💐फ़लसफ़ा💐

   **💐💐खिले-खिले पुष्पों से ही घर,आँगन महकते है,
   प्रकृति प्रदत्त,पुष्प ,भी किसी वरदान से कम नहीं
   अपने छोटे से जीवन में पूरे शबाब से खिलते हैं💐 पुष्प💐
   और किसी न किसी रूप में काम आ ही जाते हैं
    जीवन हो तो पुष्पों के जैसा, छोटे से सफ़र में बेहद की
    हद तक उपयोगी बन जाते हैं।💐💐

   जीवन का भी यही फ़लसफ़ा है,
  💐 बुझे हुए चिरागों को किनारे कर ,
   जलते हुए चिरागों से ही घर रोशन किये जाते हैं ।
   क्योंकि जो जलता है, वही जगमगाता है ।

 ☺☺  कभी -कभी  यूँ ही मुस्करा लिया करो
   गीत गुनगुना लिया करो ।
  जीवन का संगीत हमेशा
  मधुर हो आवयशक नहीं ।
  हालात कैसे भी हों तान छेड़ दिया करो
  सुर सजा लिया करो,गीत बना लिया करो
  जीवन एक संगीत भी है
  हर हाल में गुनगुना लिया करो ।

 चाँद में दाग है ,सबको पता है
 फिर भी चाँद ही सबका ख्वाब है
 क्योंकि चाँद में चाँदनी बेहिसाब है ।☺☺

* खिलने दो मासूम कलियों को *


*शाम के आठ बजते ही घर में सब शान्त हो जाते थे।
एक दिन न जाने भाई-बहन में किस बात पर बहस छिड़ गयी थी ,बच्चों की माँ चिल्ला रही थी दोनों इतने बड़े हो गये हैं फिर भी छोटी-छोटी बातों पर लड़ते रहते हैं ।

माँ अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही थी कि,बच्चों की बहस खत्म हो ,माँ बच्चों के पास बैठी बोली तुम्हारे पापा, और दादा जी आने वाले हैं ,और तुम्हें पता है, की उन्हें बिल्कुल भी शोर पसन्द नहीं है ,वैसे ही दोनों दिन भर के थके हुए होते हैं ।
बेटी,सान्या दस साल की और बेटा सौरभ पन्द्रह साल का ,लेकिन भाई, बहन की लड़ाई में कौन छोटा कौन बड़ा दोनों अपने को बड़ा समझते हैं ,चलो किसी तरह शांति हुयी ।
माँ बोली आज साढ़े आठ बज गये हैं ,आज तुम्हारे दादा जी और पापा को देर हो गयी है ,अब तुम दोनों शांति से बैठे रहना ,वरना सारा गुस्सा तुम दोनों पर ही निकलेगा ।

इतने मे डोर बेल बजी ,दादा जी ,और पापाजी हाथ-मुँह धो कहना खाने बैठ गये ,माँ  एक सेकंड भी देर नहीं करती थी दोनों को खाना परोसने में,क्योंकि माँ वो दिन कभी नहीं भूलती थी ,जब एक दिन खाना देर से परोसने पर माँ को दादा जी से बहुत फटकार पड़ी थी ,और दादा जी ने उस दिन खाना भी नहीं खाया था ,और माँ को बहुत बड़ा लेक्चर दिया था ,कि बहू समय की क़ीमत समझो ,अपने बच्चों को कल क्या सिखाओगी ,वगैरा-वगैरा .....

रात को भोजन हो गया था,दादा जी, और पापा जी रोज की तरह आज भी दिन-भर क्या कमाया ,किसका कितना लेन-देन है बात-चीत करने लगे । इधर बच्चे अपना-अपना स्कूल का बैग लेकर बैठ गये और पढ़ने लगे ,पर बच्चे तो बच्चे ठहरे ,थोड़ा पढ़ना ,ज्यादा मस्ती ,ना जाने किस बात पर दोनों भाई -बहन हँसने लगे ,पापा ने आवाज लगायी ,पढ़ाई में मन लगाओ ,बच्चे चुप होकर पढ़ने लगे ।
आधा घंटा बीत गया था ,भाई बोला मेरा काम हो गया ,बहन बोली मेरा भी होने वाला है ,वो जल्दी -जल्दी लिखने लगी ।
भाई खाली बैठा था,खाली दिमाग शैतान का दिमाग ....

दोनों भाई बहन के स्कूल का काम पूरा हुआ ही था कि, भाई को जाने क्या सूझी ,बहन को पेंसिल चुभा दी,फिर तो दोनों भाई-बहन में झगड़ा शुरू हो गया, माँ ने बहुत समझाया की वो चुप हो जायें लेकिन दोनों ही बराबर बोले जा रहे थे,इसने ये किया ,उसने वो किया जब बहुत देर तक भाई-बहन की लड़ाई खत्म ना हुई तो उधर से पापा ने आवाज लगायी ,पापा की आवाज सुनते ही दोनों चुप हो गये।थोड़ी देर शान्ति से बैठने के बाद फिर जाने क्या बात हुयी ,दोनों भाई बहन हँसने लगे ,और हंसी भी ऐसी की रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी ,पापा-मम्मी दोनों ने उन्हें शान्ति से रहने को कहा दोनों भाई-बहन थोड़ा चुप होते फिर शुरू हो जाते ,ये सिलसिला बढ़ता ही जा रहा था । दिन-भर के काम के बाद दादा जीऔर पापा जी पहले ही इतना थक जाते थे कि घर पर आकर उनका सिर्फ चुप-चाप काम करके आराम करने का मन करता ।
बच्चों की हँसी और शरारतों की आवाजें मानों पापा को परेशान कर रही थीं, पापा जी उठे और बच्चों के पास जाकर जोर-जोर से डाँटने लगे ,बच्चे डर गये ,सहम गये ,बेटी के तो आंखों से आँसू ही बहने लगे ,भाई-बहन आपस मे चाहे जितना लड़ लें ,पर दोनों में से कोई भी एक दूसरे के आँसू नहीं देख सकता ।
भाई  बहन के आँसू देखकर बोला पापा ,आप को तो हँसना आता नहीं ,औरों को भी हँसने नहीं देते बिना बात पर छुटकी को रुला दिया ,इतने मे माँ ने बेटे को जोर की डाँट लगायी ,पापा से ऐसे बात करते हैं ,चलो माफ़ी माँगो अपने पिताजी से ......
अगला दिन सुबह के आठ बजे थे,बच्चे स्कूल के लिये तैयार होकर ,स्कूल चले गये ,आज बच्चों ने पापा-मम्मी से कोई फ़रमाइश नहीं की।
पापा जी बच्चों की माँ से बोलने लगे ,देखा जब तक बच्चों को डांटे ना तब तक अक्ल नहीं आती आज देखा कितने अच्छे लग रहे थे ।
आज स्कूल से आने के बाद भी बच्चे ज्यादा बोले नहीं थे चुप ही रहे माँ खुश थी कि बच्चे सुधर गये ।
रोज की तरह रात के आठ बजे दादा जी और पापा घर आ गये थे ,आज बड़ी शांति से दादा जी और पापा ने खाना खा कर काम किया ,बच्चे भी टाइम से सो गये थे।
अब तो हर रोज यही सिलसिला ,एक और तो दादाजी और पापा खुश थे कि उनके बच्चे शांत स्वभाव के हो गये हैं, परन्तु अब दादाजी ,और पापा को एक कमी अखरने लगी ,लगा जैसे घर में खिलौने तो हैं ,पर इनसे खेलने वाला कोई नहीं है ,नन्हें पंछी तो हैं ,पर वो उड़ नहीं सकते चहक नहीं सकते ,पापा को अपनी गलती महसूस हुयी ,उन्हें लगा यही तो बच्चों के खेलने -कूदने और शरारते करने के दिन है ,बड़े होकर तो यह हमारे जैसे हो जायेंगे ,जी लेने दें इन्हें इनकी जिन्दगी।
आज तो मानो चमत्कार हुआ पापा जी अपने बाच्चों के पास जाकर बैठ गये, ये क्या आज तो पापाजी बच्चों जैसी हरकतें करने लगे, पापा जी ने अपने बच्चों के साथ बहुत मस्ती मारी ,चुटकले सुना सुना कर बच्चे हँसी के मारे लोट-पोट हो रहे थे ,
पापाजी भी हँस रहे थे ,बैटे ने पूरे परिवार के साथ पापा जी ,माँ दादाजी सबकी हँसती हुई एक सेल्फी ली ।
फिर पापा को वो फोटो दिखाते हुए बोला पापा जी आप हंसते हुए बहुत अच्छे लगते हैं, और आपको तो हंसना आता है फिर आप हँसने में कंजूसी क्यों दिखाते हो , पापा हमारे स्कूल की एक किताब में भी एक पाठ है ,जिसमे हँसने के फायदे लिखें है ।
"पापा हँसने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, और नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है ।"
"हँसना स्वास्थ्य के लिये बहुत लाभदायक है ।"



"पापा जी बोले हाँ बेटा मैं जानता हूँ पर कभी किसी की मजबूरी पर किसी के दुख पर मत हँसना ....."

"बच्चे बोले पापा हम आपके बच्चे हैं ,आपसे हमे ऐसे संस्कार मिलें हैं कि हम कभी किसी का मज़ाक नहीं उड़ाएंगे और ना ही बुरा करेंगे ।।"


👍आत्मविश्वास👍

*आत्मविश्वास *

     " आत्म विश्वास यानि स्वयं का स्वयं पर विश्वास
       अद्वित्य,अदृश्य, आत्मा की आवाज़ है ,आत्मविश्वास"

       आत्मविश्वास मनुष्य में समाहित अमूल्य रत्न मणि है।
       आत्मविश्वास एक ऐसी पूंजी है
       जो मनुष्य की सबसे बड़ी धरोहर है।

      आत्म विश्वास ही चींटी को पहाड़ चढ़ने को प्रेरित करता          है ,वरना कहाँ चींटी कहाँ पहाड़।
      आत्मविश्वास विहीन मनुष्य मृतक के सामान है ।

       तन की तंदरुस्ती माना की पौष्टिक भोजन से आती है 
       परन्तु मनुष्य के आत्मबल को बढ़ाता है 
       उसका स्वयं का आत्मविश्वास ।

       आत्म विश्वास ही तो है जिसके बल पर बड़ी-बड़ी जंगे             जीती जाती हैं ,इतिहास रचे जाते हैं ।
     
       आत्मविश्वास, यानि, स्वयं की आत्मा पर विश्वास
       स्वयं का स्वयम पर विश्वास जरूरी है ,वरना हाथों
       की लकीरें भी अधूरी हैं।
       कहते हैं हाथों की लकीरों में तकदीरें लिखी होती है 
       बशर्ते तकदीरें भी कर्मों पर टिकी होती हैं ।

       आत्म विश्वास यानि स्वयं में समाहित ऊर्जा को                    पहचानना और उसे उजागार करना ।
       तन की दुर्बलता तो दूर हो सकती है 
       परन्तु मन की दुर्बलता मनुष्य को जीते जी मार 
       देती है ।
       इसलिए कभी भी आत्म विश्वास ना खोना 
       मेरे साथियों ,क्योंकि आत्मविश्वास ही तुम्हारी 
       वास्तविक पूँजी है , जो हर क्षण तुम्हें प्रेरित करती है।
        निराशा से आशा की और ले जाती है । 
             

**मेरी नियति**

  **  ना जाने मेरी नियति
        मुझसे क्या -क्या करवाना
            चाहती है ।

       मैं संतुष्ट होती हूँ
       तो होने नहीं देती
       बेकरारी पैदा करती है ,
       जाने मुझसे कौन सा अद्भुत
       काम करवाना चाहती है ।

       मैं जानती हूँ ,मैं इस लायक नहीं हूँ
       फिर भी मेरी आत्मा की बेकरारी ,
       मुझे चैन से बैठने ही नहीं देती।
       समुन्दर में लहरों की तरह छलांगे
                  लगती रहती है।

      मुझमें इतनी औक़ात कहाँ की मैं
       कुछ अद्वितीय कर पाऊँ ,
          इतिहास रच पाऊँ
       पर मेरी नियति मुझसे कुछ
       तो बेहतर कराना चाहती है।

       तभी तो शान्त समुन्दर में
       विचारों का आना -जाना लगा रहता है ।
       और मेरे विचार स्वार्थ से ऊपर उठकर
        सर्वजनहिताय के लिये कुछ करने को
            सदा आतुर रहते हैं ।

        बस मेरी तो इतनी सी प्रार्थना है परमात्मा से
          की वो निरन्तर मेरा सहयोगी रहे ।
                 मेरा मार्गदर्शन करता रहे ।
       विचारों के तूफानों को सही दिशा देकर
      शब्दों के माध्यम से कागज़ पर उकेरते रहती हूँ।
               
   


"अनमोल नगीने "


        *हम सदियों से ऐसा ही जीवन जीते आये हैं ,हमें आदत है ,हमारा जीवन यूँ ही कट जाता है ।

 ये सवाल सुनने को मिला जब मैं बस्ती में गयी, जब हमारे घर काम करने वाली बाई कई दिनों तक काम  पर नहीं आयी थी ।
किसी दूसरे घर में काम करने वाली ने बताया कि वो बहुत बीमार है उसे बुखार आ रहे हैं ,और उसे पीलिया की शिकायत भी है ।

जब मैं अपनी बाई की झोपड़ी में पहुँची ,तो वो शरीर मे जान न होने पर भी यकायक उठ के बैठ गयी ।
वह बहुत कमजोर हो चुकी थी ,उसे देख मेरा हृदय द्रवित हो उठा ,मैंने उसे लेट जाने को कहा उसका शरीर बुखार से तप रहा था ,इतने मे कोई कुर्सी ले आया मेरे बैठने के लिये ।
मैंने उससे पूछा तुम्हारे घर में और कौन-कौन है ,बोली मेरे दो बच्चे हैं ,एक लड़का और एक लड़की।

लड़का पन्द्रह साल का है काम पर जाता है , उसे पढ़ने का भी बहुत शौंक है अभी दसवीं का पेपर दिया है ,पर क्या करेगा पढ़ कर ,हम ज्यादा खर्चा तो कर नहीं सकते ,  लड़की भी काम पर जाती है, मैंने पूछा लड़की कितने साल की है ,बोली दस साल की ।
मैं स्तब्ध थी ,दस साल की लड़की और काम ,कहने लगी हम लोगों के यहाँ ऐसा ही होता है, घर में बैठकर क्या करेंगें बच्चे ,बेकार में इधर-उधर भटकेंगे ,इससे अच्छा कुछ काम करेंगें ,दो पैसे कमाएंगे तो दो पैसे जोड़ पाएंगे, दो-चार साल में बच्चों की  शादी  भी करनी होगी ।

मैंने कहा ,और पढ़ाई ..... बोली पढ़ाई करके क्या करेंगें ,कौन सा इन्हें कोई सरकारी नौकरी मिलने वाली है ।
मेरे घर काम करने वाली बाई बोली, और दीदी हम सदियों से ऐसा ही जीवन जीते आये हैं ,हमारे नसीब में यही सब है ।
मैं उसकी बातें सुनकर सोचने लगी शायद यह अपनी जगह सही ही कह रही है, जितना इन्सान आगे बढ़ता है उतने ख़र्चे भी बढ़ते हैं ,शायद इतना आसान नहीं होता जितना बड़ा घर होगा उतना ही जरूरत्त का सामान भी बढ़ेगा ,शायद कहना आसान होता है ,पर जिस पर बीतती है उसे ही पता होता है ।
 मैंने अपनी काम वाली बाई को कुछ रुपए दिये ,और उसे अपना ख्याल रखने को कहा ।

इतने में उसका पन्द्रह साल का बेटा आया ,वो मेरे लिये चाय बना कर लाया था साथ में मिठाई भी लाया था ,मैंने कहा नहीं-नहीं मैं चाय नहीं पीती ,इतने में वो बोला आँटी मिठाई तो आपको खानी पढ़ेगी, पता है क्यों ?
इससे पहले मैं बोलती उसकी माँ बोली ऐसा कौन सा किला फतह किया है तूने जो मिठाई खिला रहा है,बेटा बोला माँ पहले मिठाई खाओ फिर बताऊंगा, हम दोनों ने जरा-जरा सी मिठाई खायी ,फिर बोला माँ ,आँटी जी , मैं दसवीं के एग्जाम में पास हो गया हूँ ,अब मैं और पडूंगा,और कम्प्यूटर कोर्स करूँगा ,माँ अब तुम्हें काम करने की जरूरत्त नहीं पढ़ेगी ,माँ अब हम अच्छे घर मे रहेंगे
अब हमें गरीबी का जीवन नही जीना पढ़ेगा ,अब हमारे दिन भी बदलेंगें , माँ की आँखों से अश्रु धारा बह रही थी ,लड़के ने मेरे पैर छूते हुए कहा आँटी जी आपका आना हमारे लिये बहुत शुभ हो गया ,आप आशीर्वाद दीजिये की मेरी बहन भी पढाई करे और अपने जीवन मे सफ़ल हो ।

सच मे आज दिल बहुत खुश था , की मेरी काम वाली बाई के बच्चों ने पढ़ाई के महत्व को समझ कर जीवन मे आगे बढ़ने का निर्णय लिया है ,मैंने भी उसके बेटे को आशीर्वाद देते हुए कहा ,हाँ बेटा ,जीवन मे आगे बढ़ो खूब पड़ो लिखो आगे पड़ो, और अपनी माँ पिताजी की ऐसी सोच को बदल डालो कि ,हमे तो सदियों से गरीबी का जीवन जीने का वरदान मिला है ।
बेटा खुश था, माँ के चेहरे पर खुशी थी ,पर आँखों से प्रेम की अश्रु धारा बह रही थी वह कुछ कह नहीं पा रही थी, पर उसके अश्रुओं ने बहुत कुछ के दिया था।
इतने मे काम वाली बाई का बेटा बोला आँटी जी आप देखना मैं पड़ लिखकर बहुत बड़ा इन्सान बनूँगा और अपनी बहन को भी पढ़ाऊंगा ,क्यों हम हमेशा गरीबी का जीवन जीयें ,हमारा भी हक़ है अमीर बनने का आगे बढ़ने का , उसके बेटे की बातों में आत्मविश्वास था ,आज दिल बहुत खुश था कि,हमारे समाज में आज भी अनमोल नगीने हैं।
सच में इंसान की मेहनत और आत्मविश्वास ही उसे जीवन मे आगे बढ़ने में सहायता करते हैं ।



"खुला आसमान"

**उपयोगिता और योग्यता**

          *योग्यता ही तो है ,जो
           अदृश्य में ,छुपी उपयोगिता को
           जन्म देती है।*

          * वास्तव में जो उपयोगी है वो शाश्वत है
           उपयोगी  को योग्यता ही तराशती है ।
          जो उपयोगी है, वो सवांरता है, निखरता है
          और समय आने पर अपना अस्तित्व दिखाता है
          योग्यता ही अविष्कारों की दात्री है।

           आवयशकता जब-जब स्वयं को तराशती है
           असम्भव को सम्भव कर देती है
           युगों-युगों तक अपने छाप छोड़ने में सफल होती है
   
       
           गहराइयों का शोध आवयशक है
           वायुमंडल में तरंगे शास्वत हैं।
           उन तरंगों पर शोध, योग्यता से सम्भव हुआ
           योग्यता ने तरंगों के माध्यम से
           वायुमंडल में एक खुला जहाँ बसा दिया ।

         
           वायु,ध्वनि,तरंगों का अद्भुत संयोग
          योग्यता ने तरंगों की रहस्यमयी शक्तियों का भेद बता             दिया ।
          तरंगों के अद्भुत सामंजस्य ने तरंगों से तरंगों  का मेल                 मिला दिया
          आधुनिक समाज की नींव ही तरंगों पर टिकी है
          शब्द हैं भी ,और नहीं भी ,
         तरंगों की नयी दुनियाँ ने सम्पूर्ण समाज मे हलचल सी            मचा दी
         है । तरंगों की तरंगों तक पहुँच ने नामुमकिन को                  मुमकिन  कर दिखाया  है।
                                                                               
        वास्तव में तरंगों ने खुले आसमान में एक दूसरा जहाँ              बसा दिया है।

          

"अनमोल खजाना "


दौड़ रहा था ,मैं दौड़ रहा था
बहुत तेज रफ़्तार थी मेरी ,
आगे सबसे सबसे आगे बहुत आगे
बढ़ने की चाह मे मेरे क़दम थमने का
नाम ही नहीं ले रहे थे ।
यूँ तो बहुत आगे निकल आया था "मैं "
आधुनिकता के सारे साधन थे पास मेरे
दुनियाँ की चकाचौंध में मस्त,व्यस्त ।

आधुनिकता के सभी साधनों से परिपूर्ण
मैं प्रस्सन था ,पर सन्तुष्ट नहीं
जाने मुझे कौन सी कमी अखरती थी ।

एक दिन एक फकीर मुझे मिला
वो फ़कीर फिर भी सन्तुष्ट ,मैं अमीर
फिर भी असन्तुष्ट ।

फ़कीर ने मुझे एक बीज दिया,
मैंने उस बीज की पौध लगायी
दिन -रात पौध को सींचने लगा
अब तो बेल फैल गयी ।
अध्यात्म रूपी अनमोल ,रत्नों की मुझे प्राप्ति हुई
मुझे संतुष्टता का अनमोल खजाना मिला
ये अध्यात्म का बीज ऐसा पनपा कि
संसार की सारी आधुनिकता फीकी पड़ गयी
मैं मालामाल हो गया ,अब और कोई धन मुझे रास
नही आया ,अध्यात्म के रस में जब से मैंने परमानन्द पाया।
वास्तव में अध्यात्म से सन्तुष्टता का अनमोल खज़ाना मैंने  पाया

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...