पुष्प तुम विधाता की
प्रकृति को बेहतरीन
अनमोल ,अतुलनीय अद्भुत
देन या यूं कहिए भेंट हो ।
पुष्प तुम्हारी प्रजातियां अनेक
पुष्पों में पुष्प पलाश
पल्लवित पलाश दर्शाता
प्रकृति का वसुंधरा
के प्रति अप्रितम प्रेम
दुल्हन सा श्रृंगार
सौंदर्य का अद्भुत तेज
पुष्प तुम प्रकृति के
अनमोल रत्न दिव्य आधार
पुष्प तुम श्रद्धा
पुष्प तुम श्रृंगार
पुष्प तुम प्रेम
पुष्प तुम मित्रता
पुष्प तुम समर्पण
पुष्प तुम महक
पुष्प तुम रौनकें बहार
पुष्प तुम संवेदना
पुष्प तुम श्रद्धांजलि
मिट्टी की गोद आकाश की छत
कांटों के बीच भी मुस्कराते हो
जीने की वजह बन जाते हो
पुष्प ने कहा ,मेरा स्वभाव ही ऐसा है
मुस्कराने के सिवा कुछ आता नहीं
वाह!!बहुत सुंदर रितु जी ।
जवाब देंहटाएंJi Dhnywad shubha ji
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंक्या बात...बहुत लाजवाब।
Thanks sudha ji
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
६ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंThanks sujata ji
हटाएंखूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंआभार
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