**नया दौर, नयी सोच **

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 "आज फिर से ये सवारी किधर चली बन -ठन के .......  ओहो ! अम्मा जी किसी को टोकते नहीं जब वो किसी जरूरी काम से जा रहा हो ।
अम्मा जी ,व्यंग करते हुए बोली,जरूरी काम -
अब तुम्हे क्या जरूरी काम है , तुम्हारे सारे काम तो तुम्हारे बच्चे कर देते हैं ,ऑनलाइन घर पर बैठे - बैठे ,तुम्हे  क्या काम है ,मै जानती हूं ।
 क्या काम है,जरा  बताओ आप तो अन्तर्यामी हो अम्मा, मुझे पता है,आपको मेरा अच्छे से तैयार होने पर शंका होती है। अम्मा बोली नहीं बेटा शंका क्यों होगी ,तेरी बेटी की शादी हो गई,और चार पांच साल में बेटे की भी हो जाएगी ,तेरी बहू आएगी , बेटा बोला मैं समझ गया की आप क्या कहना चाहती हो की मेरी उम्र हो गई है , मैं बूढ़ा हो गया हूं ,नहीं अम्मा मैं बूढ़ा नहीं हुआ हूं और ना होंगा अभी मेरी उम्र ही क्या हुई है ..... हंसते हुए बोला ।
अम्मा बोली जा जो तेरी मर्जी वो कर मेरा क्या ,
जब बहू - बेटा हंसेंगे ना तब अक्ल आयेगी .....
बेटा अम्मा के पास आकर बैठ गया ,और बोला अम्मा ,लोग क्या कहेंगे ,लोग तो कुछ होने पर भी कहेंगे और कुछ ना होने पर भी कहेंगे ।
अम्मा नवीनता आव्यशक है ,नवीनता हमारे जीवन में नया उत्साह लाती है ,और हमें जीवन में आगे बढने को प्रेरित करती है ।
और अम्मा मनुष्य का मन हमेशा जवान रहना चाहिए ,क्योंकि मन ही स्वस्थ जीवन का संदेश देता  है ,तन का क्या है।
अम्मा मुझे नये- नये  कपड़े पहनने का शौंक है ,क्योंकि नवीनता हमारे जीवन से नीरसता को नहीं पनपने देती , हमें आगे बड़ने को प्रेरित करती है । जीवन में नया उत्साह और स्फूर्ति भरती है ।
अम्मा रुकी हुई ,या एक जगह ठहरी हुई चीज में धूल, जंक और काई लग जाती है ।
अम्मा मैं अपनी उम्र की आखिरी अवस्था तक आगे बड़ने का प्रयास करता रहूंगा ।
अम्मा अब आप बताओ आपकी उम्र क्या होगी ,अम्मा बोली यही कोई सत्तर से तो ऊपर ही होगी ,अम्मा आपकी समय में लोग अपने को बूढ़ा मैंने लगते थे , बच्चों का ब्याह क्या हुआ,आप सब प र बुढ़ापे की मोहर लग गयी,अपने सारे शौंक आप लोग समर्पित कर देते थे उम्र हो गई कहकर..... ,क्यो ?अम्मा सही के रहा हूं मैं ,अम्मा बोली  तू कह तो सही रहा है ,परंतु हमारे जमाने में तो ऐसे ही होता था ,आखिर समाज दारी भी कोई चीज होती है ।
अम्मा समाज तो हमेशा से" भेड़ चाल "चलता आया है ,समाज का क्या ।
 अम्मा मैं तो कभी बूढ़ा नहीं होना चाहूंगा , भले ही मेरा शरीर बूढ़ा हो जाए,परंतु मैं अपने मन  कभी बूढ़ा नहीं होने दूंगा ।
अम्मा हर रोज में बन-ठन के जो नया फैशन होगा वो करूंगा और कुछ नया अपनाने से नहीं डरूंगा ।
अम्मा कुछ नया नया करते रहने  से नीरसता नहीं आती ,जीवन को सकारात्मक ऊर्जा मिलती रहती है । अम्मा नवीनता आविष्कारों को भी जन्म देती है ,और प्रग्रती का भी सूचक है ।







“पुष्प और तितलियाँ “

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        मेरे सुन्दर संसार की बगिया में,
        विभिन्न रंग - बिरंगे पुष्पों की फुलवारी है
        मेरी फुलवारी में तितलियों का भी बसेरा होता है
        फुलवारी , आकर्षक ,मस्त , सुन्दर रंग - बिरंगी तितलियों को
        बहुत भाती हैं , वो प्यारी तितलियाँ , एक पुष्प से दूसरे पर इठलाती हैं
        मानों गीत - हँसी -ख़ुशी के गाती हैं , और कहती हैं ,
        तुम्हारे और हमारे जीवन में बहुत समानता है
        तुम भी अपने छोटे से जीवन काल में सबके जीने का सबब बनते हो
        और हम भी अपने छोटे से जीवन में , किसी की बगिया को महकाते हैं ,
        कभी किसी के दिल को भाते हैं , कभी कोई हमें तोड़ के ले जाता है
        कोई हार बना गले में पहनता है , कोई मंदिर में चढ़ाता है ,
        दुख में हो या सुख में मेरा तो भरपूर उपयोग हो जाता है ,
        अपने छोटे से जीवन में मेरा तो सम्पूर्ण उपयोग हो जाता है
        मैं “ईत्र “बनकर हवाओं को महकाता हूँ ,
        और धरती पर वायुमण्डल में अपना असर छोड़ जाता हूँ ।
        मैं पुष्प हूँ , में मरकर भी अमर हो जाता है
        सफल है जीवन मेरा ,जो किसी ना किसी उपयोग में आ जाता हूँ ।

“हौसलों का दामन पकड़ “ “

“हौसलों का दामन पकड़ “

“ तिमिर घोर तिमिर
वो झिर्रीयों से झांकती
प्रकाश की किरण
व्यथित , व्याकुल ,
पराजित मन को ढाढ़स बँधाती
हौंसला रख ए बंदे
उम्मीदों का बना तू बाँध
निराशा में मत अटक
भ्रम में ना भटक
वो देख उजाले की झलक
कर्मों में जगा कसक
नाउम्मीदी को ना जकड़
उजियारा दे रहा है तेरे द्वार
पर दस्तक
तेरा हौसला ही तेरे आगे बढ़ने का सबब
हौसलों ने उम्मीद के संग मिलकर
रचे हैं कई आश्रयजनक अचरज
तेरे हौसलों ने दिखाने हैं अभी कई बड़े- बड़े करतब ।

🌸🎉ख़ुशियाँ बाँटो 🎉🌺

     🌸🎉🌟🌟🌟🌟

         “अपनी ख़ुशियाँ  तो सब चाहते हैं
            परन्तु जो दूसरों। को ख़ुशी देकर ख़ुश होते हैं
          उनकी ख़ुशियाँ दिन - प्रतिदिन बढ़ती रहती हैं “
         
 गाँव में दशहरे के पर्व के उपलक्ष्य  में मेला लगा था  ।
   🌟🌟गाँव वालों में बहुत उत्साह था , मेला देखने जो जाना था , सभी अपने - अपने ढंग से तैयार होकर सज -धज कर कर मेले में जाने के लिये तैयार हो रहे थे ।
 बच्चों में भी उत्साह था , आख़िर गाँव में  कभी -कभार ही ऐसे मौक़े आते थे , की सब एक साथ मिलकर कहीं जायें।

    😊😃 वैदिक और बैभव भी मेले में घूमने जा रहे थे ,दादी का पंखा टूट गया था , दादी को अब मच्छर काटेंगे ,गर्मी भी लगेगी , वैदिक को बहुत चिंता हो रही थी .. दादी का पंखा मिल जाए मेले में वैदिक की दिली  इच्छा थी .....
   साथ में दोनो के माता -पिता भी थे , वैभव और वैदिक की माओं ने सिर पर बड़े-बड़े घूँघट ओड़ रखे थे , की अचानक आगे गड्ढा आया , और दोनो माताओं के पैर लड़खड़ाये और वो गड्ढे में जा गिरी , बच्चे ज़ोर -ज़ोर के हँसने लगे .... तभी दोनो माताओं के सिर से घूँघट हटे , और दोनो झट से उठ खड़े हुई , एक दूसरे को देखते हुए हँसने लगी , पिताजी बोले अरे भगवान अब मेले घूमने जा  रही हो घूँघट हटा दो .....,

 वैदिक और बैभव भी मस्ती में चले जा रहे थे दिल उमंग और उत्साह था ... मेले में क्या - क्या होगा ,
इतने में वैभव बोला वैदिक मैं तो सारे झूलों में झूलूँगा , और तुम वैदिक , तुम्हें तो बड़े झूलों से डर लगता है , तुम तो छोटे वाले  झूलों में ही झूलना ।  वैदिक स्वभाव से सरल और भावुक था , वह लड़ाई - झगड़े से कोसों दूर रहता था ।
जबकि वैभव चंचल स्वभाव का था , दोनों के स्वभाव बिल्कुल अलग थे । वैभव तेज़ हवा का झौंका और वैदिक शान्त , शीतल समीर .....
    🌟🌟 वैभव और वैदिक  मेले में पहुँच चुके थे , मेले में जगह - जगह खिलौनों और खाने -पीने की चीज़ों की दुकाने थी ,कभी पकोड़े , कभी जलेबी , कभी भेलपूरी , और सबसे बाद में 🍧🍨आइसक्रीम की बारी आयी , खाना - पीना तो बहुत हो गया था । अब जब तक बच्चे खिलौने ना लें तब तक सब अधूरा रहता है ।

बच्चे जाकर खिलौने की दुकान पर रुके , इधर वैदिक की नज़रें तो दादी माँ के लिये पंखा मिल जाये ,बस वही ढूँढ रही थी .....,...दशहरा का पर्व था दुकानों पर तीर -कमान ,तलवार आदि,
वैभव को  “सुनहरा तीर -कमान बहुत पसंद आ रहा था , उसने अपनी पसंद का तीर - कमान लिया कह रहा था मैं इस तीर - कमान से रावण के दस सिर काट दूँगा ... इतने में वैभव की माँ बोली अपनी छोटी बहन के लिये भी जो दादी के साथ घर पर है उसके लिये भी कुछ ले लेते हैं , वैभव की बहन के लिये गुड़िया , बाजा और खाने की चीज़ें ली गयी ।

   इधर वैदिक अपनी धुन में सरलता से दुकान दार से हर चीज़ का दाम पूछ रहा था , तभी वैदिक ने श्री राम जी की तस्वीर उठा ली और कहा भैय्या जी ये दे दो ,तभी वैदिक की नज़र आगे वाली दुकान पर पड़ी वहाँ उसे पंखा दिखायी दिया , दुकानदार को दो मिनट रुको कहकर वैदिक आगे वाली दुकान पर पंखा लेने चला गया , इतने में वैभव आया उसने दुकानदार से पूछा भाई वो लड़का जो यहाँ खड़ा था कहाँ  गया , दुकानदार ने आगे की और इशारा करते हुए कहा बच्चा है ओर कुछ पसंद आ गया होगा , तभी वैभव ने देखा वैदिक अपने हाथ में पंखा लिये आ रहा है ,वैभव बोला ये मेरा दोस्त सबको ख़ुशी देकर ख़ुश होता है .... ये देखा अपनी दादी के लिए पंखा लाया है ...
और अपनी बहन के लिये रंगों वाली पेन्सल और कापी ली वैदिक ने  , और अपनी दादी के लिये हाथ से चलाने वाला पंखा ......
संध्या का समय हो चला था सब अपने घर की और लौट रहे थे ... रास्ते में चलते-चलते वैभव , वैदिक से बोला , तुमने अपने खेलने के लिये तो कुछ लिया नहीं , वैदिक बोला , खेलने के लिये जब मैं अपनी बहन को ये रंगो वाली पेन्सल और कॉपी दूँगा तो वो इससे सुन्दर -सुन्दर चित्र बनायेगी , मैं वो देखकर ख़ुश हो जाऊँगा ,और मेरी दादी जब बाहर बरामदे में बैठती है ,तब उन्हें गर्मी लगती है , और उन्हें मच्छर भी काटते हैं ,अब पंखे से गर्मी और मच्छर दोनो भाग जायेंगे ,और राम जी हमारे सारे दुःख दूर कर देंगे .....

















“  ये धरती अपनी है , नीला आसमान भी अपना है “
  खेलने को खुला मैदान है ,आओ मित्रों खेल खेलें
  हम बन्द कमरों में नहीं रहते , हमारे खेल बड़े-बड़े हैं
  हमें रहने को खुला मैदान चाहिए , सपने देखने को
  चाँद , सितारों का जहाँ चाहिये ।

😊भीड़ 🌟

       
        😊भीड़ 🌟

     “भीड़ बहुत भीड़ है ,
       मैं जानता हूँ ,मैं भी
       भीड़ का ही हिस्सा हूँ
       पर मैं चाहता हूँ ,
       मैं भीड़ ,में रहूँ
       पर भीड़ मुझमें ना रहे
      भीड़ में “मैं” अपनी अलग
      पहचान बनाना चाहता हूँ ।
     भीड़ में अजनबी , अकेला बनकर
     रहना मुझे मंज़ूर नहीं ......
     मैं भीड़ संग भीड़ को अपनी पहचान बनाना चाहता हूँ
     मैं भीड़ में एक सितारा बनकर चमकना चाहता हूँ “
     
     
     

🙏🌺श्री गणेश प्रियं भक्त हृदयेश विशेष 🌺🌺🎉🎉


   🙏🙏💐💐“गणेश चतुर्थी”का  पुण्य दिन था , सभी एक दूसरे को शुभकामनायें दे रहे थे ।
    शहर में जगह - जगह पंडाल सज गये थे , “विघ्न हरण ,मंगल करन , गजानन , लम्बोदर ,
     विनायक , गणेश महाराज की मूर्ति स्थापना की सुन्दर बेला , गणेश जी के भजनों से सारा परिवेश भक्तिमय हो रहा      था , सबके दिलों  में हर्षोल्लास की उमंग नज़र आ रही थी ,
गणेश जी की सुन्दर से सुन्दर विशालतम सुसज्जित प्रतिमाओं की स्थापना के वो पल ,
दिन , मन में बस सिद्धि विनायक गणेश जी का ही ध्यान , गणेश जी का श्रिंगार , सेवा , मोदक,प्रसाद , फल, फूल आदि

😊🙏🎉इस बार मेरा बेटा भी जिद्द पर अड़ गया कि वो भी इस “गणेश चथुर्ती”पर  गणेश जी को अपने घर लायेगा । मैं भी हर बार यही कह कर उसे समझाती बेटा “भगवान गणेश जी “तो हमेशा से हमारे साथ है  ।उनकी प्रतिमा भी है हमारे मंदिर में हमारे गणेश जी हमेशा हमारे घर पर ही रहते हैं ।
कहने लगा माँ तुम हर बार कहती हो अगले साल लायेंगे , तुम थोड़े और बड़े हो जाओ , माँ अब इस बार तो गणेश जी घर में आकर रहेंगे , मैं उनकी सेवा करूँगा , मोदक खिलाऊँगा , भोग लगाउँगा भोजन कराऊँगा , भजन गाऊँगा भी , आप देखना माँ मैं बहुत बड़ा भक्त हूँ ...अपने गणेशा का ....🌹🌹🌹🌹🌺🌺
🌸🌸 “गणेश चतुर्थी “ का शुभ अवसर , मेरा बेटा , जिसका नाम विनायक , अपने दोस्तों ,और परिवार संग बड़ी धूम - धाम से लेकर आया सिद्धि विनायक को घर ...गणेश जी प्रतिमा को विधिवत स्थापित किया गया , आरती ,  धूप ,दीप, 🌸🌺💐🌹💐फल ,फूल हर सामग्री जो पूजा विधि विधान के लिये चाहिये होती विनायक पूरी करता , संध्या आरती में तो ख़ूब धूम होती , सभी मित्र , पड़ोसी , आदि मीठे सुरीले भजनों से श्री गणेश जी को ख़ुश करते ।

       🎉⭐️🌟🌟🌸 उत्सव का माहौल था उन दिनों ... जिस तरह हमारे घर कोई हमारा सबसे प्यारा अथिति आता  है और हम ख़ुशी -ख़ुशी उसकी सेवा में व्यस्त हो जाते हैं , मेहमान की पसन्द के व्यंजन बनाना , मेहमान को कोई तकलीफ़ ना होने देना , हँसना , खेलना गीत , संगीत जिससे किसी का मनोरंजन हो वही करना बहुत ही हर्षोल्लास पूर्ण माहौल होता है ...

     💐💐 पर कहते हैं ना .... अथिति को एक दिन जाना होता है , तभी तो वो अथिति  होते हैं  ... दस दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं चला , अब “गणेश विसर्जन “ का दिन आ गया ... ऐसा लग रहा था मानो घर से कोई हम से हमारा सब कुछ छिन रहा हो ,दिल बहुत उदास हो रहा था ,आख़िर गणेश जी विसर्जन की तैयारी पूरी हुई , नदी किनारे गणेश जी की मूर्ति को लाया गया , मेरा बेटा विनायक तो दहाड़े मार के रोने लगा .. कहने लगा माँ मैं नहीं विसर्जित कर पाऊँगा अपने गणेश जी को .. अगर गणेश जी को विसर्जित करोगे तो ... मैं भी विसर्जित होने जाऊँगा उनके साथ ,किसने बनायीं ये रीत
आज से एक नयी रीत शुरू करते है मैं भी विसर्जित हो जाता हूँ गणेश जी के साथ अगले साल मेरी भी मूर्ति बना कर मेरी भी पूजा करना ...
      गणेश विसर्जन का दिन था नदी किनारे बहुत से ऐसे लोग थे जो गणेश विसर्जन  कर रहे थे बड़ा ही , भक्तिमय ,भाव विभोर कर देने वाला था  वो दृश्य .... विनायक की आँखों से अश्रु नहीं रूक रहे थे , विनायक ने गणेश जी का विसर्जन करने के लिये अपने क़दम आगे बड़ाये और स्वयं को भी नदी के जल में बहने के लिये ढीला छोड़ दिया , तभी साथ खड़े लोगों को समझ आया की अरे ये तो विनायक भी जल संग आगे की ओर बह रहा है , सब चिल्लाये अरे इस लड़के को पकड़ो , तब दो लोंगो ने जल्दी से आगे बड़कर विनायक को जल से बाहर निकला , विनायक कह रहा था  क्यों निकाला मुझे जल से बह जाने दिया होता गणेशा संग , अगले साल  मेरी प्रतिमा बनाते पूजा करते फिर जल में बहा देते , और फिर सालों -साल यही परम्परा चलाते रहते , नदियों का जल प्रदूषित होता रहता। तो क्या , बस अंधी श्रद्धा है ...सब लोग विनायक के दर्द को समझ रहे थे  पर क्या करते चुप थे ।
     वहीं नदी किनारे एक वृद्ध बैठा हुआ सब दृश्य देख रहा था , उससे रहा नहीं गया , और विनायक और उसके मित्रों आदि के पास आकर बोला यूँ तो यहाँ हर दिन परम्पराओं के नाम पर बहुत कुछ होता है , और मैं चुप-चाप देखता रहता हूँ , कौन किस की सुनता है यहाँ ... पर इस बच्चे की भावना देख कर मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूँ , तुम जानते हो इस पीछे का कारण ...

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...