**जज्बात**

    *****अनमोल का क्या मोल 
दुनियां का क्या उसका तो 
काम ही है ,मोल-भाव नाप- तोल
माना की निर्झर झड़ी है
झरने सी प्रतीत होती है
ये झरना नहीं 
दरिया सा बह रहे हैं 
किन्तु दरिया भी नहीं 
ये तो बेअंत हैं
इनका कोई थाह भी नहीं 
इनकी यात्रा असीम है 
गहराई भी अनन्त है
ये बेवजह भी नहीं 
प्रहार पर प्रहार 
बेअंत तूफ़ान ,आंधियां 
परिणाम जलजला 
सैलाब.... ये अश्क हैं साहब.....
.. कोई झरना या दरिया नहीं
ये जज्बातों के दर्द की वो किताब है 
जिनके हर पन्ने की लिखायी 
बताती है अश्कों से धुले हुए
लफ्जों की कहानी 
ऐसे ही किरदारों की है दुनियां दीवानी ******
चाहे घुट-घुट कर गुज़र जाए किसी की जिन्दगानी******







2 टिप्‍पणियां:

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