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**अक्षय पात्र**

 
 गाँव में हर किसी को यह ख़बर थी ,कि, "राम सिंह " के घर मे *अक्षय पात्र*है ,जो उनके पास बहुत प्राचीन काल से है ।

लेकिन किसी ने भी उस "अक्षयपात्र" को देखा नही था ।

यहाँ तक कि राम सिंह के अपने परिवार के सदस्यों ने भी उस अक्षय पात्र को नही देखा था ।किसी को इजाज़त नही थी उस *अक्षयपात्र*को देखने की ।
राम सिंह का परिवार भरा पूरा था ,दो बेटे ,उनकी दो बहुयें ,दोनों बेटों के दो-दो बच्चे ।
रामसिंह ने अपने परिवार में यह घोषणा कर रखी थी ,कि मरने से पहले वह यह *अक्षयपात्र*उसे देगा जो उसकी कसौटी पर खरा उतरेगा ।
कौन नही चाहता कि, "अक्षयपात्र"उसे मिले ,इस कारण से परिवार में सबका व्यवहार परस्पर प्रेम के था ,सब एक दूसरे का यथायोग्य सम्मान करते थे ।
"रामसिंह"बहुत खुश था कि उसके परिवार के सभी सदस्य संस्कारी,और गुणवान हैं ।
घर मे हमेशा सुख-शांति का माहौल रहता सब ही बड़े धार्मिक स्वभाव वाले भी थे  ।
रामसिंह जी का सबसे छोटा बेटा थोड़ा चंचल था ,उसके बहुत मित्र थे जिनके साथ घूमना-फिरना खेलना लगभग लगा रहता था।
अपने पौते के इस व्यवहार से रामसिंह जी थोड़े चिंतित रहते ।
और दिन-रात अपने पौते को समझाते रहते ।एक दिन राम सिंह जी जब अपने पौते जिसका नाम अक्षय था ,समझा रहे थे, बेटा पड़ो लिखो कुछ बन जाओ । मैं चाहता तुम किसी ऊँचे पद के अधिकारी बनो ,पौते अक्षय के मन मे भी न जाने क्या आया बोला,दादा जी फिर आप मुझे जो आपके पास अक्षय पात्र पड़ा है देंगे ,दादाजी ने पौते के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा ,*हाँ*पर ये बात किसी को नही बताना,पौते ने कहा जी दादा जी बिल्कुल । उस दिन से तो अक्षय मानो बिल्कुल बदल गया ,अपनी मेहनत और लगन से वह कलेक्टर बन गया । अब तो अक्षयपात्र की तरफ अक्षय का ध्यान भी नही था बस तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ना उसका लक्ष्य था ।
आखिर दादा जी यानि रामसिंह जी की भी उम्र हो चली थी ,
कमजोरी की वजह से उन्होंने खटिया पकड़ ली थी ।
एक दिन दादा जी ने परिवार के सभी सदस्यों को अपने पास बुलाया अपनी सम्पत्ति का बँटवारा सबमे बराबर कर दिया ।
लेकिन सबकी निगाहें तो* अक्षय पात्र*पर थी ,दादा जी का बड़ा बेटा बोला दादा जी "अक्षयपात्र"तो आप मुझे ही देंगे मैं आपका सबसे बड़ा बेटा हूँ और आपके खानदान की परम्परा भी यही रही है, दादा जी मुस्कराये बोले तुम्हे किसने कहा कि ये परम्परा है कि अक्षय पात्र सबसे बड़े बेटे को मिलेगा ।
ये *अक्षयपात्र उसे मिलेगा जो परिवार में सबसे होनहार होगा ,परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे को देखने लगे आखिर दादाजी की नजरों में कौन सबसे ज्यादा होनहार है ।
दादा जी ने अपने सबसे छोटे पौते को अपने पास बुलाया और कहा मैं "अक्षयपात्र* इसे सौंपूंगा ,सब हैरान !

अक्षय बोला नही दादा जी मैं क्या करूँगा अक्षय पात्र मेरे पास आपके आशीर्वाद का साथ है और क्या चाहिये ,इतने में परिवार के अन्य सदस्य बोले हाँ-हाँ ये क्या करेगा अक्षय पात्र इसके पास तो बहुत अच्छी नौकरी है ,अक्षय ने भी हां में हाँ मिलाते हुए कहा जी दादा जी आप किसी और को दे अक्षय पात्र ।

दादाजी बोले नही बेटा ,मैने दोनों बेटों से कहा खूब पड़ो कुछ बनो दूसरे पौतों से भी कहा किसी ने भी ढंग से पढ़ाई नही की किसी ने दसवीं करके किसी बीच में पढ़ाई छोड़ दी सबकी नजरें मेरी सम्पत्ति पर थीं ।
एक तुम ही हो जिसने जीवन मे वास्तविक सम्पत्ति पायी ,
अक्षय बेटा तुम्हारे पास विद्या धन है ,जिसका कभी क्षय नही होता ।तो फिर अक्षय पात्र भी तुम्हे ही मिलेगा ।
अक्षय बार-बार कह रहा था नही दादा जी मुझे नही चाहिएअक्षय पात्र आप इसे परिवार के अन्य सदस्यों में बाँट दो ।
दादा जी ने अक्षय पात्र अपने पौते को पकड़ाते हुए कहा ये लो आज से तुम इसे संभालोगे ।
चलो खोलेकर तो  देखो इसमें कितना धन है ।अक्षय ने अक्षय पात्र के ऊपर बंधा हुआ कपड़ा हटाया उसकी आँखों की चमक मानो बढ़ गयी ,दादा जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कहते हुए अक्षय ने दादा के चरण स्पर्श किये ।

परिवार में सभी को उत्सुकता थी कि आखिर *अक्षय पात्र में कितना धन है ,सब कहने लगे दिखाओ अक्षय मुझे दिखाओ
सबने एक -एक करके *अक्षय पात्र*को देखा सबकी आँखे खुली की खुली रह गयीं ,फिर रामसिंह जी जा बड़ा बेटा बोला अक्षय वास्तव मे तुम ही इस *अक्षयपात्र*के हकदार हो ।
दादा जी ने एक-एक करके उस अक्षय पात्र में से सब कुछ निकाला सबसे पहले * रामायण*  फिर  *भगवतगीता*चारों वेद * अन्य कई धार्मिक पुस्तकें ,अन्त में दादा जी ने उस पात्र में से एक कागज़ निकाला जिस पर कुछ लिखा हुआ था ,दादा जी ने वह सबके सामने जोर-जोर से पढ़ा , उसमे लिखा था
 तुम सोच रहे होंगे इस पात्र में क्या है ?

 तुम जानते हो मैंने
 इसका नाम *अक्षय पात्र*क्यों रखा ?

इस पात्र मे तुम्हे कोई धन दौलत या सोने -चाँदी की अशर्फियाँ नही मिलेंगी ,फिर भी ये अक्षय पात्र है ।
हाँ बच्चों अक्षय धन है इस पात्र में ।
क्योंकि इस पात्र में विद्या धन है ।
जो कभी नष्ट नही होता विद्या धन के बल पर तुम कहीं पर कुछ भी पा सकते हो
विद्या धन एक ऐसा धन है ,जो अक्षय है जिसका कभी क्षय नही होता ।व्यवहारिक धन रुपया पैसा धन-दौलत सोना-चाँदी तो खर्च होने वाला धन है ।
इसलिए जीवन मे अग़र धन अर्जन करना है तो सर्वप्रथम विद्या धन ग्रहण करो जिसके द्वारा तुम संसार के समस्त धन प्राप्त कर सकते हो ।
 "विद्याधन ही वास्तव में जीवन का *"अक्षय पात्र"* है



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 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...