“आग है लगी हुयी “

 जिधर नज़र दौड़ायी
 नज़र आया बस कूड़ा ही कूड़ा
 कूड़े के ढेर पड़े हुए हैं
 जगह -जगह ......
 आग लगी हुई है
 चमकते चेहरों पर जब
 नज़र टिकती है ........
तब नज़र आती है एक आग
आग विचारों रूपी
कूड़े के ढेरो की आग
कूड़ा बस कूड़ा ही कूड़ा
जब गहरायी में उतरा तो
नज़र आयी गंदगी ही गंदगी
गन्दगी में पनपते ज़हरीले जीवाणु .....
कीचड़ !कीचड़ में खिलते हुए नक़ली कमल
दिखावटी कमल ,सुगन्ध रहित, पुष्प
उजले वस्त्र,मैले मन
खिलते बगीचों की गहरायी में दलदल
का अन्धा कुआँ
अंतहीन ,लोभ ,भ्रष्टाचार का दलदल
चंद पलों की आनन्द की चाहत में
अँधेरी गुमनाम गलियों में भटकता मानव
बाहर भी कूड़ा , मन के अंदर भी कूड़ा
सिर्फ़ तन को चमकाता ,सजता ,सँवरता
आज का मानव ,बस -बस करो
साफ़ करो ये गन्दगी,
अमानवीयता के अवग़ुणो को जला कर राख करो
बाहर  और भीतर सब साफ़ करो ।



12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति, रितु!

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  2. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ० २ अप्रैल २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

    निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' ० २ अप्रैल २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय 'विश्वमोहन' जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।


    अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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    1. आभार सहित धन्यवाद ध्रुव जी मेरे द्वारा सृजित रचना को लोकतंत्र संवाद में सम्मिलित करने हेतु .....

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  3. मानव जीवन की विसंगतियों का प्रतीकात्मक बिम्ब के अलोक में अद्भुत चित्रण!!! बधाई और आभार आइना दिखने के लिए!!!

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  4. बहुत सुन्दर ,सार्थक और सटीक रचना

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  5. सफाई की ऐसी प्रेरणा...वाह रितु जी

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  6. सब कोई इस बनावटी चमक में रहना चाहता है अंदर का कूरा कोई साफ़ नहीं लेना चाहता ...
    अच्छी सामयिक सटीक रचना है ...

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