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क्यों ना बस अच्छा ही सोचे

*बडे़ भाग मानुष तन पाया* फिर क्यों ना जीवन में हर दिन हर पल उत्सव मनाएं *जीवन जीना भी एक कला है*
 समयानुसार मौसम भी बदलता है,तब भी तो मनुष्य परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालता है और स्वयं की रक्षा करता है। ठीक उसी तरह जीवन में भी उतार -चढाव आते हैं ,बजाय परिस्थितियों का रोना रोने की उन विषम परिस्थितियों से बाहर निकलने की कला सीखें ,जिससे आपका जीवन अन्य मनुष्यों के लिए भी प्रेरणास्पद बन जाएं और आप स्वयं के जीवन में एक मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकें ।
परिस्थितियां तो परीक्षाओं के समान है 
कहते हैं कई लाख योनियों के बाद मनुष्य जीवन मिलता है , समस्त प्राणियों में मनुष्य जीवन ही श्रेष्ठ है,क्योंकि मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो अपनी बुद्धि ,विवेक के द्वारा धरती पर बडे़ - बडे़ अविष्कार कर सकता है ,चाहे तो अपने कर्मों द्वारा धरती को स्वर्ग बना सकता है ,चाहे तो नर्क ,परमात्मा ने यह धरती मनुष्यों के रहने के लिए प्रदान की,मनुष्यों को चाहिए की वह इस धरती को स्वर्ग से भी सुन्दर बनाएं ।
 परमात्मा द्वारा प्रदत प्रकृति की अनमोल संपदाएं , जल स्रोत,सुन्दर प्रकृति वृक्षों पर लगने वाले फल,फूल हरे -भरे खेतों में उगते अनाज विशाल पर्वत श्रृंखलाएं आदि अंनत उत्तम व्यवस्था की है, परमात्मा ने इस धरती पर मनुष्यों के जीविकोपार्जन के लिए, किन्तु मनुष्यों ने अपने स्वार्थ में अंधा होकर इस धरती का हाल बुरा कर दिया है,संभालो मनुष्यों यह धरती तुम मनुष्यों के लिए ही है, इसे संवारो , बिगाड़ो नहीं ,अभी भी समय है धरती पर प्राप्त प्राणवायु में जहर मत घोलो ।
  प्रत्येक दिन को एक उत्सव की तरह मनाओं क्योंकि प्रत्येक नया दिन एक नए जन्म जैसा होता है ,जन्म के साथ प्रत्येक मनुष्य अपनी मृत्यु की तारीख भी लिखवा कर आया है जो एक कड़वा सत्य है। तो फिर क्यों ना धरती पर प्राप्त इस मनुष्य जीवन का सदुपयोग करें ,अपने जीवन को सार्थक बनाएं। क्यों ना धरती पर कुछ ऐसा कर जाएं जिससे स्वयं का और समाज के भला हो और हमारा जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायक बन जाए  ।
  लोग क्या कहेंगे ,इस बारे में सोचकर अपने जीवन के अनमोल पल व्यर्थ ना गवाएं ,लोग तो कहेंगे लोगों के काम है कहना ,किसी भी व्यक्ति का जीवन उसकी स्वयं की धरोहर है ,अपनी इस अनमोल जिन्दग  में खुशियों के सुन्दर सतरंगी रंग भरे ,उदास ,अभावों का दर्द छलकाते रंगों वाली बेरंग तस्वीर किसी को नहीं भाती ,अतः अपने जीवन को सदैव इंद्रधनुषी रंगों को सुन्दर छवि दें ।  *यूं ही बे वजह मुस्कराया करो माहौल को खुशनुमा बनाया करो *
 यानि हर पल जीवन का उत्सव मनाते रहें । बुरे और नकारात्मक विचारों से स्वयं को बचाएं जिस प्रकार धूल गंदगी मैले वस्त्रों को हम दिन-प्रतिदिन बदलते हैं ,उसी प्रकार समाज में फ़ैल रही नकारात्मक प्रवृतियों को स्वयं को बचाते हुए उस दिव्य शक्ति परमात्मा का नित्य स्मरण करते हुए,परमात्मा से दिव्यता का वरदान प्राप्त करते रहें । व्यर्थ की चिन्ता से स्वयं को बचाएं जीवन में उतार -चढाव तो आते रहेंगे जीवन में निरसता को स्थान नए दें । प्रत्येक दिन एक नई शुरुआत करें ।
 एक महत्वपूर्ण सत्य,अपने जीवन में हर कोई सुख-शांति और खुशियां चाहता है ,अगर किसी कारण वश आप खुश नहीं है आप शान्ति का अनुभव नहीं कर पा रहे हैं तो खुशियों के पीछे भागिये मत,क्योंकि जीतना हम किसी को पाने के लिए भागते हैं, वह चीज हमसे और दूर जाती रहती है। अतः जिस चीज की चाह आपको अपनी जिन्दगी में है ,उसे बांटना सीख लीजिए यकीन मानिए जितना आप खुशियां बांटेंगे उतनी आपकी जिन्दगी में खुशियां बडेंगी ,कभी किसी भूखे को खाना खिलाकर देखिए ,कभी किसी रोते को हंसा कर देखिए ,आपको सच्ची खुशियों की सौगात मिलेगी ,बेसहारों का सहारा बनकर देखिए जीवन में अद्भुत शान्ति का अनुभव होगा 
किसी निराश हताश के मन में आशा के दीप जलाकर उसे आगे बढ़ ने के लिए प्रेरित कीजिए 
दिखायेगा अमुक व्यक्ति के दिल से निकली दुआएं आपका जीवन सफल बना देंगी।
* तो चलिए आइए जीवन को बेहतरीन से बेहतरीन ढंग से जिएं*
*आओ हर दिन हर पल को एक उत्सव की तरह जिएं जीवन में नित नए आशा के दीप जलाये* अपने संग औरों के घर भी रोशन कर आएं ,उम्मीद की नयी किरणों से जीवन में सकारात्मकता का प्रकाश फैलायें ,आओ हर दिन प्रेम के रंगों का त्यौहार मनाएं दिलों में परस्पर प्रेम और अपनत्व की फसल उगाये**

क्यों ना बस अच्छा ही सोचें *

अच्छों की दुनिया अच्छी ही होती है ऐसा नहीं की  
मुश्किलें नहीं आती परंतु अच्छा सोचने वालों के लिए हर मुश्किल भी अच्छाई की ओर ले जाने वाली सीढ़ियां बन जाती है।
जो सच्चा होता है वो सरल होता है निर्मल होता है और हल्का होता है । 
आओ हर दिन एक उत्सव की तरह मनाएं ,जीवन में नित नए आशा के दीप जलाएं उम्मीद की किरणों से जीवन में सकारात्मकता का प्रकाश फैलाएं।           हे मानव तुम अपने आत्मबल को कभी कमजोर नहीं होने देना आत्मशक्ति मनुष्य का सबसे बड़ा धन है। जीवन में भले ही धन-दौलत नष्ट हो जाए  लेकिन अगर आपके पास शिक्षा धन और आत्मविश्वास एवम् आत्मबल की शक्ति है तो आपके पास आपके जीवन में सब कुछ प्राप्त है  अतः आत्म शक्ति को कभीकमजोर नहीं होने देना यही है जीवन का सबसे बड़ा गहना।

स्वरचित:
ऋतु असूजा

*** जीतना सीखें****

           * जितना सीखें*

कई बार ऐसा होता है की हमें किसी भी कार्य में सफलता हासिल नहीं होती । हमारी जी तोड़ मेहनत के बावजूत हमें अपनी मंजिल नहीं मिलती ,हम अन्दर से बुरी तरह टूट जाते हैं हर रास्ता अपना लिया होता कोई और रास्ता नजर नहीं आता।

हम निराशा के घने अन्धकार में घिरने लगते हैं,हमारा किसी काम में दिल नहीं लगता ।हम स्वयं को निठल्ला समझने लगते हैं यहाँ तक की दुनियाँ वाले भी हमें बेकार का या किसी काम का नहीं है ,समझकर दुत्कारते रहते हैं
और यही निराशा हमें बुरी तरह से तोड़ कर रख देती है।
और हम आत्महत्या तक के बारें में तकसोचने लगते हैं

1. सबसे पहले तो अपनी हार से निराश मत होइये

2, हार और जीत तो जीवन के दो पहलू हैं ।

3.हार की वजह ढूंढने की कोशिश करिये ।

4.अगर फिर भी सफलता नहीं मिलती तो रास्ता बदल लिजीये।

5.प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अलग पहचान होती है

6.सारे गुण एक में नहीं होते ,अपनी विशेषता पहचानिये।

7.आप में जो गुण है उसे निखारिये अपना सौ प्रतिशत लगा दीजिये सफलता निश्चित
 आपके कदम चूमेगी ।

8.बार -बार प्रयास करने पर भी अगर किसी काम में सफलता नहीं मिल रही है तो काम करने का तरीका बदल कर देखिये ।

9.नकारात्मक विचार जब भी आप पर हावी होने लगें तो तुरन्त अपने विचार बदल लीजिये ।

10 हमेशा सकारात्मक सोचिये ।और कभी भी किसी के जैसा बनने की कोशिश मत करिये ।

11.आप अपने स्वभाव में जियें और अपने आन्तरिक गुणों को पहचान कर उन्हें निखारिये।

12.अपने रास्ते खुद बनाईये।

13. कभी भी लकीर के फ़कीर मत बनिये ।

14. हमेशा अच्छा सोचिये ।

15.अपनी नयी पहचान बनाइये अपने रस्ते अपनी मंजिले स्वयं तैयार कीजिये ।

16.याद रखिये चलना तो अकेले ही पड़ता है ,सफलता पाने के लिए ।

16.दुनियाँ की भीड़ तो तब इकठ्ठी होती है ,जब रास्तें तैयार हो जाते है ।

17.सफलता के बाद तो हर कोई पहचान बढाना चाहता है ।

8.सकारात्मक सोच ही हमें आगे बड़ाने में सहायक होती है।

19 .नकारात्मक सोच अन्धकार से भरे बंद कमरे मे बैठे रहने के सिवा कुछ भी नहीं ।

20.उजियारा चाहिये तो अँधेरे कमरे में प्रकाश की व्यवस्था करनी पड़ेगी ।
21.यानि  नकारात्मक विचारों रुपी अन्धकार को दूर करने के लिये सकारात्मक विचार रुपी उजियारे की व्यवस्था करनी पड़ेगी ।

21.याद रखिये दूनियाँ में अन्धकार भी है ,और प्रकाश भी   ! तय हमें करना  है की हमें क्या चाहिए ।
22 . हमारी हार या जीत हमारे स्वयं के संकल्पों की शक्ति है।
23.इस धरती पर मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है ,जो अपने संकल्पों से अनहोने काम कर सकता है ।
24.कोई भी व्यक्ति शरीर से कमजोर या ताकतवर हो सकता है ।
25.परन्तु शुभ संकल्पों की शक्ति बहुत ही श्रेष्ठ और अद्वितय होती है ।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...