***मेहनती मजदूर***


💐जीवन :------हर एक के लिये जीवन की परिभाषा अलग-अलग है ।
जब तक हम स्वयं तक सीमित रहते हैं ,तब तक हमें जीवन वैसा ही लगता है ,जैसा हम देखते और सोचते हैं। परन्तु जब हम स्वयं से बाहर निकल कर समाज,देश, दुनियाँ को देखते हैं ,तब ज्ञात होता है ,कि जीवन की परिभाषा सब के लिये भिन्न -भिन्न है ।

💐मनुष्य जब तक स्वयं तक सीमित रहता है ,वो सोचता है ,कि सबसे ज्यादा अभावग्रस्त वो ही है ,जितनी मुश्किलें और बंदिशें उसके पास हैं ,उतनी किसी के हिस्से में नहीं । परन्तु जब हम अपने घर से बाहर निकलकर देखते हैं तो ऐसे-ऐसे कष्टों में लोग जी रहे होते है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते ,तब हम पाते हैं कि हम तो बहुत बेहतर जीवन जी रहे है ,अभी तक हम बस यूँ ही रोते रहे ।
मन ही मन को ढांढस बन्धता है ,कहता है ,देख ये कैसे -कैसे जीवन जी रहे हैं ।

एक बार तपती दोपहरी में मेहनती मजदूरों को काम करते देख दिल पसीजा साथ में ही उनकी पत्नियां बच्चे सब के सब लगे हुए थे। कोई महिला इंठों का तसला सिर पर उठाए कोई रेते का बच्चे भी वहीं खेल रहे हैं मिट्टी में उन्हें कोई चिन्ता नहीं ।
आखिर मैं एक मजदूर से पूछ बैठा तुम इतनी मेहनत करते हो ,फिर भी शिकवा -शिकायतों का नाम नहीं ।। मजदूर बोला वक्त किसके पास है साहब ,भगवान ने जो दिया है ,खुश है हम हमारे कर्म और हमारा नसीब ,शिकायतों के लिये समय ही नहीं ।

अजी सबसे पहले तो पापी पेट का सवाल है दो वक्त की रोटी कमाने में ही सारा दिन बीत जाता है ,किससे शिकायत करें ,जितना कमाते हैं ,उतना खाते हैं अगले दिन फिर वही ।
कर्मों की खेती करनी है ,जो बीज बोयेंगे वही फ़सल होगी क्यों अपने कल की चिन्ता में आज भी खराब करें ,जो बोयेंगे वही काटेंगे ।इसलिये साहब हम चिन्ता, शिकवा, शिकायतों से दूर ही रहना पसंद करते हैं ।
किससे शिकायत करें और क्यों ,साहब हमें बचपन से ही सिखाया गया है कि अपने से नीचे वालों को देखो ,संतुष्ट रहोगे ।ये नहीं कि हमें बेहतर करने की चाह नहीं ,हम तो अपना सफर जारी रखते हैं ,मुश्किलों से हम डरते नहीं चलना और रास्ते निकलना हमारा काम है ,ये जो साहब आप बड़े-बड़े मंजिलों वाले घरों में रहते हैं ना इन्हें हम ही बनाते है ,जिस दिन हम मजदूरों ने हार मान ली  ना उस दिन से तरक्की रुक जायेगी ,हम मजदूर हैं साहब हम बहता हुआ पानी हैं साहब  हमें जहाँ रास्ता मिलता है हम चलते हैं । आराम तो हम तब ही करते हैं जब परमात्मा हमें विश्राम देता है ।
उस मजदूर की बातों का मेरे दिलों दिमाग़ पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा ,वास्तव में ये जो बहुमंजिला इमारतें बड़े-बड़े घरों के रूप में और बड़े-बड़े शहरों की तरक्की का पर्याय हैं ,वो हमारे मेहनती मजदूरों की अटूट मेहनत का प्रमाण है ।
*एक सलाम मेहनती मजदूरों के नाम *

4 टिप्‍पणियां:

  1. जब तक हम स्वयं तक सीमित रहते हैं ,तब तक हमें जीवन वैसा ही लगता है ,जैसा हम देखते और सोचते हैं। परन्तु जब हम स्वयं से बाहर निकल कर समाज,देश, दुनियाँ को देखते हैं ,तब ज्ञात होता है ,कि जीवन की परिभाषा सब के लिये भिन्न -भिन्न है ।

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  2. बिल्कुल सही ...सटीक.....
    मजदूर हार मान जाए तो तरक्की रुक जाए...
    बहुत ही लाजवाब...

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  3. जी सुधा जी प्रणाम ,आदर सहित आभार ।

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