👍 दौड़ 👍



आधूनिकता की दौड़ में मैं पीछे रह गया
संस्कार बिक रहे थे, मैं ना बिका पिछड़ा रह गया

ना नाम कमाने का शौक है
ना दाम कमाने का शौक है।

मन में जो संकल्प आते हैं
उन्हें पूरा कर गुजरने का जनून है।

जीवन सफ़ल हो अपना
बस छोटा सा सपना है अपना।

सपने कब हुए अपने हैं
नीँद ख़ुली तो टूट गये जो सपने थे।

जागती आँखों से जो देखे थे जो सपने
कर्मों की खेती से लहलहाने लगे वो सपने।

मेरा कहाँ वजूत इतना की मैं कुछ कर जाऊं
ऊप र वाला जो कराता है ,मैं वो करता रहता हूँ ।

3 टिप्‍पणियां:

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