मित्र मेरी फिक्र

 मेरे आने की आहट भी वो पहचानता है 

वो मेरी फिक्र करता है 

वो अक्सर दिन रात मेरा ही जिक्र करता है

मुझे बेझिझक डांटता है 

मुझ पर ही हुक्म चलाता है 

मेरी कमियां गिन गिन कर मुझे बताता है 

कभी कभी वो मुझे मेरा हम मीत मेरा दुश्मन सा लगता है मगर वो मुझे अपने आप से भी अजीज है

वो मेरा मित्र मेरे जीवन का इत्र जिसका मैं अक्सर और वो मेरा अक्सर करता है जिक्र 

मेरा मित्र मेरे जीवन का है इत्र ।

उसे मेरी और मुझे उसकी हरपल रहती है फिक्र ।

वक़्त बदलता है

वक़्त के बदलते रूप 
वक़्त कभी एक सामान नहीं रहता 
वक़्त का पहिया निरंतर चलता ही रहता है
वक़्त बदलना प्रकृति का नियम है 
वक़्त बदलना आवयश्कता का रूप है
वक़्त एहसास कराता है 

धूप छांव दिन-रात साक्षात उदहारण है, 
बदलते वक़्त के ....
युग बदलते हैं ,सभ्यता संस्कृति सोच 
एवम् कार्य करने के ढंग बदलते है 
वक़्त एवम् काल नए आविष्कारों के भी जननी है
आवयश्क है वक़्त का बदलना भी 
बदलाव एवम् परिवर्तन हमें एहसास कराता है
की आज सुख है तो कल कष्ट भी हो सकता है 
कहीं रास्ते समतल है तो कहीं पथरीले भी हो सकते हैं 
कहीं ऊंचे पहाड़ तो कहीं गहरी खाई 
भी हो सकती है ,सुख-दुःख हार-जीत 
मनुष्य को जीवन सहनशीलता एवम्
 धैर्य  के गुण सिखाता है
बचपन,जवानी,बुढ़ापा,मानव जीवन के रथ का 
पहिया जो नए रूप दिखाता है 
स्वस्थ जीवन मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है
किसी काल में कोई महामारी 
मनुष्य प्राणों पर करती है प्रहार  
संयम,धैर्य,एवम् सावधानी ही होता है जिसका उपचार
बदलते संसार का बदलता व्यवहार

यूं तो कभी नहीं रुकता संसार 
प्राकृतिक संपदाओं की वसीयत
मनुष्य जीवन को दिव्य भेंट 
सृष्टि की संरचना 
प्राणियों की उत्पति
धरती पर जीवन 
परमात्मा द्वारा सुव्यवस्था
सुंदरतम उपहार
 जीविका के साधनों की भरमार
रहस्यमयी प्रकृति अनमोल 
प्राकृतिक संपदाओं केअद्वितीय स्रोत
सूर्य का दिव्य तेज जीवन जीने का वेग 
परमात्मा की अद्भुत भेंट मनुष्य मन समाहित 
प्रकृति जिससे धरती पर जीवन 
यह कहना अतश्योक्ती होगी कि
प्राणियों से प्रकृति है ,प्रकृति प्राणियों की 
परमात्मा प्रदत अनमोल सम्पदा है
सम्पदा का संरक्षण सदुपयोग जीवन को  
दीर्घ आयु स्वस्थ एवम् समृद्ध रखता है 
वहीं दुरुपयोग स्वयं के ही पैरो पर कुल्हाड़ी के सामान है
हे मनुष्य सम्भल प्रकृति धरती की सम्पदा है 
वसीयत है जो परमात्मा से धरती पर प्राणियों को मिली है
वसीयत की कर संभाल तुम्हारे बुरे समय की ढाल
प्रकृति का के संरक्षण जीवन का 







 




*लेखनी*


 **** स्वर्ग  से सुंदर समाज की कल्पना
     यही एक लेखक की इबादत होती है
     हर तरफ खूबसूरत देखने की एक
     सच्चे लेखक की आदत होती है ***
     अन्याय, अहिंसा, भेदभाव,
     देख दुनियां का वयभिचार ,अत्याचार
     एक लेखक की आत्मा जब रोती है
     तब एक लेखक की लेखनी
     तलवार बनकर चलती है
     और समाज में पनप रही वैमनस्य की
     भावना का अंत करने में अपना
     महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करती है
     विचारों की पवित्र गंगा की धारा
     सर्व जन हिताय हेतु ,
     सुसंस्कृत,सुशिक्षित, समाज की स्थापना
     का आदर्श लिए , शब्दों के तीखे, बाणों
     के जब तीर चलाती तब ,वो इतिहास रचती है ,
     युगों-युगों तक आने वाले समाज का मार्गदर्शन
     करती है ।
     लिखने को तो लेखक की लेखनी लिखती है
     एक अद्वितीय शक्ति उसको प्रेरित करती है
     तभी तो ऐतिहासिक,रहस्यमयी, सच्ची घटनाओं
    की तस्वीरें कविताओं ,कहानियों आदि के रूप में
    युगों- युगों तक जन मानस के लिए प्रेरणास्रोत        बन जन मानस के हृदयपटल पर राज करती हैं ।

   
      aksshaygaurav@gmail.com स्वर्ग से सुंदर समाज की कल्पना यही एक लेखक की इबादत होती है हर तरफ खूबसूरत देखने की एक सच्चे लेखक की आदत होती है *** अन्याय, अहिंसा, भेदभाव, देख दुनियां का वयभिचार ,अत्याचार एक लेखक की आत्मा जब रोती है तब एक लेखक की लेखनी तलवार बनकर चलती है और समाज में पनप रही वैमनस्य की भावना का अंत करने में अपना महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करती है विचारों की पवित्र गंगा की धारा सर्व जन हिताय हेतु , सुसंस्कृत,सुशिक्षित, समाज की स्थापना का आदर्श लिए , शब्दों के तीखे, बाणों के जब तीर चलाती तब ,वो इतिहास रचती है , युगों-युगों तक आने वाले समाज का मार्गदर्शन करती है । लिखने को तो लेखक की लेखनी लिखती है एक अद्वितीय शक्ति उसको प्रेरित करती है तभी तो ऐतिहासिक,रहस्यमयी, सच्ची घटनाओं की तस्वीरें कविताओं ,कहानियों आदि के रूप में युगों- युगों तक जन मानस के लिए प्रेरणास्रोत बन जन मानस के हृदयपटल पर राज करती हैं ।

श्रम


*श्रम ही धर्म*
श्रम की अराधना
से मिटती है मुझ 
श्रमिक के जीवन 
की हर यातना 
होकर मजबूर
बनकर मजदूर   
अपनों से दूर 
जीविका की खातिर
रुख करता हूं शहरों की ओर
गांव की शांति से दूर शहरों का 
भयावह शोर, ढालता हूं स्वयं को
तपाता हूं तन को,बहलाता हूं मन को
शहरों की विशाल,भव्य इमारतों में
मुझ श्रमिक का रक्त पसीना भी चीना
जाता शहरों की प्रग्रती और समृद्धि की 
नींव मुझ जैसे अनगिनत श्रमिकों की देन है
कभी -कभी शहर की भीड़ में खो जाता हूं 
जब किसी महामारी के काल में, बैचैन, व्याकुल
पैदल ही लौट चलता हूं ,मीलों मील अपनों 
के पास अपने गांव अपने घर अपनों के बीच 
अपनत्व की चाह में ।
स्वरचित :-
ऋतु असूजा ऋषिकेश ।


धरा के भगवान


कैसे कह दूं उन्हें मात्र इंसान
कहते हैं जिन्हें धरा के भगवान
या कहें फ़रिश्ते ए आसमान
जीव विज्ञान का अद्भुत ज्ञान
कठिन साधना का परिणाम
जीव विज्ञान का अद्भुत ज्ञान
जीवन एक तपस्या जिनकी
दूर करने को प्रतिबद्ध शारीरिक एवं
मानसिक समस्या असाध्य रोंगों से घिरा
इंसान ढूंढ़ता है एक चिकत्सक के रूप में भगवान
 जब खतरे में होती है मनुष्य जीवन के प्राण
जीवन और मृत्यु की जंग में बनकर रक्षा प्रेहरी
करते हैं समस्त प्रयास और देते हैं जीवन दान
हमें गर्व है  आप सब चिकित्सकों पर, महान योद्धा ओं पर महामारी के संकटकाल में जब देश के सभी लोग अपने -अपने घरों में बैठे होते हैं, आप सभी स्वास्थ्य योद्धा, डटे हुए रहते हैं स्वास्थ्य लाभ देते हैं अपनी जान जोखिम में डालकर ।
 नमन है,नतमस्तक हैं, महामारी में बनकर योद्धा
सरहद पर तैनात सिपाही करता है
दुश्मनों से देश की रक्षा
वहीं धरती पर दूसरे योद्धा जो
जो सदैव तैयार रहते हैं करने को दूर
शारीरिक समस्या दिलाते हैं असहनिय दर्द से
मुक्ति ,पास इनके होती है निष्ठा और कठीन
साधना की शक्ति
धरती पर परमात्मा की सौगात
दिव्य जीवन का आशीर्वाद,स्वस्थ जीवन
जीने का देते हैं महादान ।

कैसे कह दूं उन्हें मात्र इंसान
कहते हैं जिन्हें धरा के भगवान
या कहें फ़रिश्ते ए आसमान
जीव विज्ञान का अद्भुत ज्ञान
कठिन साधना का परिणाम
जीवन एक तपस्या जिनकी
दूर करने को प्रतिबद्ध शारीरिक एवं
मानसिक समस्या असाध्य रोंगों से घिरा
इंसान ढूंढ़ता है एक चिकत्सक के रूप में भगवान
 जब खतरे में होती है मनुष्य जीवन के प्राण
जीवन और मृत्यु की जंग में बनकर रक्षा प्रेहरी
करते हैं समस्त प्रयास और देते हैं जीवन दान
सच में यह तो धरती पर दूसरे भगवान
चिकित्सक ,डाक्टर फ़रिश्ते सच में डाक्टरों
से भी जुड़े होटें भावुक से रिश्ते।
मातृत्व सी ममता,स्नेह दुलार और फिक्र भरी फटकार
डॉक्टर आप सभी है शक्ति का अवतार
जीवन को नई राह दिखाते जीवन जीने का आधार ।
सेवा धर्म को जीवन का
उद्देश्य बनाकर चलना पीड़ितों
 उपचार एवम् स्नेह का
 भाव का मरहम
कैसे कह दूं उन्हें मात्र इंसान
कहते हैं जिन्हें धरा के भगवान
या कहें फ़रिश्ते ए आसमान
जीव विज्ञान का अद्भुत ज्ञान
कठिन साधना का परिणाम
नमन है,नतमस्तक हैं, महामारी में बनकर योद्धा
सरहद पर तैनात सिपाही करता है
जैसे करता है देश की रक्षा
वहीं धरती पर दूसरे योद्धा जो
जो सदैव तैयार रहते हैं करने को दूर
शारीरिक समस्या दिलाते हैं असहनिय दर्द से
मुक्ति ,पास इनके होती है निष्ठा और कठीन
साधना की शक्ति
धरती पर परमात्मा की सौगात
दिव्य जीवन का आशीर्वाद,स्वस्थ जीवन
जीने का देते हैं महादान ।
* धरती पर परमात्मा की सौगात
दिव्य जीवन का आशीर्वाद
कैसे कह दूं उन्हें मात्र इंसान
कहते हैं जिन्हें धरा के भगवान या    कहें फ़रिश्ते ए आसमान
जीव विज्ञान का अद्भुत ज्ञान
कठिन साधना का परिणाम
जीवन एक तपस्या जिनकी
 चिकत्सक के रूप में भगवान                                                    योद्धा स्वस्थ जीवन देने का  समझौता निष्ठा और कठीन साधना की शक्ति सेवा धर्म सर्वोपरि धरती पर परमात्मा की सौगात दिव्य जीवन का आशीर्वाद,स्वस्थ जीवन जीने का देते हैं महादान धरा पर मानव के भगवान, जीवन जिनका सार्थक एवम् महान धन्य सदा पाते रहें परम पिता से वरदान   ।
 जीवन जीने की आती है जिन्हें
भरपूर कला, सेवा धर्म सर्वोपरि
पीड़ितों के दर्द का उपचार
हर्षित मुख परस्पर प्रेम पूर्ण जिनका
व्यवहार, स्वस्थ जीवन जीने का देते जो उपहार
परमात्मा का आपको मिलता रहे
दिव्य आशीर्वाद ,धरती पर
परमात्मा का अवतार ,चिकत्सक पथ
जीवन सजग ,सेवा धर्म , पीड़ितों की
मरहम पर स्नेह और विश्वास का साथ
नित नूतन ऊंचाईयों का मिलता रहे प्रसाद
परमात्मा
आयुर्वेद की ज्ञाता
जड़ी-बूटियों से जीवन का
उपचार जीवन में संतुलित व्यवहार
पीड़ितों के दर्द का उपचार
आपके जीवन का आशीर्वाद
हम सब का विश्वास आपको देकर
सम्मान और हम सब का आपको
दिल से पर
सेवा धर्म को समर्पित जिन्दगी
दीर्घ आयु का देती वरदान





अभिशाप का वरदान

 वरदान बनकर फलित
 होता है नियति से मिला
 जीवन का अभिशाप
 समाहित होता है श्राप के
 मध्य एक संताप स्वयं
 के कर्मों का हिसाब।
बुद्धिजीवी टूट कर भी 
नहीं बिखरते,वरन संवरते
अभिशाप का प्रसाद
कर स्वयं के
जीवन में स्वीकार
बेहद का तिरस्कार
जीवन की जंग में
अकथनीय बहिष्कार
विषम परिस्थितियों
को मान जीवन का वरदान
तत्पर रहता है जो
कर्मठ कर्मप्रधान
जूझता है जो विपत्तियों
को परीक्षा मान
अभिशाप भी बन निखर
जाता है प्राप्त होता है सम्मान।
अभिशाप के दर्द का मर्म
 धैर्यवान समय बलवान
वक़्त बदलता है सत्य
शाश्वत बलवान ।
 






आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...