“आग है लगी हुयी “

 जिधर नज़र दौड़ायी
 नज़र आया बस कूड़ा ही कूड़ा
 कूड़े के ढेर पड़े हुए हैं
 जगह -जगह ......
 आग लगी हुई है
 चमकते चेहरों पर जब
 नज़र टिकती है ........
तब नज़र आती है एक आग
आग विचारों रूपी
कूड़े के ढेरो की आग
कूड़ा बस कूड़ा ही कूड़ा
जब गहरायी में उतरा तो
नज़र आयी गंदगी ही गंदगी
गन्दगी में पनपते ज़हरीले जीवाणु .....
कीचड़ !कीचड़ में खिलते हुए नक़ली कमल
दिखावटी कमल ,सुगन्ध रहित, पुष्प
उजले वस्त्र,मैले मन
खिलते बगीचों की गहरायी में दलदल
का अन्धा कुआँ
अंतहीन ,लोभ ,भ्रष्टाचार का दलदल
चंद पलों की आनन्द की चाहत में
अँधेरी गुमनाम गलियों में भटकता मानव
बाहर भी कूड़ा , मन के अंदर भी कूड़ा
सिर्फ़ तन को चमकाता ,सजता ,सँवरता
आज का मानव ,बस -बस करो
साफ़ करो ये गन्दगी,
अमानवीयता के अवग़ुणो को जला कर राख करो
बाहर  और भीतर सब साफ़ करो ।



“ ना जाने क्यों भटकता रहता हूँ “

 
दिन भर दौड़ता रहता हूँ
सुकून की तलाश में ....

सुख की चाहत में
दर्द से सामना करता रहता हूँ
दुखों से लड़ता रहता हूँ

आधी उम्र बीत गयी
सुखों को सहेजने की कोशिश में
जो सुख -शान्ति मिली भी
उन्हें भी ढंग से जी नहीं पाया

सारी उम्र सहेजता रहा ख़ुशियाँ
उन्हें जीने की चाह में
मैं दर्द जीवन में जीवन जीता चला गया

ये मुस्कराहट भी कितने सुन्दर भाव है
चेहरे पर आते ही सारे दर्द छिपा लेती है

अब मैं आज जो है ,उसको जीना सीख गया हुआ हूँ
जो वर्तमान है वही ख़ूबसूरत है ,सत्य है
भविष्य की चिंता में अपना आज खराब नहीं करता
अपने आज को ख़ूबसूरत बनाओ
कल ख़ुद ब ख़ुद ख़ूबसूरत ख़ुशियों भरा हो जाएगा ।



🥀"अक्षय अनन्नत सम्पदा "🥀☘️🌳🌳

🌍🚶‍♀️🏃🏻‍♀️जीवन - मनुष्य और संसार  ............
          ये सृष्टि , सृष्टि में अनेकों ग्रह ....🌕🌝🌒🌏
   इस सृष्टि का सबसे सुंदर ग्रह "पृथ्वी "
परमात्मा ने जब इस सृष्टि की रचना की ,हम मनुष्यों के लिये जो परमात्मा के ही अंश हैं यानि परमात्मा की संताने .....जिस प्रकार एक माता -पिता अपनी संतानों के सुंदर जीवन के लिए व्यवस्था करते हैं ..........
परमशक्ति ,परमात्मा द्वारा पृथ्वी नाम के इस ग्रह को असंख्य सुविधाओं से भर दिया गया  ,प्रकृति में
इतनी सुन्दर व्यवस्था की गयी है ,कि प्रकृति की अनमोल सम्पदाओं के भण्डार कभी ख़ाली नहीं हो सकते ।

सोचने -समझने की अनुपम भेंट ,जिसे हम बुद्धी कहते हैं ।
अच्छा और बुरा परखने की शक्ति .....
प्रकृति की अनमोल सम्पदा, धरती पर परमशक्ति  द्वारा असंख्य खनिज पदार्थों की देन ......

"अविष्कार आव्य्श्क्ता की जननी है "प्रग्रति उन्नति का सूचक है ।
परंतु उन्नति के नाम पर प्रकृति से इतनी अधिक छेड़छाड़ भी उत्तम नहीं कि प्रकृति का स्वरूप ही बिगड़ जाये ।

मेरा आज का विषय है , जबकि प्रकृति द्वारा इस सृष्टि पर सम्पूर्ण व्यवस्था की गयी है इसके बावजूद आज का मानव
असंतुष्ट है क्यों ?
क्या जो है ? पर्याप्त नहीं है ? ऐसा तो नहीं मनुष्य की भूख बड़ गयी है शायद ......नहीं भूख नहीं लोभ बड़ गया है
भण्डार तो ऐसे भरता है आज का मानव ......मानो धरती पर अमरता का वरदान लिखा के लाया हो ..,..
चाहे भण्डारों में पड़ा हुआ सब सड़ जाये परन्तु किसी और को नहीं खाने दूँगा चलिए आपातकाल की स्तिथी के लिए थोड़ा बहुत भंडारण उत्तम है परंतु सड़ने की हद तक अपराध है ।

दूसरी तरफ़ आज समाज में देख -दिखावा भी आव्यशकता से अधिक बड़ गया है .......
किसी का भी सम्मान करना अच्छी बात है ...यही भारतीय संस्कृति की परम्परा भी है .......
सम्मान का तात्पर्य कभी भी देख -दिखावा तो नहीं ...,
सम्मान तो हमेशा भावों से होता है व्यवहार में निहित होता है ...

दूसरी तरफ़ रीति -रिवाजों के नाम पर दिखावा ....दिखावा भी ऐसा की .....मानो गले की फाँसी ...
हमारे यहाँ तो रीति -रिवाजों के नाम पर लोग अंधों की तरह सिर्फ़ होड़ में लगे रहते हैं ,सिर्फ़ दिखावा ...
शादी -ब्याह आदि आयोजनों में अंधाधुंध ख़र्चा करना ....
आव्य्श्क्ता से अधिक तो दूर की बात ,व्यंजनों की अति अधिकता
जितना खाना खाया नहीं जाता उससे कहीं अधिक भोजन की बर्बादी ...ऐसा दिखावा किस काम का
जिस देश की आधी आबादी को भर  पेट खाना भी नसीब नहीं होता ,और जहाँ की जनता कभी -कभी एक समय खाना खाकर भी अपना गुज़ारा करती हैं और कई मासूम बेचारे जूठन खाकर अपना पेट भरने को मजबूर है ...
आप बताइये ये कहाँ की समझदारी है ।

बस -बस करो ......दिखावा इस धरती पर कुछ शाश्वत नहीं ....फिर क्यों इतनी आप धापि
सम्मान ऐसा हो जो भावों में हो निहित हो ...
दिखावा करना है तो मुस्कराहट संग सभ्य व्यवहार का करो ।
प्रकृति द्वारा अक्षय सम्पदा सृष्टि में व्याप्त है
मनुष्य को चाहिये कि परमात्मा द्वारा प्राप्त अनुपम भेंट अपनी बुद्धि ,सोचने समझने की शक्ति
द्वारा अपने तन कभी सदुपयोग करते हुए समाज को एक सुन्दर स्वरूप प्रदान करे ।
व्यर्थ की उलझनो  में उलझ कर स्वम का जीवन बोझिल ना बनाएँ
प्रकृति स्वयं में सम्पूर्ण है इसका दुरुपयोग ना करें ।
दिखावों से बचें ,प्रकृति का संरक्षण के प्रकृतिक सम्पदा की अनमोल भेंट सबको समर्पित करें .....
वास्तविक ख़ुशी का आदान -प्रदान करें .,,.,,😆😃😀😀🍀🌲☘️🍀🌲😃😀





" प्रकृति अनमोल सम्पदा "

     
 🥀🥀  ☘️🍀🌲☘️
    मीठी -मीठी सी शीतल हवाओं का झोंका
    सर्दी के मौसम को अलविदा कहती
    सूर्य की तेज़ ,तपिश का एहसास
    प्रातःक़ालीन शांत वातावरण में
    प्रकृति का आनंद लेता मन
    हरी-भरी घास का श्रृंगार
    करती ओस की बूँदे
    शांत वातावरण
    पक्षियों के चहकने
    की मीठी आवाज
    मानों वातावरण में
    गूँजती संगीत की मधुर तान
    प्रकृति स्वयं में ही सम्पूर्ण
    स्वयं का शृंगार करती 🎉🎉
    दिल कहे बस यहीं ठहर जाये पग
    भागती-दौड़ती ज़िन्दगी से अब थक गया है मन
    हरी -भरी घास पर बैठ कर यूँ ही बीत जाए जीवन
   जाने क्यों भगता -दौड़ता रहता है मन
   प्रकृति में निहित है जीवन का सम्पूर्ण आनंद
   प्रकृति से ना छेड़-छाड़ करो
   उसमें ना ज़हर घोलो
   प्रकृति है अमुल्य सम्पदा
  अनमोल धरोहर प्रकृति का संरक्षण करो ।🌸🌹🥀🥀☘️🍀

 
   
    
🎉🎉🎉🌺🌺 🎉" हाँ मैं औरत हूँ 🎉🌺🌺🏡☕️🏡📖📖🌹🌹🎉🎉

🌺 हाँ मैं औरत हूँ 🌺
मुझ बिन धरती का
अस्तित्व अधूरा है ,
कोई मुझे कुचलता है
तो इसमें मेरा क्या दोष .......
निर्दयी हैं वो ,पापी हैं वो 🌺
क्रूर हैं वो ,
रावण या कंस से भी घिनौने हैं वो
जो अपने ही बाग़ों में खिले गुलाबों
को , कलियों को कुचलते हैं
हाँ मैं औरत हूँ मुझसे ही महकता
सरा जहाँ है ,मैं ही तो सारे जहाँ की 🌺
रौनक़ हूँ ।🌺
मैं स्वयं सिद्धा हूँ ,स्वयं में सम्पूर्ण हूँ ।🌸
मुझमें आत्म बल की सम्पूर्णता है 🎉🎉

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

रंगों के त्यौहार होली की शुभकामनायें 🌺🌹

 
 💐 होली की शुभकाममनाओं संग
  आओ आज हम रंगो का त्यौहार होली
  मनायें ।🥀

🌺  रंग ऐसा लगायें इस होली की वो
  रंग कभी ना छूटे ।
  परस्पर प्रेम की ऐसी पिचकारी चलायें
  कि दिलों के सारे मैल धूल जायें ।
  भाईचारे के रंग में सब रंग जायें ।🌺

  सब धर्मों का मर्म एक ,मक़सद एक ,🎉
  जो प्रेम ,अमन और शांति का पाठ पढ़ायें ।

 अमानवीयता के भद्दे रंगों से स्वयं को ना
 भद्धा और अभद्र बनाये ।
🌸🌸 आओ इस होली रंगों के त्यौहार में अमन -चैन
संग भाईचारे के रंग में सब रंग जाये 🌸🌸।  

🌹🌺🥀ऐसा रंग चढ़े इस होली कि विश्व कौतुम्बकम
का सपना सच हो जाये ।🥀🌹🌺🌸
आप सभी को होली की शुभ कामनाए ।🌸🌺🌹🥀🎉🎉


  

"अरमानों का तेज़ाब"

डरता हूँ ,कहीं मुझमें पनपता
तेज़ाब मुझे ही स्वाहा ना
कर डाले ।
तेज़ाब मेरे अधूरे सपनों के
फड़फड़ाते अरमानों का तेज़ाब
अरमानों के पंखों में
सपनों की उड़ान
फड़फड़ाते पंखों से
जब -जब भरने लगता हूँ उड़ान।

मध्य में टकराते हैं ,कई व्यवधान
खोजता हूँ कई समाधान

फिर भी मंज़िले नहीं होती आसान
दिल में जलता अरमानों का तेज़ाब
जो करता रहता है ,हर क्षण मुझे बेताब
जलता रहता हूँ ,अपने ही अरमानों के
तेज़ाब में ,
डरता हूँ ,
कहीं इस तेज़ाब से मेरा
ही ना घर जले ,यह तेज़ाब मुझे ही ना छले
अपने आरमानों के पंखों को
धीमे -धीमे ही सही आगे बड़ाता रहता हूँ
धीमे -धीमे ही सही बहुत आगे निकल आया हूँ
अरमानों के तेज़ाब को अब थोड़ी ठंडक मिलने
लगी है ।
आत्म संतुष्टि का धन जब से मैंने पाया है
मेरा जीवन बन गया शीतल छाया है
अब तेज़ाब से मुझे डर नहीं लगता
क्योंकि अब  अनियंत्रित अरमानों का आब
समा चुका है ,समुन्दर की शांत लहरों में ।











आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...