ठंडी -ठंडी छाँव "माँ"
फरिश्तों के जहां से , वातसल्य कि सुनहरी चुनरियाँ ओढे ,
सुन्दर, सजीली ,मीठी ,रसीली ,
दिव्य आलौकिक प्रेम से प्रका शित ममता की देवी 'माँ '
परस्पर प्रेम ज्ञान के दीपक जला ती रहती।
ममत्व की सुगन्ध कि निर्मल प्रवाह धारा
प्रेम के सुन्दर रंगो से दुनियाँ सजाती रहती
समर्पित पूर्ण रूपेण समर्पित '
ममता की ठंडी -ठंडी छाँव देने को ,
पवित्र गंगा की धारा बन ,अवगुण सारे बहा ले जाती।
निरंतर बहती रहती ,बच्चों कि जिंदग़ी सवांरने मे स्वयँ को भूल
जीवन बिता देती ,
दर्द मे दवा ,बन मुसकराती रहती।
बिन कहे दिल कि कर जाती
जाने उसे कहाँ से आवाज़ आती ,
सभी बड़े -बड़े पदों पर बैठे जनों कि जननीं है, जननीं कि कुर्बानी।
पर उसके दिल कि किसी ने नहीं जानी ,
वही है ,दुर्गा , वही है लक्ष्मी ,सरस्वतीं ,काली
दुनियाँ सारी उसी से ,
यही तो है , दिव्य ,अलौकिक जननीं कि निशानी
बड़ी विचित्र ,है'' माँ '' के दिल कि कहानी।
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