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प्रकृति प्रेमी , घण्टों दरिया किनारे बैठना , आती - जाती लहरों से मानों बातें करना , कभी किसी पहाड़ की चोटी पर चढ़ जाना , ऊँचाइयों से अपनी धरती माँ को निहारना ........वृक्षों और वनस्पतियों तो मानो , लेखक केशव कुमार की प्रेरणा थे ,उनका तो कहना था की भगवान अगले जन्म में उन्हें वृक्ष बनायें , क्योंकि वृक्ष हर हाल में उपयोगी होता है , कभी
छांव बनता है ,फल देकर किसी की भी भूख मिटाता है , प्राणवायु देता है वृक्ष , उसकी लकड़ी भी उपयोगी होती है , मानो वृक्ष पूर्ण रूपेण उपयोगी व समर्पित होते हैं
हर दिन की तरह केशव कुमार ,आज भी अपने शहर की मशहूर पुष्पों की दुकान जिसका नाम “पुष्प वाटिका “था , जाकर रूक गये और , रंग-बिरंगे खिले - खिले पुष्पों को निहारने लगे । हर दिन की तरह उस फूलों की दुकान पर काम करने वाले एक लड़के ने आकर केशव कुमार को बैठने के लिये एक कुर्सी आगे बड़ा दी , केशव कुमार मुस्कुराते हुए उस लड़के “लम्बू “से से बोले तु अपना काम कभी नहीं भूलता जा दुकान पर , भाई जी का हाथ बँटा ,
वरना वो तुझे ग़ुस्सा करेंगे , हाँ बाबूजी आप सही कहते हैं , मैं जाता हूँ , तभी एक ग्राहक आया , उसने सभी पुष्पों के दाम पूछे , और आगे बड़ गया , तभी दुकान मालिक ने अपने यहाँ काम करने वाले लड़के लम्बू को आवाज़ दी ,और बोले तेरे से एक भी ग्राहक तो पटता नहीं , बस बातें करा लो इधर- उधर की , लम्बू क्या करता वो तो मालिक का ग़ुलाम था ,उसे तो कड़वी बातें सुनने की आदत हो गयी थी ।
अरे ओ “लम्बू” अन्दर आ , नाम का ही लम्बू है , बस ...अक़्ल छोटी रह गयी तेरी .....
केशव बाबू बाहर बैठे सोच रहे थे , काम तो पुष्पों का ज़ुबान में कड़वाहट भरी है ....कैसे बिकेंगे पुष्प इसके .....
केशव बाबू थे प्रकृति प्रेमी , शिमला की हसीन वादियों में उन्हें स्वर्ग से नजारों का आनन्द आता था ,
प्रकृति को निहारना , पक्षियों संग उड़ने के सपने देखना , उनकी बोली समझने के कोशिश करना , उन्हें बहुत सुहाता था वृक्षों की लताएँ , उन पर फल, फूल , इत्यादि , पर्वत शृंखलायें, झरने ,झील , प्रकृति की सारी कारीगरी मानों उन्हें हर पल प्रेरित करती रहती थी , और उनकी भावनायें कविता , कहानी, आदि का रूप ले लेती थीं , और उनमे छिपी लेखक प्रथिभा का प्रकट करती थी ।
इतने में उस पुष्प वाटिका में एक ग्राहक आया , सामने केशव कुमार बैठे थे , उन्हें दुकानदार समझ वो ग्राहक पुष्पों के दाम पूछने लगा , केशव कुमार लगभग हर रोजही वहाँ बैठा करते थे तो , उन्हें लगभग सभी के दामों का अंदाज़ा रहता था , उन्होंने दाम बता दिया , ग्राहक ने रुपये निकाले केशव कुमार को पकड़ाये और अपने पुष्प लिये और चलता बना ,
इतने में दुकानदार की नज़र केशव कुमार पर पड़ी , केशव कुमार ने रुपये आगे बड़ाते हुए कहाँ लो तुम्हारे रूपय
तुम कहते हो मैं किसी काम का नहीं , देखो मैंने तुम्हारे पुष्प बिका दिये ... दुकानदार ख़ुश होते हुए .. पता है तुमने मेरे दस रुपये का नुक़सान कर दिया , नुक़सान वो कैसे पता है ,आज ये फूल महँगा आया है , चलो कुछ तो किया तुमने केशव कुमार , आगे से किसी ग्राहक को पुष्प देते समय दाम पूछ लिया करो...,,,
इतने में पुष्प वाटिका दुकान का मालिक , केशव कुमार के पास आकार बैठ गया , केशव कुमार के काँधे पर हाथ रखते हुए बोला चलो आज तुमको चाय पिलाता हूँ , चल लम्बू दो चाय लेकर आजा ,और तू वहीं पी आना चाय .....
केशव कुमार तो हमेशा पुष्प वाटिका के पुष्पों को ही निहारता रहता था , दुकान मालिक भी हमेशा की तरह आज भी केशव कुमार को टोकने लगा , बोला तुम तो मेरे पुष्पों को नज़र लगा कर रहोगे ,
केशव कुमार बोला अरे भाई मैं क्या नज़र लगाऊँगा तुम्हारे पुष्पों को ....
चलो तुम्हें पुष्पों पर कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ ।
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“ मैं पुष्प हूँ “
मैं जो खिलता हूँ ,
घर आँगन की शोभा बड़ाता हूँ
सारा आँगन महकाता हूँ ,
मेरी सुगन्ध समीर संग सारे वायुमंडल
को महकाती है , ख़ुशी हो या ग़म
मैं हर जगह काम आता हूँ , “मैं पुष्प “
अपने छोटे से जीवन को सार्थक कर जाता हूँ ।
बहुत अच्छी पंक्ति लेखक जी .... आपको और कोई काम है या नहीं तुम्हारे घर का ख़र्चा कैसे चलता है , केशव कुमार बोले , अरे तुम्हें तो पता है मेरी प्रिंटिंग प्रेस है , घर ख़र्च तो उसी से चल जाता है ।
परन्तु तुम तो जानते हो मुझे लिखने का शौंक है , मेरी एक किताब छप चुकी है दूसरी आने वाली है ।
इतने में चाय आ गयी , दोनो ने चाय पी ।
“🌺🎉पुष्प वाटिका के मालिक के मन में एक बात खटक रही थी ,बोला ये जो तुम अपना दिमाग़ लिखने में लगाते हो यही दिमाग़ किसी और काम में लगाओ तो जानते हो केशव कुमार ..तुम आसमान की ऊँचाइयाँ छू सकते हो ..... केशव कुमार बोला भाई मैं जानता हूँ, तुम्हें क्या पता मैं आज भी आसमान की ऊँचाइयाँ ही छू रहा हूँ ।
पुष्प वाटिका वाला बोला तुम लेखकों से बातें करा लो बड़ी - बड़ी “जेब में कोड़ी नहीं , चले विश्व भ्रमण पर”..........
केशव कुमार बोले , तुम लोगों को लेखकों के बारे में अपनी सोच बदलनी होगी .......
“जैसे तुम्हारी पुष्प वाटिका है , तुम सुन्दर -सुन्दर रंग -बिरंगे पुष्पों का कारोबार करते हो और उन पुष्पों से सुन्दर साज सज्जा कीजाती है । “वैसे ही हम लेखक ,विचारक ,कवि आदि , इस दुनियाँ को इस समाज को अपने सुन्दर विचारों से सजाने की इच्छा रखते हैं ,कुछ मनमोहक , प्रेरक और ज्ञानवर्धक लिखकर समाज को सुन्दर सभ्य ,विचारों से सजाना चाहते है और सजाते भी हैं ।
एक सच्चा लेखक , सुन्दर , सभ्य ,समाज की कल्पना करता है , वहीं समाज को वर्तमान परिवेश का आइना भी दिखाता है , सही मायने में वो एक लेखक एक समाजसुधरक क़लम सिपाही होता है ।
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