विश्वास और जीत

   " विश्वास और जीत "
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मेरा मुझ पर विश्वास जरूरी है ,
मेरे हाथों की लकीरों में मेरी तकदीर
सुनहरी है ।

क्यों स्वयं से अधिक हम दूसरों पर
यकीन करें।

माना की कोई किसी से कमतर नहीं है ।
पर मैं भी बेहतर और बेहतरीन हूँ
मुझे समझना जरूरी है।

हर एक की है ,अपनी विशेषता
माना मैं नही किसी के जैसा
यही तो मेरी पहचान है ।

मैं जैसा हूँ, मैं वैसा हूँ।
पर मैं जैसा हूँ ,बेहतरीन हूँ
क्योंकि मुझमे है, इन्सानियत की
खुद्दारी है ,मेरी पहचान है,वफादारी ।

मुझे करनी होगी अब जीतने की तैयारी
जीत सुनिश्चित है अबकी बारी
 स्वयं पर विश्वास की तैयारी ।

 मैं किसी से कम नहीं ,परस्पर प्रेम,
सभ्य आचरण, और इन्सानियत
की कलमों से रचना रची है मैंने सारी।

मेरा मुझ पर विश्वास है,
जीत सुनिशित है , मैंने की है पूरी तैयारी।।





4 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा आपने कि विश्वास की जीत अवश्य होती है!

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  2. रीतू जी, सही कहा आपने खुद से प्रेम होना ज़रूरी है जब भी हम खुद को बेहतर समझकर अपने हुनर को निखारते हैं तो यही हमारी एक दिन पहचान बन जाती है.....

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  3. बढ़िया । ब्लौगर ब्लौग फौलोवर गैजेट लगायें ताकि फौलो किया जा सके और छपने की सूचना मिलती रहे ।

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