*** जीतना सीखें****

           * जितना सीखें*

कई बार ऐसा होता है की हमें किसी भी कार्य में सफलता हासिल नहीं होती । हमारी जी तोड़ मेहनत के बावजूत हमें अपनी मंजिल नहीं मिलती ,हम अन्दर से बुरी तरह टूट जाते हैं हर रास्ता अपना लिया होता कोई और रास्ता नजर नहीं आता।

हम निराशा के घने अन्धकार में घिरने लगते हैं,हमारा किसी काम में दिल नहीं लगता ।हम स्वयं को निठल्ला समझने लगते हैं यहाँ तक की दुनियाँ वाले भी हमें बेकार का या किसी काम का नहीं है ,समझकर दुत्कारते रहते हैं
और यही निराशा हमें बुरी तरह से तोड़ कर रख देती है।
और हम आत्महत्या तक के बारें में तकसोचने लगते हैं

1. सबसे पहले तो अपनी हार से निराश मत होइये

2, हार और जीत तो जीवन के दो पहलू हैं ।

3.हार की वजह ढूंढने की कोशिश करिये ।

4.अगर फिर भी सफलता नहीं मिलती तो रास्ता बदल लिजीये।

5.प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अलग पहचान होती है

6.सारे गुण एक में नहीं होते ,अपनी विशेषता पहचानिये।

7.आप में जो गुण है उसे निखारिये अपना सौ प्रतिशत लगा दीजिये सफलता निश्चित
 आपके कदम चूमेगी ।

8.बार -बार प्रयास करने पर भी अगर किसी काम में सफलता नहीं मिल रही है तो काम करने का तरीका बदल कर देखिये ।

9.नकारात्मक विचार जब भी आप पर हावी होने लगें तो तुरन्त अपने विचार बदल लीजिये ।

10 हमेशा सकारात्मक सोचिये ।और कभी भी किसी के जैसा बनने की कोशिश मत करिये ।

11.आप अपने स्वभाव में जियें और अपने आन्तरिक गुणों को पहचान कर उन्हें निखारिये।

12.अपने रास्ते खुद बनाईये।

13. कभी भी लकीर के फ़कीर मत बनिये ।

14. हमेशा अच्छा सोचिये ।

15.अपनी नयी पहचान बनाइये अपने रस्ते अपनी मंजिले स्वयं तैयार कीजिये ।

16.याद रखिये चलना तो अकेले ही पड़ता है ,सफलता पाने के लिए ।

16.दुनियाँ की भीड़ तो तब इकठ्ठी होती है ,जब रास्तें तैयार हो जाते है ।

17.सफलता के बाद तो हर कोई पहचान बढाना चाहता है ।

8.सकारात्मक सोच ही हमें आगे बड़ाने में सहायक होती है।

19 .नकारात्मक सोच अन्धकार से भरे बंद कमरे मे बैठे रहने के सिवा कुछ भी नहीं ।

20.उजियारा चाहिये तो अँधेरे कमरे में प्रकाश की व्यवस्था करनी पड़ेगी ।
21.यानि  नकारात्मक विचारों रुपी अन्धकार को दूर करने के लिये सकारात्मक विचार रुपी उजियारे की व्यवस्था करनी पड़ेगी ।

21.याद रखिये दूनियाँ में अन्धकार भी है ,और प्रकाश भी   ! तय हमें करना  है की हमें क्या चाहिए ।
22 . हमारी हार या जीत हमारे स्वयं के संकल्पों की शक्ति है।
23.इस धरती पर मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है ,जो अपने संकल्पों से अनहोने काम कर सकता है ।
24.कोई भी व्यक्ति शरीर से कमजोर या ताकतवर हो सकता है ।
25.परन्तु शुभ संकल्पों की शक्ति बहुत ही श्रेष्ठ और अद्वितय होती है ।

*अन्नदाता *

धरती पर इन्सानों का भागवान
मेरे देश का किसान अन्नदाता
तू अन्नदाता फिर भी तेरा क्यों
कमतर है ,सम्मान प्रकृति की
मार भी तुझे सहनी पड़ती है।
कभी तन को झुलसा देने वाली गर्मी ,
कहीं बाड़ का प्रकोप ,कभी सूखे का कहर
जो अन्नदाता है उसे ही अपने परिवार की जीविका
के लिए पीना पड़ता है ज़हर
और कभी सूली पर लटक
देता है प्राण ।।।
हाय मेरे देश का किसान
सर्वप्रथम किसानो दो को उच्चतम स्थान
उन जैसा नहीं कोई महान
मै दिल से करती हूँ तेरा सम्मान ।
ऐ किसान तू नहीं कोई साधारण इन्सान
तू अन्नदाता है ,इस सृष्टि का भगवान ।
तू तपति दोपहरी में खेतों मे काम करता है
सूखी रोटी ,तन पर एक वस्त्र अभावों में अक्सर
तेरा जीवन गुजरता है।
अपनी आजीविका चलाने को, अपने और अपने परिवार
को दो रोटी खिलाने को तू ,न जाने कितनों के पेट भरता है ऐ किसान।
ऐ मेरे देश के किसान ,तू महान है ।
तेरा क्या सम्मान करूँ ।तू स्वयं ही सम्माननीय ।
परमात्मा ने अपने ही कुछ दूतों को धरती पर किसान बनाकर भेजा होगा ।
नहीं तो यहाँ तो सबको अपने -अपने पेटों की पड़ी है ।
किसानों का सम्मान करो ,भारत एक कृषि प्रधान देश है अभिमान करो।
किसान नहीं होंगे तो ,भोजन कहाँ से लाओगे
क्या ? ईंट ,पत्थर ,रेता ,बजरी ,चबाओगे ।

**मै इंसान **

 ना जाने क्यों भटक जाता हूँ ,
 अच्छा खासा चल रहा होता हूँ," मैं"
 पर ना जाने क्या होता है ,
 ना जाने क्यों राहों के बीच मे ही उलझ जाता हूँ" मै"
जानता हूँ ,ये तो मेरी राह नहीं ,
मेरी मंजिल का रास्ता यहाँ से होकर तो नहीं जाता,
फिर भी न जाने क्यों ?आकर्षित हो जाता हूँ "मैं "
भटक जाता हूँ ,"मैं" हासिल कुछ भी नहीं होता
बस यूँ ही उलझ जाता हूँ "मै"फिर निराश -हताश
वापिस लौटकर अपनी राहों की और आता हूँ "मैं"
फिर आत्मा को चैन मिलता है ।
अपनी राह से कभी ना भटक जाने की सौगंध लेता हूँ।"मैं"
जीवन एक सुहाना सफ़र है ।
"मैं"मुसाफिर"अपने किरदार में सुंदर -सुंदर रंग भरना चाहता हूँ "मैं" बस हर दिल मैं प्यार भरना चाहता हूँ" मैं"
          बस जिन्दगी के नाटक मे अपना किरदार बखूबी निभाना चाहता हूँ "मै"

*तुम कभी मत टूटना *

 जब मैं निकला था , मौसम बड़ा सुहाना था,
 कुछ पल बहुत हँसे मुस्कराए ,सुंदर -सुंदर ख्वाब सजाये ,
 कुछ ख्वाब पूरे हुए ,कुछ अधूरे धूप तेज निकली ,गर्मी से मेरे होंठ सूखने लगे थे।
 ख्वाब अभी पूरे भी नहीं हुए  थे ,राहों में कंकड़ आ गये ,कंकड़ हटाये फिर चलना शुरू कर  दिया ,फिर बाधाओं पर बाधा मैं कुछ पल रुका ,फिर चल दिया ,मैं चल ही रहा था ,तेज आँधी आ गयी फिर तूफ़ान पर  
तूफ़ान मैं डरा सहमा , टूट सकता था ,और बिखर भी सकता था , पर मैं टिका रहा , माना की वक़्त मेरा साथ नहीं दे रहा था।  परन्तु मेरा हौंसला भी कम्बखत मेरा साथ नहीं छोड़ रहा था ।
थोड़ा वक़्त तो जरुर लगा ,मैं निराश भी हुआ ,परन्तु मेरे हौंसलों ने मरहम का काम किया तूफानों की चोटें अब भरने लगीं थी ।   सफ़र अब भी जारी था मेरा विश्वास मेरा हौंसला ही कम नहीं होने दे रहा था ।    
मौसम फिर से बदला ,सावन आया बादल बरसे खुशियों की बरसात हुई ।
मेरी आत्मशक्ति ने मेरी पीठ थपथपाई  ! क्योंकि मेरी आत्मा का विश्वास कभी टूटा नहीं ,उस  दृण  निश्चय विश्वास ने मुझे मेरी मंजिल तक पहूँचाया। जिन्दगी की दौड़ का एक फलसफा ही समझ आया उतार -चढाव तो आयेंगे ही धूप  से  पैर  भी झुलसेगें , आँधियों से सपने भी बिखरेंगें  पर  ऐ मानव  तुम ना बिखरना कभी ना टूटना  मंजिले तो मिल जायेंगी ,परन्तु अगर तुम बिखरे तो सब खत्म हो जाएगा ।।।।।।

**आँगन की कली**

आँगन की कली *

vlcsnap-2015-07-23-11h14m17s66जब मैं घर में बेटी बनकर जन्मी
सबके चेहरों पर हँसी थी ,
हँसी में भी ,पूरी ख़ुशी नहीं थी,
लक्षमी बनकर आयी है ,शब्दों से सम्मान मिला ।
माता – पिता के दिल का टुकड़ा ,
चिड़िया सी चहकती , तितली सी थिरकती
घर आँगन की शोभा बढ़ाती ।
ऊँची-ऊँची उड़ाने भरती
आसमाँ से ऊँचे हौंसले ,
सबको अपने रंग में रंगने की प्रेरणा लिए
माँ की लाड़ली बेटी ,भाई की प्यारी बहना ,पिता की राजकुमारी बन जाती ।
एक आँगन में पलती,   और किसी दूसरे आँगन की पालना करती ।
मेरे जीवन का बड़ा उद्देश्य ,एक नहीं दो-दो घरों की में कहलाती ।
कुछ तो देखा होगा मुझमे ,जो मुझे मिली ये बड़ी जिम्मेदारी।
सहनशीलता का अद्भुत गुण मुझे मिला है ,
अपने मायके में होकर परायी ,  मैं ससुराल को अपना घर बनाती ।
एक नहीं दो -दो घरों की मैं कहलाती ।
ममता ,स्नेह ,प्रेम ,समर्पण  सहनशीलता  आदि गुणों से मैं पालित पोषित                                                                                                     मैं एक बेटी ,मैं एक नारी ….
मेरी  परवरिश  लेती है , जिम्मेवारी , तभी तो धरती  पर सुसज्जित है ,
ज्ञान, साहस त्याग समर्पण प्रेम से फुलवारी    ,
ध्रुव , एकलव्या  गौतम ,कौटिल्य ,चाणक्य वीर शिवजी
वीरांगना “लक्षमी बाई ,” ममता त्याग की देवी  ”पन्ना धाई”,आदि जैसे हीरों के शौर्य से गर्वान्वित है भारत माँ की फुलवारी

* योग्यता को आरक्षण की लाठी की आव्य्शाकता नहीं *

  • बस अब और नहीं आरक्षण की आड़ में राजनीति अब और नहीं,आरक्षण की चाह ,और इतना भक्षण अपने स्वार्थ के लिये अन्य लोगों को नुकसान पहुँचना ।
    6h

  • बन्द करो बस बन्द करो,
    योग्यता को आरक्षण की लाठी की आव्य्शाकता नहीं *

  • आरक्षण का ये घिनौना खेल बन्द करो ,आरक्षण का की आड़ में अपनी मात्रभूमि में आतंक ना फैलायें आज देश
    में वो स्थिथि आ चुकी की है ,आरक्षण के हकदार वास्तव में आर्थिक रूप से कमजोर लोगे ही होने चाहिये , अगर किसी भी व्यक्ति में योग्यता है तो दुनियाँ की कोई ताकत आपको आगे बढने से नहीं रोक सकती ,योग्यता के आधार पर आगे बढिए ,आरक्षण की लाठी लेकर आगे बढना यानि स्वयं को कमजोर समझना मेरी देश वासियों से विनती है ,कृपया आरक्षण के नाम पर दँगा फसाद ना फैलाएँ स्वयं को काबिल और सक्षम बनाएँ अपनी क़ाबलियत व् योग्यता के बल पर आगे बढिए ,क्या बहते हुए पानी को कोई रोक पाया है क्या कभी रोशनी की हल्की सी किरण भी अगर जो हो तो वो झरोंकों से बाहर निकल ही जाती है ,योग्यता को आरक्षण की लाठी की कोई आवय्शकता नहीं योग्यता को अपाहिज न बनाइये 

* वीर सिपाही हम*

शोला हम,चिंगारी हम
आँधियों के वेग की हिस्सदारी हम
सूर्य के समान हम में है तेज
हिमखंडों की भांति शीतल भी हम ,
हिमालय सा विशाल सीना है ,अपना
धीर भी हम ,वीर भी हम ।
मात्रभूमि की रक्षा प्रहरी हम ,
मात्रभूमि के  सच्चे सपूत हैं हम ,वीर सिपाही हम।
आँधियों से लड़ना शौंक है अपना
तूफानों में तैरती कश्तियाँ हैं,अपनी ।
आँखों में भरें हैं अंगारे ,बाजुओं में फौलाद है ,अपनी
एक धाहड़ भी जो मारे तो ,दुश्मन भाग जाते लौट के उलटे पाँव । मात्रभूमि की आन में ,मात्रभूमि की शान में
हम वीर सिपाही खड़े ,हैं बन देश के रक्षा प्रहरी ।
मात्रभूमि है ,माँ के जैसी । माँ की ममता है ,कवच हमारी
जो शून्य डिग्री के तापमान में रहकर भी चलती रहती है सांसें हमारी ।
मात्रभूमि के विरोध में जो एक आवाज भी उठ जाये तो माफ़ नहीं होगी गद्दारी ।।देश की रक्षा है, अपनी जिम्मेदारी ।
हनुमत थप्पा सी साँसे हमारी ।
वीर भगत सिंह,मंगल पांडे ,लक्ष्मी बाई महाराणा प्रताप जैसे
कई वीरों से सुसज्जित है , भारत माँ के हर आँगन की किलकारी।।।।


आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...