***लोहा**
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*आज मैं अपने मित्र से मिलने अस्पताल गया ,बहुत ही कमजोर हो गया था मेरा मित्र ,डॉक्टरों से पूछने पर पता चला उसका ब्लड प्रेशर बहुत बढ़ गया था ,शायद उनको चिन्ता है ।जो इन्हें अन्दर ही अन्दर खाये जा रही है ।
मैं अपने मित्र के कमरे में उससे मिलने गया वह अभी सो रहा था ,शायद डॉक्टर ने दवा दी थी उससे नींद आ गयी थी ।
मैं अपने मित्र के लिये फूलों का गुलदस्ता ,थोड़े फल और जूस ले गया था । मैं खाली बैठा-बैठा सामने पड़ी मैगज़ीन उठा कर पढ़ने लगा ।
थोड़ी देर में मेरे मित्र की आँख खुली ,मैं तो एक लेख पढने मैं व्यस्त था । मेरा मित्र सामने पड़े फूलों को देखकर फूलों की तरह मुस्करा रहा था ,एकाएक मेरी नज़र मेरे मित्र पर पड़ी ,मैं बोला क्या भाई हमेशा ऐसे ही नही मुस्करा सकते मित्र बोला तुम अगर रोज यूं ही मुझसे मिलने और ये खिले फूल मेरे लिये लाते रहो तो मेरे को कोई गम नहीं ।
इतने में नर्स आ गयी दवा का समय हो गया था ।
नर्स के जाने के बाद मित्र बोला यार कुछ मीठा खिला दो ये कड़वी दवाओं से मुँह कड़वा हो गया है ,मैंने उसे सेब काट कर खिलाया ,
मैंने अपने मित्र से पूछा यार तुम्हें किस बात की चिंता है ये जो चिन्ता है ना, तुम्हे अन्दर ही अन्दर खोखला कर रही है,मित्र बोला बस अपने बेटे की चिन्ता है मेरा कहा नही मानता मैं चाहता हूँ कि वो मेरे व्यपार में मेरा बेटा सहयोग करे मेर व्यापार इतना बड़ा है अच्छा खासा चल रहा है ,औऱ मेरे बेटे को देखो अपनी ही दुनिया मे मस्त रहता है कहता है मैं खुद अपने ढंग से कम करूंगा ।
मैंने मित्र को समझाते हुए कहा कोई बात नही तुम्हारे बेटे के भी अपने सपने हैं करने दो उसे उसके मन की ।मुझे पता है तुम्हारा बेटा बहुत संस्कारी है ,तुम चिंता क्यों करते हो ।कुछ समय बाद वह तुम्हारे इस व्यपार को आसमान की ऊंचाईयों तक ले जायेगा ।
याद है तुम कहते थे मैं तो *लोहे का बना हुआ हूँ मुझे कुछ नही हो सकता ,कोई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता ,मैं जिस पर गिरूँगा वो टूट जायेगा जो मुझे मारना चाहेगा वो मुझसे टकरा के टूट जायेगा ,अब क्या हुआ लौह सिंह *अब तुम्हारी फौलादी ताकत कहाँ गयी ,क्या नाम के हो यार तुम भी लोहा सिंह ,जानते हो तुम मुझे कहते थे कि तू तो रुई का बना है ,और मैं लोहे का । लौह सिंह बोला हां -हां पर वक्त हर किसी को तोड़ देता है ।
मैं बोला अरे वाह लौह सिंह तुम तो बढ़े कमजोर हो ।
पता है, लौह सिंह तुम्हे तुम्हारी बेबात की चिन्ता के पानी जंक लग रहा है ।
तुम अन्दर ही अन्दर खत्म हो रहे हो,।*जिस तरह लोहे को कोई नहीं नुकसान पहुंचा सकता लेकिन अगर उस पर निरन्तर पानी पड़ता रहे तो उस पर जंक लग जाता है और वो अन्दर ही अन्दर खत्म हो जाता है *तुम्हारे साथ भी यही हो रहा है व्यर्थ की चिन्ता तुम्हें रोगी बना रही है ,स्वयम को व्यर्थ की चिंता के नरकसे बचाओ ,जानते हो जैसा हम सोचतें हैं वैसा होने लगता है । अच्छा सोचो अच्छा होगा मनुष्य के संकल्प शक्तियों में बहुत ताकत होती है ।
*आज मैं अपने मित्र से मिलने अस्पताल गया ,बहुत ही कमजोर हो गया था मेरा मित्र ,डॉक्टरों से पूछने पर पता चला उसका ब्लड प्रेशर बहुत बढ़ गया था ,शायद उनको चिन्ता है ।जो इन्हें अन्दर ही अन्दर खाये जा रही है ।
मैं अपने मित्र के कमरे में उससे मिलने गया वह अभी सो रहा था ,शायद डॉक्टर ने दवा दी थी उससे नींद आ गयी थी ।
मैं अपने मित्र के लिये फूलों का गुलदस्ता ,थोड़े फल और जूस ले गया था । मैं खाली बैठा-बैठा सामने पड़ी मैगज़ीन उठा कर पढ़ने लगा ।
थोड़ी देर में मेरे मित्र की आँख खुली ,मैं तो एक लेख पढने मैं व्यस्त था । मेरा मित्र सामने पड़े फूलों को देखकर फूलों की तरह मुस्करा रहा था ,एकाएक मेरी नज़र मेरे मित्र पर पड़ी ,मैं बोला क्या भाई हमेशा ऐसे ही नही मुस्करा सकते मित्र बोला तुम अगर रोज यूं ही मुझसे मिलने और ये खिले फूल मेरे लिये लाते रहो तो मेरे को कोई गम नहीं ।
इतने में नर्स आ गयी दवा का समय हो गया था ।
नर्स के जाने के बाद मित्र बोला यार कुछ मीठा खिला दो ये कड़वी दवाओं से मुँह कड़वा हो गया है ,मैंने उसे सेब काट कर खिलाया ,
मैंने अपने मित्र से पूछा यार तुम्हें किस बात की चिंता है ये जो चिन्ता है ना, तुम्हे अन्दर ही अन्दर खोखला कर रही है,मित्र बोला बस अपने बेटे की चिन्ता है मेरा कहा नही मानता मैं चाहता हूँ कि वो मेरे व्यपार में मेरा बेटा सहयोग करे मेर व्यापार इतना बड़ा है अच्छा खासा चल रहा है ,औऱ मेरे बेटे को देखो अपनी ही दुनिया मे मस्त रहता है कहता है मैं खुद अपने ढंग से कम करूंगा ।
मैंने मित्र को समझाते हुए कहा कोई बात नही तुम्हारे बेटे के भी अपने सपने हैं करने दो उसे उसके मन की ।मुझे पता है तुम्हारा बेटा बहुत संस्कारी है ,तुम चिंता क्यों करते हो ।कुछ समय बाद वह तुम्हारे इस व्यपार को आसमान की ऊंचाईयों तक ले जायेगा ।
याद है तुम कहते थे मैं तो *लोहे का बना हुआ हूँ मुझे कुछ नही हो सकता ,कोई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता ,मैं जिस पर गिरूँगा वो टूट जायेगा जो मुझे मारना चाहेगा वो मुझसे टकरा के टूट जायेगा ,अब क्या हुआ लौह सिंह *अब तुम्हारी फौलादी ताकत कहाँ गयी ,क्या नाम के हो यार तुम भी लोहा सिंह ,जानते हो तुम मुझे कहते थे कि तू तो रुई का बना है ,और मैं लोहे का । लौह सिंह बोला हां -हां पर वक्त हर किसी को तोड़ देता है ।
मैं बोला अरे वाह लौह सिंह तुम तो बढ़े कमजोर हो ।
पता है, लौह सिंह तुम्हे तुम्हारी बेबात की चिन्ता के पानी जंक लग रहा है ।
तुम अन्दर ही अन्दर खत्म हो रहे हो,।*जिस तरह लोहे को कोई नहीं नुकसान पहुंचा सकता लेकिन अगर उस पर निरन्तर पानी पड़ता रहे तो उस पर जंक लग जाता है और वो अन्दर ही अन्दर खत्म हो जाता है *तुम्हारे साथ भी यही हो रहा है व्यर्थ की चिन्ता तुम्हें रोगी बना रही है ,स्वयम को व्यर्थ की चिंता के नरकसे बचाओ ,जानते हो जैसा हम सोचतें हैं वैसा होने लगता है । अच्छा सोचो अच्छा होगा मनुष्य के संकल्प शक्तियों में बहुत ताकत होती है ।