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*ज्ञान की पराकाष्ठा*

पार्क में सब बच्चे पहुंच गए थे ।

रीता - बोली आज दीदी नहीं आई ,वो तो हम सब बच्चों से पहले ही आ जाती है ,आज क्या हुआ होगा रेनू?

रेनू :- तू बिना बात चिंता कर रही है रीता आ जाएगी दीदी होगा कोई जरूरी काम देर हो गई होगी ।

रीता:- हां रेनू तुम शायद सही कह रही है ,चल सब बच्चों को एक जगह बैठ जाने को कह देख कोई कहीं खेल रहा है कोई कहीं कितना शोर मचा रहे हैं बच्चे , हे भगवान जब दीदी आयेंगी तो देखना सब भीगी बिल्ली बनकर बैठ जाएंगे जैसे इनसे शांत कोई हो ही ना ।

रेनू:- दीदी कहती है अगर कभी मुझे किसी काम से देर हो जाए या मैं नहीं आ पाऊं तो तुम पीछे का पड़ा हुआ दोहरा लिया करो चल रीता सब बच्चों की कापियां चेक करते हैं ।

रीता:- हां चलो सब बच्चों अपना -अपना काम दिखाओ ,कल घर जाकर क्या पड़ा तुम सब ने सब बच्चे अपनी -अपनी कापियां निकलते हुए ,और दिखाते हुए ...दीदी देखो कल हमने यह पड़ा यह पड़ा आदि -आदि...

में सब बच्चे पहुंच गए थे ।
रीता:- बोली आज दीदी नहीं आई ,वो तो हम सब बच्चों से पहले ही आ जाती है ,आज क्या हुआ होगा रेनू?

रेनू :- तू बिना बात चिंता जर रही है आ जाएगी दीदी होगा कोई जरूरी काम देर हो गई होगी ।
रीता:- हां रेनू तुम शायद सही कह रही है ,चल सब बच्चों को एक जगह बैठ जाने को कह देख कोई कहीं खेल रहा है कोई कहीं कितना शोर मचा रहे हैं बच्चे , हे भगवान जब दीदी आयेंगी तो देखना सब भीगी बिल्ली बनकर बैठ जाएंगे जैसे इनसे शांत कोई हो ही ना ।

रेनू:- दीदी कहती है अगर कभी मुझे किसी काम से देर हो जाए या मैं नहीं आ पाऊं तो तुम पीछे का पड़ा हुआ दोहरा लिया करो चल रीता सब बच्चों की कापियां चेक करते हैं ।
रीता:- हां चलो सब बच्चों अपना -अपना काम दिखाओ ,कल घर जाकर क्या पड़ा तुम सब ने सब बच्चे अपनी -अपनी कापियां निकाल कर दिखाते हुए ...दीदी देखो कल हमने यह पड़ा यह पड़ा आदि -आदि...

पब्लिक पार्क था वहां बहुत लोग घूमने आते थे ।
एक बड़े स्कूल की अध्यापिका जो लगभग हर रोज उस पार्क में आती थी और इन बच्चों को पड़ते देख कुछ ना कुछ ऐसा कह देती थी जो दिल पर गहरी चोट कर जाता।

अध्यापिका :- आज कहां गई तुम्हारी दीदी अाई नहीं तुम्हे पड़ाने हाहा हास्य मुद्रा में .... अरे वो तुम्हें क्या पड़ाएगी ,वो तो खुद अनपड़ है ,दसवीं पास वो भी चालीस प्रतिशत में उसे कुछ नहीं आता वो तुम्हें पड़ाने का ढोंग कर रही है । कल से मेरे घर आ जाना मैं पडाऊंगी तुम्हें ,जानते हो मेरे पास कितनी डिग्रियां हैं कॉन्वेंट स्कूल से पढ़ाई की है मैंने.....

रीता:- नमस्ते अध्यापिका जी हम आपका आदर करते हैं आप हमसे बड़े हो ,और वैसे भी हम किसी का भी अनादर नहीं करते,
और हमारी दीदी को कुछ मत कहिए वो बहुत समझदार हैं हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ता वो कितना पड़ी हुई हैं उनका ज्ञान बहुत बड़ा है आज तक उन्होंने कभी हमें किसी की बुराई करना नहीं सिखाया ,और आप हमारी दीदी के लिए ऐसा कह सकती हो
वो हमें ज्ञान दे रही हैं हमारा मार्गदर्शन कर रही हैं ।
दीदी ने हमें नैतिक शिक्षा का भरपूर ज्ञान दिया है हमारी दीदी के पास चाहे डिग्रियां कम हो पर विचारों में सबसे धनी हैं ।

(ज्ञान सिर्फ डिग्रियों का मोहताज नहीं होता ,सच्चा ज्ञान मनुष्य के श्रेष्ठ विचारों ओर आचरण की सभ्यता से प्रकट हो जाता है )

''हिंदी  मेरी मातृभाषा माँ तुल्य पूजनीय ''       

  जिस भाषा को बोलकर  मैंने अपने भावों को व्यक्त किया ,जिस भाषा को बोलकर मुझे मेरी पहचान मिली ,मुझे हिंदुस्तानी होने का गौरव प्राप्त हुआ   ,                            उस माँ तुल्य हिंदी भाषा को मेरा शत -शत नमन।

भाषा विहीन मनुष्य अधूरा है।
 भाषा ही वह साधन है जिसने सम्पूर्ण विशव के जनसम्पर्क को जोड़ रखा है।  जब शिशु इस धरती पर जन्म लेता है ,तो उसे एक ही  भाषा आती है वह है,  भावों की भाषा ,परन्तु भावों की भाषा का क्षेत्र सिमित है।
मेरी मातृभाषा हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ठ है।  संस्कृत से जन्मी देवनागरी लिपि में वर्णित हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ट है।  अपनी मातृभाषा का प्रयोग  करते समय मुझे अपने  भारतीय होने का गर्व होता है।  मातृभाषा बोलते हुए मुझे अपने देश के प्रति मातृत्व के भाव प्रकट होते हैं।   मेरी मातृभाषा हिंदी मुझे मेरे देश की मिट्टी  की  सोंधी -सोंधी महक देती रहती हैं  ,और भारतमाता    माँ  सी  ममता।    
आज का मानव स्वयं को  आधुनिक कहलाने की होड़ में  'टाट में पैबंद ' की तरह अंग्रेजी के साधारण  शब्दों का प्रयोग कर स्वयं को  आधुनिक समझता  है।
अरे जो नहीं कर पाया अपनी मातृ भाषा का सम्मान उसका स्वयं का सम्मान भी अधूरा है।  किसी भी भाषा का ज्ञान होना अनुचित नहीं   अंग्रेजी  अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। इसका ज्ञान होना अनुचित नहीं।
परन्तु माँ तुल्य अपनी मातृभाषा का प्रयोग करने में स्वयं में हीनता का भाव होना स्व्यम का अपमान है।
मातृभाषा का सम्मान करने में स्वयं को  गौरवान्वित  महसूस करें।   मातृभाषा का सम्मान  माँ का सम्मान है.
हिंदी भाषा के कई महान ग्रन्थ सहित्य ,उपनिषद ' रामायण ' भगवद्गीता ' इत्यादि महान ग्रन्थ युगों -युगों से  विश्वस्तरीय  ज्ञान की  निधियों के रूप में आज भी सम्पूर्ण विश्व का ज्ञानवर्धन कर रहे हैं व् अपना लोहा मनवा रहे है।
भाषा स्वयमेव ज्ञान की देवी सरस्वती जी का रूप हैं।   भाषा ने ही ज्ञान  की धरा को आज तक जीवित रखे हुए हैं
मेरी मातृभाषा हिंदी  को मेरा  शत -शत  नमन  आज अपनी भाषा हिंदी के माध्यम से मैं अपनी बात लिखकर आप तक पहुंचा रही हूँ।   

धरा के भगवान


कैसे कह दूं उन्हें मात्र इंसान
कहते हैं जिन्हें धरा के भगवान
या कहें फ़रिश्ते ए आसमान
जीव विज्ञान का अद्भुत ज्ञान
कठिन साधना का परिणाम
जीव विज्ञान का अद्भुत ज्ञान
जीवन एक तपस्या जिनकी
दूर करने को प्रतिबद्ध शारीरिक एवं
मानसिक समस्या असाध्य रोंगों से घिरा
इंसान ढूंढ़ता है एक चिकत्सक के रूप में भगवान
 जब खतरे में होती है मनुष्य जीवन के प्राण
जीवन और मृत्यु की जंग में बनकर रक्षा प्रेहरी
करते हैं समस्त प्रयास और देते हैं जीवन दान
हमें गर्व है  आप सब चिकित्सकों पर, महान योद्धा ओं पर महामारी के संकटकाल में जब देश के सभी लोग अपने -अपने घरों में बैठे होते हैं, आप सभी स्वास्थ्य योद्धा, डटे हुए रहते हैं स्वास्थ्य लाभ देते हैं अपनी जान जोखिम में डालकर ।
 नमन है,नतमस्तक हैं, महामारी में बनकर योद्धा
सरहद पर तैनात सिपाही करता है
दुश्मनों से देश की रक्षा
वहीं धरती पर दूसरे योद्धा जो
जो सदैव तैयार रहते हैं करने को दूर
शारीरिक समस्या दिलाते हैं असहनिय दर्द से
मुक्ति ,पास इनके होती है निष्ठा और कठीन
साधना की शक्ति
धरती पर परमात्मा की सौगात
दिव्य जीवन का आशीर्वाद,स्वस्थ जीवन
जीने का देते हैं महादान ।

कैसे कह दूं उन्हें मात्र इंसान
कहते हैं जिन्हें धरा के भगवान
या कहें फ़रिश्ते ए आसमान
जीव विज्ञान का अद्भुत ज्ञान
कठिन साधना का परिणाम
जीवन एक तपस्या जिनकी
दूर करने को प्रतिबद्ध शारीरिक एवं
मानसिक समस्या असाध्य रोंगों से घिरा
इंसान ढूंढ़ता है एक चिकत्सक के रूप में भगवान
 जब खतरे में होती है मनुष्य जीवन के प्राण
जीवन और मृत्यु की जंग में बनकर रक्षा प्रेहरी
करते हैं समस्त प्रयास और देते हैं जीवन दान
सच में यह तो धरती पर दूसरे भगवान
चिकित्सक ,डाक्टर फ़रिश्ते सच में डाक्टरों
से भी जुड़े होटें भावुक से रिश्ते।
मातृत्व सी ममता,स्नेह दुलार और फिक्र भरी फटकार
डॉक्टर आप सभी है शक्ति का अवतार
जीवन को नई राह दिखाते जीवन जीने का आधार ।
सेवा धर्म को जीवन का
उद्देश्य बनाकर चलना पीड़ितों
 उपचार एवम् स्नेह का
 भाव का मरहम
कैसे कह दूं उन्हें मात्र इंसान
कहते हैं जिन्हें धरा के भगवान
या कहें फ़रिश्ते ए आसमान
जीव विज्ञान का अद्भुत ज्ञान
कठिन साधना का परिणाम
नमन है,नतमस्तक हैं, महामारी में बनकर योद्धा
सरहद पर तैनात सिपाही करता है
जैसे करता है देश की रक्षा
वहीं धरती पर दूसरे योद्धा जो
जो सदैव तैयार रहते हैं करने को दूर
शारीरिक समस्या दिलाते हैं असहनिय दर्द से
मुक्ति ,पास इनके होती है निष्ठा और कठीन
साधना की शक्ति
धरती पर परमात्मा की सौगात
दिव्य जीवन का आशीर्वाद,स्वस्थ जीवन
जीने का देते हैं महादान ।
* धरती पर परमात्मा की सौगात
दिव्य जीवन का आशीर्वाद
कैसे कह दूं उन्हें मात्र इंसान
कहते हैं जिन्हें धरा के भगवान या    कहें फ़रिश्ते ए आसमान
जीव विज्ञान का अद्भुत ज्ञान
कठिन साधना का परिणाम
जीवन एक तपस्या जिनकी
 चिकत्सक के रूप में भगवान                                                    योद्धा स्वस्थ जीवन देने का  समझौता निष्ठा और कठीन साधना की शक्ति सेवा धर्म सर्वोपरि धरती पर परमात्मा की सौगात दिव्य जीवन का आशीर्वाद,स्वस्थ जीवन जीने का देते हैं महादान धरा पर मानव के भगवान, जीवन जिनका सार्थक एवम् महान धन्य सदा पाते रहें परम पिता से वरदान   ।
 जीवन जीने की आती है जिन्हें
भरपूर कला, सेवा धर्म सर्वोपरि
पीड़ितों के दर्द का उपचार
हर्षित मुख परस्पर प्रेम पूर्ण जिनका
व्यवहार, स्वस्थ जीवन जीने का देते जो उपहार
परमात्मा का आपको मिलता रहे
दिव्य आशीर्वाद ,धरती पर
परमात्मा का अवतार ,चिकत्सक पथ
जीवन सजग ,सेवा धर्म , पीड़ितों की
मरहम पर स्नेह और विश्वास का साथ
नित नूतन ऊंचाईयों का मिलता रहे प्रसाद
परमात्मा
आयुर्वेद की ज्ञाता
जड़ी-बूटियों से जीवन का
उपचार जीवन में संतुलित व्यवहार
पीड़ितों के दर्द का उपचार
आपके जीवन का आशीर्वाद
हम सब का विश्वास आपको देकर
सम्मान और हम सब का आपको
दिल से पर
सेवा धर्म को समर्पित जिन्दगी
दीर्घ आयु का देती वरदान





*हिंदी हिन्दुस्तान की आत्मा उसका गौरव*

🙏🙏🎊🌹हिंदी मेरी मात्रभाषा अन्नत है,शाश्वत है, सनातन है , हिंदी किसी विशेष दिवस की मोहताज नहीं जब तक धरती पर  अस्तित्व रहेगा तब तक हिंदी भाषा का अस्तित्व रहेगा 🙏🌹🌹🎊🌸🌺🙏

“ हिंदी  मेरी मातृभाषा माँ तुल्य पूजनीय ''       🙏🙏

  😊😃जिस भाषा को बोलकर  मैंने अपने भावों को व्यक्त किया ,जिस भाषा को बोलकर मुझे मेरी पहचान मिली ,मुझे हिंदुस्तानी होने का गौरव प्राप्त हुआ   ,                            उस माँ तुल्य हिंदी भाषा को मेरा शत -शत नमन।

भाषा विहीन मनुष्य अधूरा है।
 भाषा ही वह साधन है जिसने सम्पूर्ण विश्व के साथ जनसम्पर्क को जोड़ रखा है जब शिशु इस धरती पर जन्म लेता है ,तो उसे एक ही  भाषा आती है वह है,  भावों की भाषा ,परन्तु भावों की भाषा का क्षेत्र सिमित है।
मेरी मातृभाषा हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ठ है।  संस्कृत से जन्मी देवनागरी लिपि में वर्णित हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ट है।  अपनी मातृभाषा का प्रयोग  करते समय मुझे अपने  भारतीय होने का गर्व होता है।  मातृभाषा बोलते हुए मुझे अपने देश के प्रति मातृत्व के भाव प्रकट होते हैं।   मेरी मातृभाषा हिंदी मुझे मेरे देश की मिट्टी  की  सोंधी -सोंधी महक देती रहती हैं  ,और भारतमाता    माँ  सी  ममता। 
आज का मानव स्वयं को  आधुनिक कहलाने की होड़ में  'टाट में पैबंद ' की तरह अंग्रेजी के साधारण  शब्दों का प्रयोग कर स्वयं को  आधुनिक समझता  है।
अरे जो नहीं कर पाया अपनी मातृ भाषा का सम्मान उसका स्वयं का सम्मान भी अधूरा है।  किसी भी भाषा का ज्ञान होना अनुचित नहीं   अंग्रेजी  अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। इसका ज्ञान होना अनुचित नहीं।
परन्तु माँ तुल्य अपनी मातृभाषा का प्रयोग करने में स्वयं में हीनता का भाव होना स्व्यम का अपमान है।
मातृभाषा का सम्मान करने में स्वयं को  गौरवान्वित  महसूस करें।   मातृभाषा का सम्मान  माँ का सम्मान है.
हिंदी भाषा के कई महान ग्रन्थ सहित्य ,उपनिषद ' रामायण ' भगवद्गीता ' इत्यादि महान ग्रन्थ युगों -युगों से  विश्वस्तरीय  ज्ञान की  निधियों के रूप में आज भी सम्पूर्ण विश्व का ज्ञानवर्धन कर रहे हैं व् अपना लोहा मनवा रहे है।
भाषा स्वयमेव ज्ञान की देवी सरस्वती जी का रूप हैं।   भाषा ने ही ज्ञान  की धरा को आज तक जीवित रखे हुए हैं
मेरी मातृभाषा हिंदी  को मेरा  शत -शत  नमन  आज अपनी भाषा हिंदी के माध्यम से मैं अपनी बात लिखकर आप तक पहुंचा रही हूँ।

*विरासत की सम्पत्ति *

**विरासत की सम्पत्ति* .....क्या आप जानते हैं विरासत की सम्पत्ति क्या है
पहले मुझे ज्ञात नहीं था, आज भी कई बार दुनियां के धंधों में उलझा हुआ, मैं भूल जाता हूं कि मुझे विरासत मैं बहुत कुछ मिला है ,परंतु मुझे इसका उपयोग करना नहीं आया ,या यूं कहिए मैं इससे अनभिज्ञ ही रहा ।
क्या आप जानना चाहेंगे मुझे विरासत में अपने पूर्वजों से क्या मिला ?
जी बिल्कुल ,आप भी और मैं खुद भी जानना चाहूंगी।
मुझे विरासत में उच्च संस्कारों का धन मिला ,जिसका सही से उपयोग करना मुझे आज तक नहीं आया ,परंतु अब आधुनिकता की दौड़ में भटकते-भटकते अनैतिकता के व्यवहार से पीड़ित विचलित मेरे मन को ,अपने उच्च संस्कारों की सम्पदा का ज्ञान हुआ आज जब मैंने इस सम्पदा को अपने जीवन में सही से व्यवहार में लाना शुरू किया ,मेरा जीवन सफल हुआ,मन की विचलितता शांत हुई ,
बाल्यकाल से ही विद्यालयों नैतिक और समाजिक  शिक्षा  का ज्ञान दिया जाता है ।
विद्यालयों में शिक्षकों द्वारा नैतिक शिक्षा के कई प्रेरणास्पद प्रसंग समझाए जाते हैं जो किसी समाज की स्वस्थ छवि बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
भारतीय इतिहास को विरासत के रूप में अमूल्य सम्पदा ओं के खजाने पर्याप्त मातृ में प्राप्त हैं । चारों वेद,अथर्ववेद ,यजुर्वेद,सामवेद  श्रीमद भागवत गीता, रामायण , पुराण आदि इन सब ग्रंथों में ज्ञान के संपदाओं के खजाने निहित हैं ,जिसको इन खजानों में से ज्ञान रूपी सम्पदा और रतनों को जीवन में उतारना आ गया या यूं  कहिए जिसने अपने जीवन में उतार लिए उसका जीवन सार्थक है वह दुनिया का सबसे धनवान मनुष्य है।

धर्म और ज्ञान ,



दिव्य आलौकिक शक्ति जो इस सृष्टि को चला रही है , क्योंकि यह तो सत्य इस सृष्टि को चलाने वाली कोई अद्वित्य शक्ति है ,जिसे हम सांसाररिक लोग  अल्लाह ,परमात्मा ,ईसा मसीहा ,वाहे गुरु , भगवान इत्यादि ना जाने कितने नामों से पुकारते हैं , अपने इष्ट को याद करतें है।  उस शक्ति के  आगे हमारा कोई अस्तित्व नहीं तभी तो हम सांसरिक लोग उस दिव्य शक्ति को खुश करने की कोशिश में लगे रहते हैं …और कहतें है , तुम्हीं हो माता ,पिता तुम्हीं हो , तुम्हीं हो बन्धु ,सखा तुम्ही हो । दूसरी तरफ , परमात्मा के नाम पर धर्म की आड़ लेकर आतंक फैलाना बेगुनाहों मासूमों की हत्या करना,विनाश का कारण बनना , ” आतंकवादी “यह बतायें ,कि क्या कभी हमारे माता पिता यह चाहेंगे या कहेंगे, कि  जा बेटा धर्म की आड़ लेकर निर्दोष मासूमों की हत्या कर  आतंक फैला ?  नहीं कभी नहीं ना , कोई माता -पिता यह नहीं चाहता की उनकी औलादें गलत काम करें गलत राह पर चले । धर्म के नाम पर आतंक फ़ैलाने वाले लोगों ,आतंक फैलाकर स्वयं अपने धर्म का अपमान ना करो  । धर्म के नाम पर आतंक फैलाने वालों को शायद अपने धर्म का सही ज्ञान ही नहीं मिला है , कोई भी धर्म हिंसा की शिक्षा नहीं देता , अहिंसा की ही शिक्षा देता है , प्रत्येक धर्म का मूल परस्पर प्रेम ,और भाईचारा ही है , अशिक्षा सही शिक्षा ना मिलना ,भी आतंकवाद का प्रमुख कारण हो सकता है , क्योंकि वास्तविक शिक्षा प्रगति का मार्ग दिखाती है ,  ”सभ्यता की सीढ़ियाँ चढ़ाती है ” “,विश्व कौटूम्बकं की बात सिखाती है ,”आतंक को शिक्षा से जोड़ना पड़ेगा क्योंकि आतंक फ़ैलाने वालों को सही ज्ञान सही मार्गदर्शन की  आवयश्कता है ,क्योंकि..   हिंसा को हिंसा से कुछ समय के लिए दबाया तो जा सकता है पर ख़त्म नहीं किया जा सकता , इसके लिए सही मार्गदर्शन की अति आवयश्कता है।

" धर्म और ज्ञान "


*धर्म और ज्ञान*

 धर्म का मर्म इंसानियत 
परस्पर प्रेम और भाईचारा है 
मेरा धर्म इंसानियत मुझे सीखता है 
परस्पर प्रेम के बीज बोकर अपनत्व की फसल उगाओ 
और नफरत की सभी झाड़ियां काट डालो 

  किसी भी समाज की परिस्थिति वातावरण के अनुसार संगठित समुदाय  के कुछ नियम कानून ,यह समुदाय हुआ ना की धर्म ,धर्म का मूल तो सनातन ,सत्य प्रेम ,इंसानियत ही है ।
**दिव्य आलौकिक शक्ति जो इस सृष्टि को चला रही है , क्योंकि यह तो सत्य इस सृष्टि को चलाने वाली कोई अद्वित्य शक्ति है ,जिसे हम सांसाररिक लोग  अल्लाह ,परमात्मा ,ईसा मसीहा ,वाहे गुरु , भगवान इत्यादि ना जाने कितने नामों से पुकारते हैं , अपने इष्ट को याद करतें है।  उस शक्ति के  आगे हमारा कोई अस्तित्व नहीं तभी तो हम सांसरिक लोग उस दिव्य शक्ति को खुश करने की कोशिश में लगे रहते हैं …और कहतें है , तुम्हीं हो माता ,पिता तुम्हीं हो , तुम्हीं हो बन्धु ,सखा तुम्ही हो ।
   धर्म के नाम पर पाखंड करना तुम ऐसा करोगे तो ऐसा हो जाएगा ऐसा करोगे तो.....क्या कोई भी सच्चा धर्म हमें किसी काम के लिए बाध्य कर सकता है ,नहीं ना ... हां धर्म हमें बाध्य करता है कि किसी का बुरा ना करो ना सोचो ....प्रत्येक धर्म का मूल इंसानियत और भाईचारा ही है ..
  दूसरी तरफ , परमात्मा के नाम पर धर्म की आड़ लेकर आतंक फैलाना बेगुनाहों मासूमों की हत्या करना,विनाश का कारण बनना , ” आतंकवादी “यह बतायें ,कि क्या कभी हमारे माता पिता यह चाहेंगे या कहेंगे, कि  जा बेटा धर्म की आड़ लेकर निर्दोष मासूमों की हत्या कर  आतंक फैला ?  नहीं कभी नहीं ना , कोई माता -पिता यह नहीं चाहता की उनकी औलादें गलत काम करें गलत राह पर चले । धर्म के नाम पर आतंक फ़ैलाने वाले लोगों ,आतंक फैलाकर स्वयं अपने धर्म का अपमान ना करो  । धर्म के नाम पर आतंक फैलाने वालों को शायद अपने धर्म का सही ज्ञान ही नहीं मिला है , कोई भी धर्म हिंसा की शिक्षा नहीं देता , अहिंसा की ही शिक्षा देता है , प्रत्येक धर्म का मूल परस्पर प्रेम ,और भाईचारा ही है , अशिक्षा सही शिक्षा ना मिलना ,भी आतंकवाद का प्रमुख कारण हो सकता है , क्योंकि वास्तविक शिक्षा प्रगति का मार्ग दिखाती है ,  ”सभ्यता की सीढ़ियाँ चढ़ाती है ” “,विश्व कौटूम्बकं की बात सिखाती है ,”आतंक को शिक्षा से जोड़ना पड़ेगा क्योंकि आतंक फ़ैलाने वालों को सही ज्ञान सही मार्गदर्शन की  आवयश्कता है ,क्योंकि..   हिंसा को हिंसा से कुछ समय के लिए दबाया तो जा सकता है पर ख़त्म नहीं किया जा सकता , इसके लिए सही मार्गदर्शन की अति आवश्यक है ।

                          ''कहतें हैं,ना देर आये दूरस्थ आये''
                                             

                                                  """""बस थोडा सा प्रोत्साहन"""""

सफलता और असफ़लता जीवन के दो पहलू हैं। एक ने अपने जीवन में सफलता का भरपूर स्वाद चखा है उसकी सफलता का श्रेय सच्ची लगन ,मेहनत ,दृढ़ -इचछाशक्ति ,उसका अपने कार्य के प्रति पूर्ण- निष्ठां व् उसके विषय का पूर्ण ज्ञान का होना था। और उसके व्यक्तित्व में उसकी सफलता के आत्मविश्वास की छाप भर -पूर थी। वहीं दूसरी तरफ़ दूसरा वयक्ति जो हर बार सफलता से कुछ ही कदम दूरी पर रह जाता है ,उसके आत्म विश्वास के तो क्या कहने, परिवार व् समाज के ताने अपशब्द निक्क्मा ,नक्कारा ,न जाने कितने शब्द जो कानों चीरते हुए आत्मा में चोट करते हुए ,नासूर बन दुःख के  सिवा कुछ नहीं देते।
उसे कोई चाहिये था जो उसके आत्म विशवास को बड़ा सके,  उसे उसके विषय का पूर्ण  ज्ञान प्राप्त करने में सहायता करवाये । जीवन  में आने वाले उतार -चढ़ाव कि पूरी जानकारी दें ,और सचेत रहने की भी पूरी जानकारी दे। उसे  सरलता का भी   महत्व  भी  समझाया       गया  ,सरलता का मतलब मूर्खता कदापि नहीं है। सरलता  का तातपर्य निर्द्वेषता  ,किसी का अहित न  करने का भाव है। अकास्मात मुझे ज्ञात हुआ , कि किसी का आत्मविश्वास  को बढ़ाना ,बस थोडा सा प्रोत्साहन देना टॉनिक का काम करता है , और यही  सच्ची सफलता  के भी  लक्षण है। अपनी सफलता  से तो सभी खुश होते हैं ,परन्तु  किसी को  सफलता कि और  आगे बढ़ाने में सहायता  करना भी  सच्ची सफलता के लक्षण  हैं। बस थोड़ा सा  प्रोत्साहन का  टॉनिक  और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।अपने विषय का पूर्ण ज्ञान होने पर  आत्मविश्वास की जड़े मजबूत  होती हैं ,तब दुनियाँ कि कोई भी आँधी आपकी सफलता में बाधक  नहीं बन  सकती।

रंगों का अद्भुत संसार

 यूं तो मुझे सारे रंग अच्छे लगते हैं किन्तु किस दिन कौन सा रंग पहनूं बढ़ी समस्या होती है ।

अब एक दिन लाल पहना था तो दूसरे दिन कौन से रंग के कपड़े पहनूं ।

हम भारतीय भी हर बात का हल निकाल ना जानते हैं 

भारतीय संस्कृति स्वयं में अतुलनीय है 

चलो सारी समस्या ही खत्म अब किसी को ज्यादा सोचने की आवश्यकता नहीं ।

हम भारतीय सोमवार को भगवान शिव का दिन मानते हैं ,और हमारे ईष्ट शिव शंकर तो भोलेनाथ हैं हमेशा ध्यान तपस्या में लीन रहते हैं । भगवान शिव के नाम पर पवित्र रंग श्वेत , यानि सोमवार का श्वेत रंग ।

मंगलवार ,मगल भवन अमंगल हारी राम भक्त हनुमान केसरी नंदन हनुमान जी का शुभ रंग , केसरी,लाल गुलाबी रंग मंगलवार का शुभ रंग ।

बुधवार ;-‌ज्ञान बुद्धि एवं समृद्धि सम्पन्नता व्यापार में लाभ के दाता भगवान विष्णु को नमन । समृद्धि का रंग हरा रंग ।

बृहस्पतिवार :- जिसे गुरुवार भी कहते हैं , ज्ञान बुद्धि को देने वाले गुरु को प्रणाम ,‌ वन्दना विद्या देवी सरस्वती जी को शुभ रंग पीला , श्वेत ।

शुक्रवार :- वन्दना मां लक्ष्मी देवी माता को भाता लाल‌ गुलाबी रंग प्रिय नमन शक्ति स्वरूपा देवी ।

शनिवार :- धीर गम्भीर कष्टों से मुक्ति देने वाले शनिदेव ‌को

‌‌ ्व्व्व््व्व्व्व्व्व््व्व््व्व्व््व्व्व्व

  प्रणाम शुभ रंग नीला ,काला ।

रविवार :- सूर्य देवाय नमो नमः सूर्य का तेज प्रकाश रोशनी की किरणें जो सबके जीवन में उजाला भर दे ‌। नारंगी  पीला गुलाबी,‌लाल रंग रविवार का रंग ।

बहुत अच्छा लगता है मुझे भारतीय संस्कृति का यह ताल मेल सभ्यता संस्कृति में सब चीजों का हल है ।

किन्तु एक बात और .... जो मन को अच्छा लगे स्वयं के लिए और सबके लिए शुभ हो , किसी भी दिन कोई भी रंग पहने एसा कहीं कोई विवशता नहीं सभी रंग परमात्मा के हैं और उसे सभी रंग प्रिय हैं ।




" शिक्षक का स्थान सबसे ऊँचा "

शिक्षक का स्थान सबसे ऊँचा”


आदरणीय, पूजनीय ,

सर्वप्रथम ,  शिक्षक का स्थान  समाज में सबसे ऊँचा

शिक्षक समाज का पथ प्रदर्शक ,रीढ़ की हड्डी

शिक्षक समाज सुधारक ,शिक्षक मानो समाज.की नींव

शिक्षक भेद भाव से उपर उठकर सबको सामान शिक्षा देता है ।

शिक्षक की प्रेरक कहानियाँ ,प्रसंग कहावते बन विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा स्रोत ..
अज्ञान का अन्धकार दूर कर ,ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं।

तब समाज प्रगर्ति की सीढ़ियाँ चढ़ उन्नति के शिखर पर
 पहुंचता है,

जब प्रकाश की किरणे चहुँ और फैलती हैँ ,
तब समाज का उद्धार होता है ।
बिन शिक्षक सब कुछ निर्रथक, भरष्ट ,निर्जीव ,पशु सामान ।

शिक्षक की भूमिका सर्वश्रेष्ठ ,सर्वोत्तम ,
नव ,नूतन ,नवीन निर्माता सुव्यवस्तिथ, सुसंस्कृत ,समाज संस्थापक।

बाल्यकाल में मात ,पिता शिक्षक,  शिक्षक बिना सब निरर्थक सब व्यर्थ।

शिक्षक नए -नए अंकुरों में शुभ संस्कारों ,शिष्टाचार व् तकनीकी ज्ञान की खाद डालकर सुसंस्कृत सभ्य समाज की स्थापना करता है ।।।।।।।



स्वागतम् गणपति महाराज जी आपका ....

 


माता जाकी पार्वती
पिता महादेवा ,
हे गणपति,हे गणेशा
मैं सदा ,सरल हृदय से
शुद्ध बुद्धि से तेरा नाम
गुणगान गवां ,तेरा नाम सिमरन
कर नित -नए भोग लगवां
हे गणपति मैं निश दिन प्रतिपल
तुझे ही मनावां
रिद्धि, सिद्धि
शुभ , लाभ
लक्ष्मी और सरस्वती
समस्त सिद्धियों के तुम स्वामी
तुम अन्तर्यामी ,
सब के मन की जानी
विश्व भ्रमण का सुख
माता -पिता के चरणों
में पाया, हे, लम्बोदर
बड़े-बड़े रहस्यों को
विशाल ललाट मस्तक में
सिद्धि विनायक ने
विवेक बुद्धि ,ज्ञान से
वेद, ग्रंथों ,आदि महाकाव्यों
की रचना कर जगत को
ज्ञान विवेक का पाठ सिखाया
हे ,विनायक हे लम्बोदर
तेरे नाम लेने से तर जाएं सातों समुन्दर



💐ॐ 💐💐ॐ जय सरस्वती भगवती देवी नमः 💐💐

   💐💐ॐ   💐💐ॐ जय सरस्वती भगवती देवी नमः 💐💐
                नतमस्तक ,नमन, अभिवादन
                जय सरस्वती देवी, आप ज्ञान रूप में ,
                मेरी बुद्धि में जो सदा विराजमान रहकर
                मेरा मार्गदर्शन करती रहती हो ,उसके लिये
                मैं आपका वन्दन करूँ ,प्रतिपल,प्रतिदिन,
                असँख्य बार वन्दन करूँ।
             "  हे सरस्वती माता" आप जो हम मनुष्यों की
               बुद्धिमें विराजमान होकर हमारा मार्गदर्शन
               करती हो ,हम मनुष्यों को भले और बुरे का व
           विवेक कराती हो,हमें सँसार में शुभ कर्मो के लिये
                प्रेरित करती हो ,उसके लिये मैं धन्यवाद करूँ
                मैं, तो निश दिन" हे,सरस्वती देवी" ,तुम्हारा ही
                गुणगान करूँ ,यशगान करूँ । हे बुद्धि विवेक
                की देवी हम सबका मार्गदर्शन करते रहो ।
                ऐसा वर दो वीणा वादिनी ,मेरी वीणा से में भी
                ज्ञान का अमृत भर दो 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

सुख समृद्धि

 "लक्ष्मी जी संग सरस्वती जी भी आति  आवशयक  है"

शुभ दीपावली ,दीपावली में लक्ष्मी जी के पूजन का विशेष महत्व है,क्यों ना हो लक्ष्मी जी विशेष स्थान ,क्योंकि लक्ष्मी जी ही तो हैं जो,ऋद्धि -सिद्धि धन ऐश्वर्य कि दात्री हैं। परन्तु कहते हैं ,लक्ष्मी चंचल होती है वह एक जगह टिकती नहीं ,इसलिये लक्ष्मी जी के साथ सरस्वती जी का स्वागत भी होना चहिये ,सरस्वतीजी बुद्धि ज्ञान विवेक कि दात्री हैं,लक्ष्मी का वाहन उल्लू है ,यह बात तो सच है कि लक्ष्मी के बिना सारे ऐश्वर्य अधूरे हैं ,परन्तु एक विवेक ही तो है जो हमें भले -और बुरे में अन्तर बताता है।

दीपावली के दिन स्व्छता का भी विशेष महत्व होता  है ,क्योंकि स्व्च्छ स्थान पर देवों का वास होता है। दीपावली के दिन  ऋद्धि- सिद्धि कि देवी सुख समृद्धि के साथ जब घर -घर जायें तो उन्हें सवच्छ सुंदर प्रकाश से परिपूर्ण वातावरण मिले और वो वहीं रुक जाएँ। दीपावली के दिन पारम्परिक मिट्टी के दीयों को सुंदर ढंग से सजाकर पारम्परिक रंगों से रंगोली बनाकर माँ लक्ष्मी का स्वागत करना चाहिए।  आवश्यक नहीं की मूलयवान सजावटी समानो से ही अच्छा स्वागत हो सकता है। भगवान  तो भाव के भूखे हैं। मान लीजिए आप किसी के यहाँ अथिति बन कर गए,  आपके स्वागत में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी सुंदर सजावट कई तरह के देशी -विदेशी वयंजन से आपका स्वागत हुआ परन्तु उस व्यक्ति के चहरे के भावों से व्यक्त हो जाये कि वः खुश नहीं है ,कोई स्वार्थ नजर आए तो  बताइये आपको कैसा लगेगा। अतः अगर भगवान का स्वागत हम अच्छे भाव से करेंगे तो उन्हें ज्यादा प्रसन्नता  होगी। मन में कोई द्वेष न हो मन में निस्वार्थ प्रेम भरा हो ईर्ष्या द्वेष से परे परस्पर प्रेम का सन्देश लिए अब से हर दीपावली ज्ञान के प्रकाश का विवेक संग दीपक जलाएं।

                                  "भगवान भाव के प्रेमी न होते तो शबरी के जूठे बेर न खाते।"

"श्री कृष्ण भगवान दुर्धोयन के महलों का मेवा छोड़ कर विदुर जी के यहाँ भोजन करने गए और प्रेमवश केले के छिलके खाकर भी प्रसन्न हो गए। "





"शिक्षक का स्थान सबसे ऊँचा"

आदरणीय, पूजनीय ,
               सर्वप्रथम ,  शिक्षक का स्थान  समाज में सबसे ऊँचा
               शिक्षक समाज का पथ प्रदर्शक ,रीढ़ की हड्डी
               शिक्षक समाज सुधारक ,शिक्षक मानो समाज.की नीव
               शिक्षक भेद भाव से उपर उठकर सबको सामान शिक्षा देता है ।
               शिक्षक की प्रेरक कहानियाँ ,प्रसंग कहावते बन विद्यार्थियों के लिए
               प्रेरणा स्रोत ,अज्ञान का अन्धकार दूर कर ,ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं,
                तब समाज प्रगर्ति की सीढ़ियाँ चढ़ उन्नति के शिखर पर पहुंचता है,
             
              जब प्रकाश की किरणे चहुँ और फैलती हैँ ,
              तब समाज का उद्धार होता है ,
              बिन शिक्षक सब कुछ निर्रथक, भरष्ट ,निर्जीव ,पशु सामान ।
             
              शिक्षक की भूमिका सर्वश्रेष्ठ ,सर्वोत्तम ,
              नव ,नूतन ,नवीन निर्माता सुव्यवस्तिथ, सुसंस्कृत ,समाज संस्थापक,
              बाल्यकाल में मात ,पिता शिक्षक,  शिक्षक बिना सब निरर्थक सब व्यर्थ
           
              शिक्षक नए -नए अंकुरों में शुभ संस्कारों ,शिष्टाचार व् तकनीकी ज्ञान
               की खाद डालकर सुसंस्कृत सभ्य समाज की स्थापना करता है ।

संस्कृति और सभ्यता

इतिहास गवाह है

भारतीय संस्कृति का 

अद्भुत शौर्य, देशप्रेम में

वीरों का बलिदान

नतमस्तक सहृदय सम्मान 


इतिहास संस्कृति,सभ्यता 

अमूल्य सम्पदा विश्व धरोहर 

प्रेरणाओं का अनुपम स्रोत

वेद उपनिषद अनेकों ग्रन्थ 

ज्ञान दर्पण एवं ज्ञान गंगा का 

अद्भुत अथाह अनन्त सागर  


 देश,काल, प्रगति का सूचक 

इतिहास धरोहर, विचार मनोहर

प्रेरक व्यक्तित्व त्याग, समर्पण

निस्वार्थ सेवा परस्पर प्रेम का 

निश्चल पावन‌ सरोवर


सफल जीवन की परिभाषा 

कर्मों से जागे निराश जीवन में आशा

नव जीवन की नव अभिलाषा 

इतिहास गवाह हो जीवन जियो कुछ ऐसा ।

 

नाम:- ऋतु असूजा 

शहर :- ऋषिकेश उत्तराखंड

**शिक्षकों का स्थान सर्वोच्च **



कभी सिर पर हाथ फेर कर
कभी डांट कर,
कभी दुत्कार कर
कभी मूर्ख, कभी मंदबुद्धि
कहकर , माना की मेरा दिल
बहुत जलाया ......
परंतु उसी आग ने मेरे अंदर
के स्वाभिमान को जगाया
उस चिंगारी से सर्वप्रथम
मैंने स्वयं को जगाया एक
बेहतर इंसान बनाया
फ़िर समाज के लिए कुछ
कर गुजरने के जनून ने
मुझे मेरे कर्म मार्ग में निरंतर
आगे की और बड़ने को प्रेरित किया
मैं आज जो कुछ भी हूं
मेरे शिक्षकों द्वारा दी गई शिक्षा के फलीभूत....
या यूं कहिए मेरे अंदर की
ज्ञान की चिंगारी को मशाल का
रूप देकर समाज को रोशन किया
धन्य -धन्य ऐसे शिक्षकों को
जिन्होंने मेरे और मेरे जैसे कई
मनुष्यों के जीवन को सही मार्ग दिखाने
के लिए स्वयं के जीवन को चिराग बनाया
उनका जीवन सफल बनाया..

 शिक्षकों के सम्मान में
एक अच्छा शिक्षक नदिया के
बेहते जल की तरह होता है
जिसके ज्ञान की निर्मल धारा में
कोई भी अपनी प्यास बुझा सकता है और
उसकी बेहती जल धारा, गन्दगी रूपी अज्ञान को
बाहर निकाल देती है ।





नववर्ष की सुन्दर बेला “


red_valentine_roses-wideनववर्ष के कोरे पन्ने ,
सुनहरी स्याही से ,भरें उज्जवल भविष्य के सूंदर सपने ।
सुस्वागतम्   सुस्वागतम्   नववर्ष की शुभ मंगल बेला ,
नयी भोर की नयी किरण है , हृदय में सबके नई उमंग है
नयी उमंग संग ,  नयी तरंग संग , दिल में हो पवित्र ज्ञान का संगम ।
नयी पीढ़ी की नव नूतन अभिलाषाएँ  नयी विचारधाराएँ…..
बढ़ने को उत्सुक प्रग्रति की राहों पर .. लिखने को उत्सुक उन्नति की नयी परिभाषायें
नहीं द्वेष हमें किसी से ,ह्रदय में निर्मल प्रेम की गंगाधारा
नववर्ष में खूब फले फूले खेत खलिहान ,सुख समृद्धि  करे सभी दिशाएँ
“विश्व् कौटुम्बकम , सत्यमेव जयते,   अहिंसा परमोधर्म,  सर्वे भवन्तु सुखिना
एकता में अनेकता . “जैसे कई महानात्माओं के वचन सत्य हो जाएँ ।
नववर्ष में एक प्रण है लेना, प्रस्पर प्रेम की खाद डालकर अपनत्व की फसल उगाओ,
द्वेष द्वन्द, की झाड़ियाँ काटो ,हृदय में प्रेम की ज्योत जलाओ।।।
मोती हैं अपने विभिन्न रंगों के , फिर भी हम एक माला के मोती
अब है अपनी जिम्मेदारी नहीं बिखरे माला के मोती हम सब हैं
एक दीप की ज्योति।।

*धरा के भगवान*


धरती पर मनुष्यों के भगवान
कैसे कह दूं उन्हें मात्र इंसान
कहते हैं जिन्हें धरा के भगवान
या कहें फ़रिश्ते ए आसमान
जीव विज्ञान का अद्भुत ज्ञान
कठिन साधना का परिणाम
जीवन एक तपस्या जिनकी
दूर करने को प्रतिबद्ध शारीरिक एवं
मानसिक समस्या असाध्य रोंगों से घिरा
इंसान ढूंढ़ता है एक चिकत्सक के रूप में भगवान
 जब खतरे में होती है मनुष्य जीवन के प्राण
जीवन और मृत्यु की जंग में बनकर रक्षा प्रेहरी
करते हैं समस्त प्रयास और देते हैं जीवन दान
हमें गर्व है  आप सब चिकित्सकों पर, महान योद्धा ओं पर महामारी के संकटकाल में जब सभी जन अपने -अपने घरों में बैठे होते हैं, आप सभी स्वास्थ्य योद्धा, डटे हुए रहते हैं स्वास्थ्य लाभ देते हैं अपनी जान जोखिम में डालकर ।
 नमन है,नतमस्तक हैं, महामारी में बनकर योद्धा
सरहद पर तैनात सिपाही करता है
दुश्मनों से देश की रक्षा
वहीं धरती पर दूसरे योद्धा जो
जो सदैव तैयार रहते हैं करने को दूर
शारीरिक समस्या दिलाते हैं असहनिय दर्द से
मुक्ति ,पास इनके होती है निष्ठा और कठीन
साधना की शक्ति
धरती पर परमात्मा की सौगात
दिव्य जीवन का आशीर्वाद,स्वस्थ जीवन
जीने का देते हैं महादान ।

बुलंदी की ऊँचाइयाँ  

बुलन्दी की ऊँचाइयाँ कभी भी अकेले आसमान नहीं छू पाती ,परस्पर प्रेम ,मैत्री ,सद्भावना  विश्व्कुटुम्ब्क की भावना  ही तरक्की की  सीढ़ियां हैं।
धार्मिक संगठन किसी भी देश -प्रदेश की भगौलिक प्राकृतिक परिस्थियों के अनुरूप नियमों का पालन करते हुए अनुशासन में रहते हुए संगठन में रहने के गुण भी सिखाता है।
अपनी विषेश पहचान बनाने के लिये या यूं कहिए की अपने रीती -रिवाज़ों को अपनी परम्पराओं व् संस्कृति को जीवित रखने के लिए किसी भी धर्म जाती या  संगठन या समूह का निर्माण प्रारम्भ हुआ होगा इसमें कोई दो राय नहीं हैँ,ना ही यह अनुचित है। परन्तु कोई भी धर्म या परम्परा जब जड़ हो जाती है ,भले बुरे के ज्ञान के अभाव में आँखों में पट्टी बाँध सिर्फ उन परम्पराओं का निर्वाह किया जाता है ,तो वह निरर्थक हो जाती है।
समय।,काल ,वातावरण के अनुरूप परम्पराओं में परिवर्तन होते रहना चाहिए परिवर्तन जो प्रगर्ति का सूचक हो। शायद ही कोई धर्म किसी का अहित करने को कहता हो ,
कोई भी इंसान जब जन्म लेता है ,एक सा जन्मता है सबकी रक्तवाहिनियों में बहने वाले रक्त का रंग भी एक ही होता है' लाल '. हाँ किसी भी क्षेत्र की जलवायु वहां के रहन -सहन के विभिन्न तौर -तरीकों की व्भिन्नता के कारण इंसान की चमड़ी के रंग में परिवर्तन अवशय होता है। अतः धर्म  जाती के नाम पर लड़ना आतंक फैलाना स्वार्थ सिद्ध करना कोई भी धर्म  या धर्म  ग्रन्थ धर्म  के नाम पर लडना नहीं सीखता।धर्म की आड़ लेकर कई संगठन विभिन्न भ्रांतियाँ फैलाना स्वार्थ सिद्धि के लिए आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं ,आतंकवाद से किसी का भला होने वाला नहीं है, सिर्फ विनाश ही विनाश---------
एक मजबूत किले की दीवार के लिए ईंठ ,पत्थर ,सीमेंट इत्यादि सभी को एक होकर एक रंग में रंगना पढ़ता है। तभी ऐतिहासिक इमारतें बनती हैं  इतिहास भी इस बात का ग्वाह है।
अतः मेरा देश महान मेरा भारत महान तो सभी कहते हैं ,देश महान तभी बनेगा जब हम सब धर्म  जातिवाद व् स्वार्थवाद से ऊपर उठकर प्रेम सद्भावना के रंग में रंग कर देश की उन्नति के लिए अग्रसर होंगे। अतः प्रत्येक मनुष्य जाती का धर्म परस्पर प्रेम ही होना चाहिये।

**आँगन की कली**

आँगन की कली *

vlcsnap-2015-07-23-11h14m17s66जब मैं घर में बेटी बनकर जन्मी
सबके चेहरों पर हँसी थी ,
हँसी में भी ,पूरी ख़ुशी नहीं थी,
लक्षमी बनकर आयी है ,शब्दों से सम्मान मिला ।
माता – पिता के दिल का टुकड़ा ,
चिड़िया सी चहकती , तितली सी थिरकती
घर आँगन की शोभा बढ़ाती ।
ऊँची-ऊँची उड़ाने भरती
आसमाँ से ऊँचे हौंसले ,
सबको अपने रंग में रंगने की प्रेरणा लिए
माँ की लाड़ली बेटी ,भाई की प्यारी बहना ,पिता की राजकुमारी बन जाती ।
एक आँगन में पलती,   और किसी दूसरे आँगन की पालना करती ।
मेरे जीवन का बड़ा उद्देश्य ,एक नहीं दो-दो घरों की में कहलाती ।
कुछ तो देखा होगा मुझमे ,जो मुझे मिली ये बड़ी जिम्मेदारी।
सहनशीलता का अद्भुत गुण मुझे मिला है ,
अपने मायके में होकर परायी ,  मैं ससुराल को अपना घर बनाती ।
एक नहीं दो -दो घरों की मैं कहलाती ।
ममता ,स्नेह ,प्रेम ,समर्पण  सहनशीलता  आदि गुणों से मैं पालित पोषित                                                                                                     मैं एक बेटी ,मैं एक नारी ….
मेरी  परवरिश  लेती है , जिम्मेवारी , तभी तो धरती  पर सुसज्जित है ,
ज्ञान, साहस त्याग समर्पण प्रेम से फुलवारी    ,
ध्रुव , एकलव्या  गौतम ,कौटिल्य ,चाणक्य वीर शिवजी
वीरांगना “लक्षमी बाई ,” ममता त्याग की देवी  ”पन्ना धाई”,आदि जैसे हीरों के शौर्य से गर्वान्वित है भारत माँ की फुलवारी

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...