने मायके में होकर परायी ,  मैं ससुराल को अपना घर बनाती ।

एक नहीं दो -दो घरों की मैं कहलाती ।

ममता ,स्नेह ,प्रेम ,समर्पण  सहनशीलता  आदि गुणों से मैं पालित पोषित                                                                                                     मैं एक बेटी ,मैं एक नारी ....

मेरी  परवरिश  लेती है , जिम्मेवारी , तभी तो धरती  पर सुसज्जित है ,

ज्ञान, साहस त्याग समर्पण प्रेम से फुलवारी    ,

ध्रुव , एकलव्या  गौतम ,कौटिल्य ,चाणक्य वीर शिवजी

वीरांगना "लक्षमी बाई ," ममता त्याग की देवी  "पन्ना धाई",आदि जैसे हीरों के शौर्य से गर्वान्वित है भारत माँ की फुलवारी

1 टिप्पणी:

  1. रीतू जी , क्या खूब लिखा है आपने, सच्ची बात कही कि कभी बेटी ,कभी पत्नी और कभी माँ और भी ना जाने कितने रिश्तों को बड़ी खूबसूरती से निभाते आई है नारी ,बेहतरीन रचना ...

    एक नई दिशा !

    जवाब देंहटाएं

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...