'' मेहनती हाथ ''
मेहनत मेरी पहचान ,मैं मजदूर मजे से दूर।
धनाभाव के कारण थोड़ा मजबूर ,
मैले कुचैले वस्त्र मिट्टी से सने हाथ।
तन पर हज़ारों घात कंकाल सा तन
मै मज़दूर कभी थकता नही , क्या कहूँ थक के चूर -चूर
भी हो जाऊं पर कहता नहीं।
क्योंकि में हूँ मजबूर मज़दूर------
मेरे पसीने की बूँदों से सिंचित बड़ी -बड़ी आलीशान ईमारतें
देख -देख सवयं पर नाज़ करता हुँ।
और अपनी टूटी -फूटी झोपड़ियों मे खुश रहता हूँ।
यूं तो रहते हैं सब हमसे दूर ,
पर बड़े -बड़े सेठ हम से काम करवाने को मज़बूर
मजदूरों के बिना रह जाते हैं बड़े -बड़े आलिशान इमारतों के सपने अधूरे -----
में मजदूर सबके बड़े काम का ,फिर भी त्रिस्कृत
नहीं मिलता अधिकार मुझे मेरे हक का ,
में मजदूर बड़े काम का ।
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