अभिशाप का वरदान

 वरदान बनकर फलित
 होता है नियति से मिला
 जीवन का अभिशाप
 समाहित होता है श्राप के
 मध्य एक संताप स्वयं
 के कर्मों का हिसाब।
बुद्धिजीवी टूट कर भी 
नहीं बिखरते,वरन संवरते
अभिशाप का प्रसाद
कर स्वयं के
जीवन में स्वीकार
बेहद का तिरस्कार
जीवन की जंग में
अकथनीय बहिष्कार
विषम परिस्थितियों
को मान जीवन का वरदान
तत्पर रहता है जो
कर्मठ कर्मप्रधान
जूझता है जो विपत्तियों
को परीक्षा मान
अभिशाप भी बन निखर
जाता है प्राप्त होता है सम्मान।
अभिशाप के दर्द का मर्म
 धैर्यवान समय बलवान
वक़्त बदलता है सत्य
शाश्वत बलवान ।
 






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