“ आऊँगा बहुत याद आऊँगा
सफ़र में कुचैले निशान छोड़ जाऊँगा “
सफ़र में कुचैले निशान छोड़ जाऊँगा “
सफ़र हो तो ऐसा ,
राह भी अपनी है,
मंज़िल भी अपनी
कारवाँ की तलाश भी अपनी
तलाश में चाह भी अपनी
आह भी अपनी .....
वाह भी अपनी ........
जब बहारों के जश्न भी अपने
तो पतझड़ और तूफ़ान भी अपने
जज़्बातों के हालात भी अपने
सफ़र भी अपना ।।
“ सफ़र करते -करते मुसाफ़िर हूँ
भूल गया हूँ , अपने कारवाँ में
घुल - मिल गया हूँ
बेशक ये सफ़र है
मैं मुसाफ़िर हूँ जाने से पहले
अपने निशान छोड़ जाऊँगा
आऊँगा बहुत याद आऊँगा
सफ़र में कूछ ऐसे निशान छोड़ जाऊँगा ।।
राह भी अपनी है,
मंज़िल भी अपनी
कारवाँ की तलाश भी अपनी
तलाश में चाह भी अपनी
आह भी अपनी .....
वाह भी अपनी ........
जब बहारों के जश्न भी अपने
तो पतझड़ और तूफ़ान भी अपने
जज़्बातों के हालात भी अपने
सफ़र भी अपना ।।
“ सफ़र करते -करते मुसाफ़िर हूँ
भूल गया हूँ , अपने कारवाँ में
घुल - मिल गया हूँ
बेशक ये सफ़र है
मैं मुसाफ़िर हूँ जाने से पहले
अपने निशान छोड़ जाऊँगा
आऊँगा बहुत याद आऊँगा
सफ़र में कूछ ऐसे निशान छोड़ जाऊँगा ।।