*दस्तान ऐ जिंदगी*

 💐💐खोजते रहे जिन्दगी भर ,मोहब्बतों के ठिकानों को ,
  ना ठिकाना मिला ना मोहब्बत मिली
   मिली तो बस तड़पते दिल की बेकरारी मिली
   मोहब्बत की चाहत तो मृगतृष्णा हुई ।
    फिर क्या था हमने स्वयं को ही मोहब्बत का
    फ़रिश्ता बना लिया ,मोहब्बत की अखण्ड जोत
    जला डाली ,अब मोहब्बते चिराग है जिससे रोशन
    हमारे जीवन का आफ़ताब है ।*💐💐

*💐सफ़र की शुरआत ही ,बड़ी हसीन थी 
फूलों के आशियाने में ,शूलों की भरमार थी ।
कहने को हम फूलों के संग थे ,पर हमारी 
मुलाकात तो हमेशा शूलों के संग हुयी ।
काँच की दीवारें थी, सच छुपाना मुश्किल था 
पर ना जाने कहाँ से हम में ये हुनर आ गया 
हमें दर्द छुपाकर मुस्कराना आ गया ।
जिन्दगी ने हमारे बहुत इनतिहान लिये 
हमें चलना भी नहीं आता था ,और हमें पथरीली 
राहों पर छोड़ दिया गया चलने के लिये, 
बस यूं ही गिरते सम्भलते हम चलना सीख गये 
जिन्दगी के सफ़र की शुरुआत इतनी आसान होती 
तो हम इस तरह दर्द लिये सरेआम ना होते।
जिस तरह सोना तप कर कुंदन बनता है ।
हम बिखर -बिखर कर निखर गये ।

*****उम्मीद की किरण*****


****उम्मीद ,👍ही तो है, जो मैदान छोड़कर जाते हुए को कहती है
चल एक कोशिश👍 ओर करके देखते हैं,
क्या पता? इस उम्मीद
के साथ शायद☺ इस बार हम जीत जायें ,और वही उम्मीद
हमारी कोशिश की चाबी होती है । जो हमारी किस्मत का
ताला खोलने वाली आखिरी चाबी होती है ।

*****उम्मीदें जिन्दगी की भी खास बात होती है।
हारने वाले के हमेशा साथ होती है ।

जीत की उम्मीद देकर हारते हुए को जीता देती है ,
डूबने वाले को तैरना सिखा देती है
आशा की किरण बनकर संघर्ष करना सिखा देती है ****


*💐💐अंतराल के बाद 💐💐*

💐💐



**** जहाँ दादी और पौतों में प्यार की बात है ,यहाँ यही बात सच है कि,असल से सूद अधिक प्यारा होता है ।
परन्तु इतने सालों का फांसला हो तो......सोच का परिवर्तन आवश्य होता है । यूँ तो दादी अपने पौते से बहुत प्यार करती थी ,परन्तु अपने पौते के मनमौजी स्वभाव से अक्सर नाराज़ रहती थी ।☺
💐क्योंकि दादी चाहती थी ,की जैसा मैं कहती हूँ , मेरा पौता वैसा ही करे ,वो अपने ढंग से अपने पौते को चलाना चाहती थी ।
*परन्तु परिवर्तन प्रकृति का नियम है *
दादी ने घर पर ग्रह शान्ति के लिये पूजा रखवाई थी  ,उनके पौते ने पूजा की सारी तैयारी करके दी ,पर दादी की इच्छा थी कि,उनका पौता पूजा की शुरुआत से लेकर पूजा खत्म होने तक पूजा में ही  बैठे ,  और धोती कुर्ता भी पहने । ....पर दादी भी थोड़ी ज्यादा ही जी जिद्द कर रही थी ,उनके पौते ने कभी धोती नही पहनी थी और न ही वो पहनना चाहता था । उसकी और दादी की ऐसी छोटी -मोटी बहस होती रहती थी  ।
पौता अपनी दादी से कह रहा था दादी कपडों से क्या होता है ,और पूजा -पाठ मन की सुन्दर अवस्था है ,क्या फर्क पड़ता है,भगवान हमारे कपड़ों को थोड़े देख रहा है । हम भगवान को कभी भी किसी भी समय कैसे भी याद कर सकते है ,दादी अपने पौते की बातें सुनकर थोड़ा परेशान हो कह रही थी ,ना जाने तुम कब समझोगे की भगवान की पूजा का क्या विधि विधान है, जरा भी त्रुटि हो जाये ना ,तो हमारे भगवान नाराज हो जाते हैं, पोता बोला .... दादी आपके भगवान बड़े जल्दी नाराज होते है ,क्यो ?
*वैसे तो हम गाते हैं ,तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो*,अब आप बताओ माता पिता अपने बच्चों से इतनी जल्दी नाराज हो जाते है क्या ?,उन्हें तो सिर्फ हमारी सच्ची भवनाएं और श्रद्धा ही चाहिए ..... इतने में पूजा जिन्होंने घर पर पूजा करनी थी वो पंडित जी आ गये ,पंडित समझदार थे।

 ,दादी जी की बातें सुनकर बोले दादी जी कोई फर्क नही पड़ता इन्हें इनके तरीके से चलने दो ,परीवर्तन प्रकृति का नियम है ।  *परिवर्तन चक्र निरन्तर अपनी धुरी पर घूम रहा है।
वक्त पल-पल बढ़ता जा रहा है।
सच है ,कि गुजर हुआ वक्त लौट कर
नहीं आता ।*
*अभी इस वक्त जो पल आपके पास है
कल वो पल नहीं होगा ,होंगे उसके जैसे
अन्य पल होगें ,जीवन का एक-एक पल
मूल्यवान है ,इसे व्यर्थ ना करें ,जीवन के
हर पल को भरपूर जियें ,कुछ ऐसे जियें
की आप खुद भी आनन्द में रहें ,और
आपके कारण दूसरे भी आनन्द मे रहें *
परिवर्तन का सबसे बड़ा उदाहरण है
*दिन और रात ,ऋतु परिवर्तन ,परिवर्तन
भी आवयशक है , आप ही सोचिये अगर
दिन के बाद रात न हो और दिन के बाद रात ना
हो तो कैसा जीवन होगा ।
ऋतु परिवर्तन ,गर्मी ,सर्दी ,
बरसात सभी तो आवयशक है
जीवन  के लिये ।
इसी तरह मनुष्य के विचारों
में भी परिवर्तन होता है।आवयशक नहीं की जो विचार मेरे है
 वही विचार आपके भी हों ।
और पीढ़ी दर पीढ़ी भी विचारों में
परिवर्तन होता है और स्वभाविक ही है।
आव्यशक नही की आपकी आने वाली पीढ़ी के विचार
आपसे मेल खायें, ऐसे में दोनों पीढ़ियों को चाहिये की
आपस में सामंजस्य बनाये ,एक दूसरे की भावनाओं की कदर करें ,स्वीकारें की परिवर्तन प्रकृति का नियम है ,अगर परिवर्तन नहीं होगा तो नीरसता भी आ सकती है ,और परिवर्तन यानि प्रग्रति ......💐💐  बशर्ते परिवर्तन में शुभ संस्कारों, सभ्य आचरण, अच्छे विचारों का हनन ना हो, हमारे हृदयों में परस्पर प्रेम की भावना का दीप सदा प्रज्वल्लित रहे **💐💐💐

💐💐जमाना ख़राब है 💐💐

💐💐कुछ लोग आँखों में पर्दे डाल लेते है ,
और कहते हैं कि ज़माना बड़ा खराब है

💐जमाना तो जैसा था ,और जैसा है वैसा ही रहेगा
...क्या पता ये आपके सोचने का .....
   नजरअंदाज करने का अंदाज हो
    बहाने बाजी की बात हो।👍

   क्योंकि जब पत्थर को तराश कर भी
    भागवान की मूर्ति बना पूजी जा सकती है तो
     तो क्या आप ही जैसे किसी इंसान की
      कमियाँ दूर नहीं की जा सकती ।💐

      खाक कहतो हो जमाना खराब है
       अजी ये तो आपके ही देखने का अंदाज है
        पर्दे के पीछे क्या है ,जमाने को भी
         आभास है ।।💐💐💐💐💐

💐💐 ** माँ एक वटवृक्ष**💐💐

 
***** माँ* वो वटवृक्ष है, जिसकी ठंडी छाँव में हर
           कोई सुकून पाता है ।
           माँ की ममता सरिता की भाँति , जीवन को पवित्रता,
           शीतलता, और निर्मलता देकर निरन्तर आगे बढ़ते
           रहने की प्रेरणा देती रहती है ।
           
            मेरा तो मानना है,माँ एक कल्प वृक्ष है ,जहाँ उसके
            बच्चों को सबकुछ मिलता है ,सब इच्छाएं पूरी होती
            हैं ।
           * कभी-कभी माँ कड़वी नीम भी बन जाती है ,
             और रोगों से बचाती है *
           * माँ *दया का सागर ,*अमृत कलश है*
        **दुनियाँ की भीड़ में ,प्रतिस्पर्धा की दौड़ में
           जब स्वयं को आगे पाता हूँ ।
          ये माँ की ही दुआओं का असर है
          जान जाता हूँ ,मैं।*
          वास्तव में माँ एक विशाल वृक्ष ही तो है ,
          जिस तरह *वृक्ष *मौसम की हर मार को सह कर
          स्वयं -हरा भरा रहता है ,और *मीठे पौष्टिक फल* ही
          देता है, ठीक उसी तरह एक *माँ *भी बहुत कुछ
           सहन करके एक सुसंस्कृत,सभ्य ,समाज की स्थापना               को अपनी *संताने* देती है******
           💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

    

**माँ मैं हूँ ना***

**माँ मैं हूँ ना***
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"मेरे हाथ पर गरम-गरम चाय गिर गयी थी , जिसकी वज़ह से काफ़ी तकलीफ़ थी ,डॉक्टर को दिखा के दवा भी ले ली थी ।

परन्तु एक बात की चिन्ता थी अगले ही दिन हमारे घर पर गुरु जी आने वाले थे , वो अहमदाबाद से आ रहे थे ,मेर हाथ तो जल हुआ था ,हाथ मे छाले थे ,डॉक्टर ने पानी मे डालने से मना किया था और हाथ मे जख्म भी बहुत था , और हमारी कामवाली भी एक हफ्ते छुट्टी पर थी गाँव गयी हुयी थी ,और कोई भी थोड़े दिन के लिए हमारे घर काम करने को तैयार नहीं थी सब बहुत व्यस्त थी ।

मैं यूँ ही चुपचाप अपने कमरे मे बैठी थी चिता थी कल का काम कैसे होगा ।
इतने में मेरा पन्द्रह साल का बेटा आया और बोला माँ क्या हुआ क्या हाथ में बहुत दर्द है ,मैंने सिर हिलाते हुए कहा नहीं बेटा मैंने दवा ले ली है । बेटा बोला तो फिर आराम कर लो , मैने कहा आराम कैसे करूँ बेटा ,कल अहमदाबाद से गुरु जी और उनके चार शिष्य आ रहें हैं ।,उन्हें भोजन करना होगा ,और मेरे हाथ से कुछ होने वाला नहीं है ,बहुत चिन्ता हो रही है बेटा, ।

थोड़ी देर रुक कर मेरा बेटा बोला चिन्ता मत करो ,माँ मैं हूँ ना
माँ बोली तुम क्या कर लोगे बेटा तुम थोड़ी रसोई का काम कर सकते हो, और कल तुम्हारा एग्जाम भी है,तुम मेरी मदद भी नहीं कर सकते । बेटा बोला माँ मैने कहा सब हो जायेगा , मेरी पढ़ाई भी ,
मैं रात को पढ़ लूँगा, सुबह मैं आपकी मदद से सारा खाना बनाऊंगा ,
अगला दिन था बेटा एग्जाम देकर सुबह दस बजे घर लौट आया था ,।मुझ से पूछ-पूछ कर उसने सारा खाना तैयार किया ।
गुरु जी और उनके चार शिष्यों की मेरे बेटे ने अच्छे से सेवा करी ,गुरु जी ने बहुत प्रस्सन होकर विदा ली मुझे और मेरे बेटे को बहुत आशीर्वाद भी दिये ।
जब गुरु जी चले गये तब मेरे बेटे ने कहा चलो माँ अब हम दोनों भी खाना खा लेते हैं ,खाना वाकई में बड़ा स्वादिष्ट बना था ।
जब सब निपट गया तब मेरा बेटा बोला माँ अब बताओ आप खुश हो ना ,मैंने भी उसके सिर पर हाथ गिरते हुए कहा हाँ बेटा हाँ ।
बेटा बोला माँ आज मदर्स डे है , मैने आपको बोला था ना कि मैं हूँ ना ,और माँ आप
हमारे लिए इतना करती हो क्या मैं आपके लिए इतना भी नही कर सकता क्या ?
माँ यूँ तो हम भारतीयों के लिए तो हर रोज मदर्स डे है । पर आज इस मदर्स डे पर आपका बेटा वादा करता है कि ,जब भी आपको मेरी आव्यशकता महसूस होगी मैं आपके पास होऊँगा ।

**मेरा मसीहा ***

*****  मैं जो भी करता हूँ, मेरे फ़रिश्ते के कहे ,अनुसार करता हूँ  क्या लाभ होगा, मैं नहीं सोचता "मैं" वो करता हूँ ,
 जो सबके हित में होता है ।,

 आसमान से कोई फ़रिश्ता आता है,
 जब में गहरी निंद्रा में होता हूँ ,मेरे सिर
 पर प्यार भरा हाथ रखता है ,मेरा माथा
 चूम कर मुझे दुआओं से भर जाता है ।

 जब मैं नींद से जागता हूँ ,तो अपने
 आस-पास किसी को भी नही पाता हूँ।

 पर उस फ़रिश्ते की महक ,
मेरा घर आँगन महका जाती है
मेंरे चेहरे पर बिन बात के मुस्कराहट
आ जाती है ।

मैं चल रहा होता हूँ अकेला ,परन्तु
कोई मेरे साथ चल रहा होता है ।
मैंने उसे देखा तो नहीं पर वो मेरा
मार्गदर्शन कर रहा होता है ,
मुझे अच्छे से अच्छा कार्य करने को
प्रेरित कर रहा होता है ।

मैं भी उसकी ही बात मानता हूँ
कोशिश करता हूँ जो भी करूँ ,
दूसरों की भलाई के लिऐ करूँ
कोई ऐसा काम ना करूँ जिससे दूसरों
को कष्ट पहुँचे ,वो फ़रिश्ता ,मेरा मसीहा ,
मेरी आत्मा में बैठा परमात्मा है ।
जो हर-पल मेरा मार्गदर्शन करता है ।।*****

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...