'' परियों वाली ऑन्टी ''
उस नन्हें बच्चे कि रोने कि आवाज़ें मानो कानोँ को चीर रही थीं। दिल में एक गहरी चोट कर रही थी। बहुत सोचा दिल नहीं माना . मैंने आख़िर दरवाजा खोलकर देख ही लिया।
देखा तो दिल पहले से भी अधिक दुः खी हो गया ,पांच साल कि नन्ही बच्ची दो साल के अपने छोटे भाई को लिये घर के बाहर बैठे थी और अपने भाई को सँभाल रही थीं। कई तरह के यत्न कर रही थी कि उसका भाई किसी तरह रोंना बन्द कर दे। पर शायद वो भूखा था। वो बहिन जो सवयं की देख -रेख भी ढंग से नही कर सकती थी वह बहिन अपने भाई को बड़े यत्न से सँभाल रही थीं बहिन का फर्ज निभा रही थी।
बहुत पीड़ा हो रही थी उन बच्चों को देखकर ,शायद पेट कि क्षुधा को शान्त करने के लिये वह लड़की अपने भाई को लेकर कभी किसी के घर के आगे बैठती कभी किसी के -----शायद कहीं से कुछ को खाने को मिल जाएं आखिर मेरे मन कि ममता ने मुझे धिक्करा मै जल्दि से उन बच्चोँ के खा ने के लिये कुछ ले आई , लड़की ने तो झट से रोटी और सब्जी खा ली , परंतू भाई अभी भी रो रहा था ,वह छोटा था ,मैने उसके भाई के लिये कुछ बिस्कीट खाने को दिये फ़िर जाकर वह बच्चा शान्त हुआ।
मेरे पूछने पर कि वो कहाँ रहती है उसके माँ -बाप कहाँ हैं ,वह बच्ची बोळी वो पडोस मे एक नई बिल्डिंग बन रही है न मेरी मा तो वहाँ मज़दूरी करती है, थक जाती है ना इस लिये भाई को ढूध नहि पिला पाती ---
मै हैरान थी कि इतनी छोटी सी उम्र मे कितना समझदार बना दिया है वक़्त ने इस बच्ची को , माइन पूछा पिता जी कहाँ है तो बोली पिताजी तो घर पर ही रहते हैं माँ और हम जब शाम को घर जाते हैं तो मा ख़ाना बनती है पिताज़ी झगड़ा करते रहते हैं मेरे पिताजी हमारे साथ खेलते भी नहीं ,जब ख़ाना बन जाता है तब हम सब खान खाते हैँ और ,फ़िर पितजी मा से झगड़ा करती हैं कुछ पैसे लेते है ,फ़िर कही बाहर चले जाते हैँ ,फ़िर थोड़ी देर बाद आते हैं और ठीक से चल भी नही पा रहे होते हैं गिरते -गिरते लुढ़कते -लुढ़कते घर पहुँचते हैं फ़िर खटिया पर गिरते हैं और सो जाते हैं।
वह लड़की बड़े दर्द भरी आवा ज मे बॉली ऑन्टी ह्मारे पितजी ऐसे क्योँ है सबके तो ऐसे नहीं होते ,ऑन्टी मेरा भी स्कूल जाने क मन करता है पर मै क्या करूँ ,,पता नही हम स्कुल जा भी पायेंगे या नही ,मैने ने उस बचची के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा जरूर कल से हि तुम स्कुल जाऊगी तुम्हारे पिताजी भी ठीक हो जाएंगे हम उनको दवा देंगे। ----वो बच्ची मेरे गले लग गयी ,खुश होते हुए बोली सच ऑन्टी आप तो परियों वाली आन्टी हो।
मेरे पास शब्द नही थे --बच्ची के गाल पर फेरते हुए मानो मैने उसके दर्द को दूं र करने की शपथ ले ली थी कि आज से ये बच्ची हमेशा मुस्कराती रहेगी। पड़ लिखकर आगे बढ़ेगी ---------
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