Ritu Asooja Rishikesh , जीते तो सभी है , पर जीवन वह सफल जो किसी के काम आ सके । जीवन का कोई मकसद होना जरूरी था ।परिस्थितियों और अपनी सीमाओं के अंदर रहते हुए ,कुछ करना था जो मेरे और मेरे समाज के लिए हितकर हो । साहित्य के प्रति रुचि होने के कारण ,परमात्मा की प्रेरणा से लिखना शुरू किया ,कुछ लेख ,समाचार पत्रों में भी छपे । मेरे एक मित्र ने मेरे लिखने के शौंक को देखकर ,इंटरनेट पर मेरा ब्लॉग बना दिया ,और कहा अब इस पर लिखो ,मेरे लिखने के शौंक को तो मानों पंख लग
*मेघों की पालकी *
*मौसम वर्षा का था
नील गगन में मेघों
का राज था
मेघों का समूह गगन
में उमड़-घुमड़ कर रहा था
विभिन्न आकृतियां बना-बना
कर मानों अठखेलियां
कर रहा था जी भर के
अपनी मनमर्जीयां कर रहा था
मेघों का राज था
श्वेत मखमली मेघों का टुकड़ा
आचनक धरती पर उतर आया
मुझे अपने संग
श्वेत मखमली पालकी में बिठाकर
सुन्दर सपनों की दुनियां में
विहार करने को ले गया
मेघों की गोद और मैं रोमांचित
हृदय की धड़कने प्रफुल्लित
स्वर्ग सी अनुभूति
जादुई एहसास सिर्फ
प्रसन्नता ही प्रसन्नता
अक्लपनिय ,अद्भुत दुनियां
क्षण भर की सही
बेहतरीन बस बेहतरीन
फरिश्तों से मिलन की
अतुलनीय अद्वितीय कहानियां *
*क्यों ना बस अच्छा ही सोचें *
**क्यों अपने संग बेवजह का बोझ
लेकर चलूं क्यों ना हल्का हो जाऊँ और
बिना पंखों के भी ऊंचा उड़ूं
क्योंकि जो जितना हल्का होगा
उतना ऊंचा उड़ेगा
क्यों ना कुछ अच्छा सोचें
अच्छा ही बोले अच्छा ही सुने
और अच्छा ही करें
और फिर अच्छा करते-करते
जब सब और अच्छा ही हो जाए
अच्छों की दुनिया अच्छी ही होती है
ऐसा नहीं की की बुराई नहीं आती
मुश्किलें नहीं आती
आती तो है कठिनाइयां बहुत आती हैं
परंतुअच्छा सोचने वालों के लिए हर मुश्किल भी अच्छाई की ओर ले जाने वाली सीढ़ियां बन जाती है
इल्जाम भी लगते हैं
स्वार्थी घमंडी अहंकारी
होने की तोहमतें भी लगती हैं
पर जो अच्छा सोचता है
उसे आदत पड़ जाती
वो बुराई के नरक में जाने से
कतराता है झूठ के जाल में
फंसने से डरता है
जो सच्चा होता है वो
आजाद हो जाता है
झूठ के नकाब के मायाजाल से
फ़िर क्यों ना मैं भी उडूं
मदमस्त ,बेफिक्र आसमां की ऊंचाइयों में
और अच्छा बनने की कोशिश करूं ।
लेकर चलूं क्यों ना हल्का हो जाऊँ और
बिना पंखों के भी ऊंचा उड़ूं
क्योंकि जो जितना हल्का होगा
उतना ऊंचा उड़ेगा
क्यों ना कुछ अच्छा सोचें
अच्छा ही बोले अच्छा ही सुने
और अच्छा ही करें
और फिर अच्छा करते-करते
जब सब और अच्छा ही हो जाए
अच्छों की दुनिया अच्छी ही होती है
ऐसा नहीं की की बुराई नहीं आती
मुश्किलें नहीं आती
आती तो है कठिनाइयां बहुत आती हैं
परंतुअच्छा सोचने वालों के लिए हर मुश्किल भी अच्छाई की ओर ले जाने वाली सीढ़ियां बन जाती है
इल्जाम भी लगते हैं
स्वार्थी घमंडी अहंकारी
होने की तोहमतें भी लगती हैं
पर जो अच्छा सोचता है
उसे आदत पड़ जाती
वो बुराई के नरक में जाने से
कतराता है झूठ के जाल में
फंसने से डरता है
जो सच्चा होता है वो
आजाद हो जाता है
झूठ के नकाब के मायाजाल से
फ़िर क्यों ना मैं भी उडूं
मदमस्त ,बेफिक्र आसमां की ऊंचाइयों में
और अच्छा बनने की कोशिश करूं ।
**किसान हमारा भगवान **
**किसी भी देश,प्रदेश समाज जाति का सबसे उच्चतम और सम्मानिय वर्ग अगर कोई है तो वो हैं हमारे किसान ,यानि अन्नदाता धरती पर मनुष्यों के भगवान ।
ऊंचे-ऊंचे पदों पर बैठे पदाधिकारी आज उन्नति और प्रग्रती की ऊंचाइयां छू रहे हैं यह तभी संभव है जब देश की सभी लोग तन-और मन से पुष्ट हों और यह तभी संभव है जब उन्हें पौष्टिक अन्न मिलेगा ।
अतः सर्वप्रथम देश का किसान सबसे उच्चतम पद पर होता है ।
**कृषक यानि अन्नदाता जिस वर्ग को समाज में सबसे ज्यादा समृद्ध होना चाहिए वही वर्ग यानि कृषक हम सब के लिए धरती पर हमारा अन्नदाता ही सबसे ज्यादा अभावों में जीवन जीता है । इससे बड़ी और क्या विडंबना होगी।
किसी भी मनुष्य को धरती पर जीवन जीने के लिए सबसे पहली और आखिरी आवयश्कता अन्न ही है ।
अन्न किसी भी रूप में, अन्न की खातिर ही मनुष्य की सबसे पहली दौड़ शुरू होती है ।
कोई भी मनुष्य दो वक़्त की रोटी के लिए मेहनत करना शुरू करता है ,कभी भी किसी ने इतनी गहराई से नहीं सोचा होगा की वो अन्न कहां से और कैसे आता है माना कि सबको ज्ञात है ।
एक कृषक तपती दोपहरी में खेतो में काम करता है
खेतों की मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए कठोर परिश्रम करता है एक कृषक का जीवन मेहनत और लगन की अद्भुत मिसाल होता है एक कृषक के वस्त्र और हाथ अपने खेतों की मिट्टी का हमेशा परिचय देते रहते हैं ।
वहीं दूसरा पहलू बड़े -बड़े पदों पर कार्यरत वातानुकूलित कक्षों में बैठे पदाधिकारी इन्हीं कृषकों और इनके मिट्टी से सने वस्त्रों को देख इनसे दूरी बनाते हैं ।
विषय विचारणीय है ,उसी मिट्टी से सने हाथों और मिट्टी में उपजे अन्न से ही हम सब की पेट की भूख मिटती है और हम तृप्त होते हैं
अन्न अमृत है ,अन्न और अन्नदाताओं कृषकों का यथोचित सम्मान होना आव्यशक है।
जिस तरह घर में गृहणी अगर प्रसन्न और स्वस्थ रहती है तो घर स्वर्ग बन जाता है उसी तरह अगर देश के अन्नदाताओं कृषकों को यथोचित सम्मान मिलेगा तो कृषक स्वस्थ और सम्पन्न रहेंगे तो देश भी उन्नति करेगा और देश खुशहाल और समृद्ध होगा।
*विरासत की सम्पत्ति *
**विरासत की सम्पत्ति* .....क्या आप जानते हैं विरासत की सम्पत्ति क्या है
पहले मुझे ज्ञात नहीं था, आज भी कई बार दुनियां के धंधों में उलझा हुआ, मैं भूल जाता हूं कि मुझे विरासत मैं बहुत कुछ मिला है ,परंतु मुझे इसका उपयोग करना नहीं आया ,या यूं कहिए मैं इससे अनभिज्ञ ही रहा ।
क्या आप जानना चाहेंगे मुझे विरासत में अपने पूर्वजों से क्या मिला ?
जी बिल्कुल ,आप भी और मैं खुद भी जानना चाहूंगी।
मुझे विरासत में उच्च संस्कारों का धन मिला ,जिसका सही से उपयोग करना मुझे आज तक नहीं आया ,परंतु अब आधुनिकता की दौड़ में भटकते-भटकते अनैतिकता के व्यवहार से पीड़ित विचलित मेरे मन को ,अपने उच्च संस्कारों की सम्पदा का ज्ञान हुआ आज जब मैंने इस सम्पदा को अपने जीवन में सही से व्यवहार में लाना शुरू किया ,मेरा जीवन सफल हुआ,मन की विचलितता शांत हुई ,
बाल्यकाल से ही विद्यालयों नैतिक और समाजिक शिक्षा का ज्ञान दिया जाता है ।
विद्यालयों में शिक्षकों द्वारा नैतिक शिक्षा के कई प्रेरणास्पद प्रसंग समझाए जाते हैं जो किसी समाज की स्वस्थ छवि बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
भारतीय इतिहास को विरासत के रूप में अमूल्य सम्पदा ओं के खजाने पर्याप्त मातृ में प्राप्त हैं । चारों वेद,अथर्ववेद ,यजुर्वेद,सामवेद श्रीमद भागवत गीता, रामायण , पुराण आदि इन सब ग्रंथों में ज्ञान के संपदाओं के खजाने निहित हैं ,जिसको इन खजानों में से ज्ञान रूपी सम्पदा और रतनों को जीवन में उतारना आ गया या यूं कहिए जिसने अपने जीवन में उतार लिए उसका जीवन सार्थक है वह दुनिया का सबसे धनवान मनुष्य है।
पहले मुझे ज्ञात नहीं था, आज भी कई बार दुनियां के धंधों में उलझा हुआ, मैं भूल जाता हूं कि मुझे विरासत मैं बहुत कुछ मिला है ,परंतु मुझे इसका उपयोग करना नहीं आया ,या यूं कहिए मैं इससे अनभिज्ञ ही रहा ।
क्या आप जानना चाहेंगे मुझे विरासत में अपने पूर्वजों से क्या मिला ?
जी बिल्कुल ,आप भी और मैं खुद भी जानना चाहूंगी।
मुझे विरासत में उच्च संस्कारों का धन मिला ,जिसका सही से उपयोग करना मुझे आज तक नहीं आया ,परंतु अब आधुनिकता की दौड़ में भटकते-भटकते अनैतिकता के व्यवहार से पीड़ित विचलित मेरे मन को ,अपने उच्च संस्कारों की सम्पदा का ज्ञान हुआ आज जब मैंने इस सम्पदा को अपने जीवन में सही से व्यवहार में लाना शुरू किया ,मेरा जीवन सफल हुआ,मन की विचलितता शांत हुई ,
बाल्यकाल से ही विद्यालयों नैतिक और समाजिक शिक्षा का ज्ञान दिया जाता है ।
विद्यालयों में शिक्षकों द्वारा नैतिक शिक्षा के कई प्रेरणास्पद प्रसंग समझाए जाते हैं जो किसी समाज की स्वस्थ छवि बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
भारतीय इतिहास को विरासत के रूप में अमूल्य सम्पदा ओं के खजाने पर्याप्त मातृ में प्राप्त हैं । चारों वेद,अथर्ववेद ,यजुर्वेद,सामवेद श्रीमद भागवत गीता, रामायण , पुराण आदि इन सब ग्रंथों में ज्ञान के संपदाओं के खजाने निहित हैं ,जिसको इन खजानों में से ज्ञान रूपी सम्पदा और रतनों को जीवन में उतारना आ गया या यूं कहिए जिसने अपने जीवन में उतार लिए उसका जीवन सार्थक है वह दुनिया का सबसे धनवान मनुष्य है।
*चिकित्सकों के सम्मान में*
**चिकित्सक **
**परमात्मा तन के पिंजरे में आत्मा रूपी ज्योत देकर जीवनदान देता है।
धरती पर जीवन जीते -जीते तन में कई संक्रमण हो जाते हैं जिससे शरीर रोगी बन कष्ट भोगता है ।
कई बार कुछ ऐसे संक्रमण भी होते हैं जो शरीर के लिए अत्यन्त कष्टदाई और जानलेवा होते हैं ।
तन की ऐसी कई बीमारियों और कष्टों से छुटकारा पाने के लिए धरती पर कई जड़ी-बूटियां औषधि रूप में उपलब्ध हैं जिसके लिए गहन अध्ययन और शोधों की आवयश्कता पड़ती है ।
रसायन विज्ञान के गहन अध्ययन व कठिन शिक्षा करने वाला एक चिकित्सक ,यानि एक डॉक्टर बनता है यह राह इतनी आसान भी नहीं पूरी पद्धति और कई वर्षों के गहन अध्ययन के बाद एक चिकित्सक तैयार होता है ।
एक चिकित्सक शपथ प्रार्थी होता है कि पूरी निष्ठा और भेदभाव के किसी भी रोगी के रोग का दूर करने में अपना सर्वोत्तम देगा ।
यह कभी नहीं सोचना की डॉक्टर को कोई लालच होता है,एक डॉक्टर का संपूर्ण जीवन लोगों के कष्ट दूर करने में ही व्यतीत हो जाता है।
अतः परमात्मा द्वारा प्राप्त आत्मा की ज्योत तो नित्य अमर है ।
परंतु यही ज्योत जब शरीर में प्रवेश करती है,तब मनुष्य जीवन का प्रारम्भ होता है ,
धरती पर रहते-रहते शरीर को कई असहनीय कष्ट और बीमारियां हो जाती हैं जिन कष्टों और बीमारियों से एक डॉक्टर बाहर निकलने में अपना संपूर्ण सहयोग प्रदान करता है ।
अतः एक चिकित्सक का संपूर्ण सम्मान कीजिए जब कोई भी मनुष्य किसी बीमारी के कष्ट से पीड़ा में होता है, तब वह एक चिकित्सक के पास ही जाता है चिकित्सक भी पूरी निष्ठा से रोगियों के रोग को दूर करने के लिए औषधियां देता है और यथायोग्य उपचार करता है ।
**परमात्मा तन के पिंजरे में आत्मा रूपी ज्योत देकर जीवनदान देता है।
धरती पर जीवन जीते -जीते तन में कई संक्रमण हो जाते हैं जिससे शरीर रोगी बन कष्ट भोगता है ।
कई बार कुछ ऐसे संक्रमण भी होते हैं जो शरीर के लिए अत्यन्त कष्टदाई और जानलेवा होते हैं ।
तन की ऐसी कई बीमारियों और कष्टों से छुटकारा पाने के लिए धरती पर कई जड़ी-बूटियां औषधि रूप में उपलब्ध हैं जिसके लिए गहन अध्ययन और शोधों की आवयश्कता पड़ती है ।
रसायन विज्ञान के गहन अध्ययन व कठिन शिक्षा करने वाला एक चिकित्सक ,यानि एक डॉक्टर बनता है यह राह इतनी आसान भी नहीं पूरी पद्धति और कई वर्षों के गहन अध्ययन के बाद एक चिकित्सक तैयार होता है ।
एक चिकित्सक शपथ प्रार्थी होता है कि पूरी निष्ठा और भेदभाव के किसी भी रोगी के रोग का दूर करने में अपना सर्वोत्तम देगा ।
यह कभी नहीं सोचना की डॉक्टर को कोई लालच होता है,एक डॉक्टर का संपूर्ण जीवन लोगों के कष्ट दूर करने में ही व्यतीत हो जाता है।
अतः परमात्मा द्वारा प्राप्त आत्मा की ज्योत तो नित्य अमर है ।
परंतु यही ज्योत जब शरीर में प्रवेश करती है,तब मनुष्य जीवन का प्रारम्भ होता है ,
धरती पर रहते-रहते शरीर को कई असहनीय कष्ट और बीमारियां हो जाती हैं जिन कष्टों और बीमारियों से एक डॉक्टर बाहर निकलने में अपना संपूर्ण सहयोग प्रदान करता है ।
अतः एक चिकित्सक का संपूर्ण सम्मान कीजिए जब कोई भी मनुष्य किसी बीमारी के कष्ट से पीड़ा में होता है, तब वह एक चिकित्सक के पास ही जाता है चिकित्सक भी पूरी निष्ठा से रोगियों के रोग को दूर करने के लिए औषधियां देता है और यथायोग्य उपचार करता है ।
*अभिव्यक्ति की दौड़ *
कर्ता है क्योंकि कारण है
कारण है ,क्योंकि करण है
अभिव्यक्ति की आजादी
यानी समक्ष रखना तात्पर्य
व्यक्त करना
यानि जो समक्ष है प्रदर्शित हो रहा है
अभिव्यक्ति हो रहा है वही सत्य है।
सुर है ,संगीत है
शब्दों की मधुर
ध्वनि संग लय
और ताल की
मीठी तान है
भावों की गहराई के अर्थ
की भी महिमा है।
बहुत सुंदर
संगीत वायुमंडल
में व्यक्त
क्यों अव्यक्त है
वायुमंडल में ध्वनि तरंगों
से ही तो व्यक्त होता सरगम है
तरंगों क्या कोई अर्थ नहीं
नित्य शाश्वत आभामंडल का
ही सम्पूर्ण तेज है।
विद्वता में भी वही तो तेज है
प्रकृति ही सौंदर्य
सौंदर्य की तुलना
कोई और नहीं
बाकी सब उपमा तुलनात्मक
यानि कर्ता कारण है
यदि कर्ता का महत्व है
वो उच्च है ,तो कारण भी
महत्वपूर्ण सर्वोच्च और शाश्वत है ।
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