“जब से मैंने अन्तरात्मा की आवाज सुनी
उसके बाद ज़माने में किसी की नहीं सुनी “
“सभ्य, सुसंस्कृत -संस्कारों”से रहित
ज़िन्दगी कुछ भी नहीं —-“सभ्य संस्कारों “
के बीज जब पड़ते हैं , तभी जीवन में नये-नये
इतिहास रचे जाते हैं ।
ज़िन्दगी के सफ़र में चलते-चलते “
“डरा-सहमा ,घबराराया ,
थका -हारा ,निराश
सब कोशिशें, बेकार
मैं असाहाय ,बस अब
और नहीं , अंत अब निश्चित था
जीवन के कई पल ऐसे गुज़रें “
“ज़िन्दगी की जंग इतनी भी आसान ना थी
जब तक मैंने अन्तरात्मा की आवाज़ ना सुनी थी
“तब तक “
जब से अन्तरात्मा की आवाज़ सुनी
उसके बाद ज़माने में किसी की नहीं सुनी “
“कर्मों में जिनके शाश्वत की मशाल हो
उस पर परमात्मा भी निहाल हो “
“नयी मंज़िल है ,नया कारवाँ है
नये ज़माने की , सुसंस्कृत तस्वीर
बनाने को ,’नया भव्य , सुसंस्कृत
खुला आसमान है “
“एक आवाज़ जो मुझे हर -पल
दस्तक देती रहती है , कहती है
जा दुनियाँ को सुन्दर विचारों के
सपनों से सजा , पर ध्यान रखना
कभी किसी का दिल ना दुखे
संभल कर ज़रा .......
सँभल कर ज़रा..,.,