धर्म और ज्ञान ,



दिव्य आलौकिक शक्ति जो इस सृष्टि को चला रही है , क्योंकि यह तो सत्य इस सृष्टि को चलाने वाली कोई अद्वित्य शक्ति है ,जिसे हम सांसाररिक लोग  अल्लाह ,परमात्मा ,ईसा मसीहा ,वाहे गुरु , भगवान इत्यादि ना जाने कितने नामों से पुकारते हैं , अपने इष्ट को याद करतें है।  उस शक्ति के  आगे हमारा कोई अस्तित्व नहीं तभी तो हम सांसरिक लोग उस दिव्य शक्ति को खुश करने की कोशिश में लगे रहते हैं …और कहतें है , तुम्हीं हो माता ,पिता तुम्हीं हो , तुम्हीं हो बन्धु ,सखा तुम्ही हो । दूसरी तरफ , परमात्मा के नाम पर धर्म की आड़ लेकर आतंक फैलाना बेगुनाहों मासूमों की हत्या करना,विनाश का कारण बनना , ” आतंकवादी “यह बतायें ,कि क्या कभी हमारे माता पिता यह चाहेंगे या कहेंगे, कि  जा बेटा धर्म की आड़ लेकर निर्दोष मासूमों की हत्या कर  आतंक फैला ?  नहीं कभी नहीं ना , कोई माता -पिता यह नहीं चाहता की उनकी औलादें गलत काम करें गलत राह पर चले । धर्म के नाम पर आतंक फ़ैलाने वाले लोगों ,आतंक फैलाकर स्वयं अपने धर्म का अपमान ना करो  । धर्म के नाम पर आतंक फैलाने वालों को शायद अपने धर्म का सही ज्ञान ही नहीं मिला है , कोई भी धर्म हिंसा की शिक्षा नहीं देता , अहिंसा की ही शिक्षा देता है , प्रत्येक धर्म का मूल परस्पर प्रेम ,और भाईचारा ही है , अशिक्षा सही शिक्षा ना मिलना ,भी आतंकवाद का प्रमुख कारण हो सकता है , क्योंकि वास्तविक शिक्षा प्रगति का मार्ग दिखाती है ,  ”सभ्यता की सीढ़ियाँ चढ़ाती है ” “,विश्व कौटूम्बकं की बात सिखाती है ,”आतंक को शिक्षा से जोड़ना पड़ेगा क्योंकि आतंक फ़ैलाने वालों को सही ज्ञान सही मार्गदर्शन की  आवयश्कता है ,क्योंकि..   हिंसा को हिंसा से कुछ समय के लिए दबाया तो जा सकता है पर ख़त्म नहीं किया जा सकता , इसके लिए सही मार्गदर्शन की अति आवयश्कता है।

" दिव्य आलौकिक प्रकाश का उत्सव "

दीपवाली   प्रकाशोत्सव्  ,दीपों  का त्यौहार
भव्य  स्वागत की , तैयारीयाँ .......
परमात्मा के आगमन का हर्षोल्लास ,
वह परमात्मा जो सवयम् ही है ,दिव्य ,अलौकिक प्रकाश .......
चलो इस बार दीपावली कुछ अलग ढंग से मानते हैं ।
घर आँगन  ,की स्वच्छ्ता के संग ,
दिलों के वैर ,को भी मिटाते हैं ।
बिन बात के शिकवे ,शिकायतें सब भूल जातें हैं ।
दिलों में परस्पर प्रेम का दीपक जलाते हैं ,भाईचारा बढाते हैं ,
एकता में अनेकता की जोत जलाते  हैं ।
किसी गरीब के ,घर आँगन को रोशन कर आतें हैं ।
कुछ मिठाइयाँ भूखे बच्चों को खिला आते हैं 
कोई भूख ना रहे ,किसी के घर में भोजन की व्यवस्था कर आते है
 दीपाली त्यौहार है ,सौहार्द का प्रभू के स्वागत का ,
पठाखों के  धुँए से वातावरण को दूषित करने से बचातें हैं । 

"अपनत्व के बीज ,प्रेम प्यार की फसल "


अपनत्व के बीज ,प्रेम प्यार की फसल “

दुनियाँ की भीड़ संग चल रहा था ,
भीड़ अच्छी भी लग रही थी ,
क्योंकि दुनियाँ की भीड़ मुझे हर पल कई नए  पाठ पड़ा रही थी,
किरदार बदल -बदल कर ,दुनियाँ की रफ़्तार संग चलना सिखा रही थी ।
माना की , मैं भी सब जैसा ही था ,
नहीं था ,मुझमे कुछ विशिष्ट ,
यूँ तो चाह थी , मेरी दूनियाँ संग चलूँ , दूनियाँके रंग में रंगूँ ,
फिर भी , मैं दुनियाँ की भीड़ में कुछ अलग दिखूँ
मेरे इस विचार ने मुझमे इंसानियत के दीपक को जला दिया
असभ्यता,  अभद्रता  के काँटों को हटाकर
शुभ और सभ्य विचारों का बगीचा सजा दिया ,
मेरे विचारों की ज़िद्द ने ,मुझे सलीखे से चलना सिखा दिया
जमाने की भीड़ में रहकर , मुझे भीड़ में अलग दिखना सिखा दिया ।
बस अब ,अपनत्व की बीज बोता हूँ ,  नफरत की झाडियाँ काटता हूँ

प्रेम ,प्यार की ,फसल उगाता हूँ।।।।।।।।।।।




"माँ आदि शक्ति "

भारत देश एक ऐसा देश है, जहाँ  दिव्यशक्ति जो इस सृष्टि का रचियता है,विभिन्न अवतारों रूपों में आराधना की जाती है । परमात्मा के विभिन्न अवतारों के कोई ना कोई कारण अवश्य है ,जब -जब  भक्त परमात्मा को पुकारतें हैं ,धरती पर पाप और अत्याचार अत्यधिक हो जाता तब परमात्मा अवतार लेते हैं और धरती को पाप मुक्त करतें है।  हमारे यहाँ जगदम्बा के नवरात्रे की भी बड़ी महिमा है  ,जगह -जगह जय माता दी ,के जयकारे ,माता के जागरण चौकी ,माता की भेंटों से गूंजते मंदिर ........पवित्र वातावरण
सजे धजे मंदिर मातारानी का अद्भुत श्रृंगार लाल चुनरिया लाल चोला, लाल चूड़ियाँ ,निहार माँ के लाल होते है ,निहाल ।
माँ का इतना सूंदर भव्य स्वागत ये हमारा देश भारत ही है ,जहाँ माँ का स्थान सबसे ऊँचा  है ,फिर चाहे वो धरती पर  जन्म देने वाली माँ हो ,या जगत जननी , क्यों न हो वो एक माँ ही तो है ,जो दृश्य या अदृशय रूप से अपनी संतानो का भला  ही करती है ।
कहतें हैं ,धरती पर जब पाप और अत्याचार ने अपनी सीमायें तोड़ दी थी ,साधू सज्जन लोग अत्यचार का शिकार होने लगे  थे,चारों और अधर्म ही अधर्म होने लगता था,तब शक्ति ने  अधर्म का नाश करने के लिए और धर्म की रक्षा के लिए धरती पर अवतार लिया था, पापियों और राक्षसों का अंत किया,और फिर से धर्म  की स्थापना की ,राक्षसों का अंत करने के लिए माँ को कई  रूप धारण करने पढे ,माँ गौरी ,माँ दुर्गा , अम्बे ,माँ काली आदि माँ आदिशक्ति कई नामो जानी जाती है ।
  माँ  अन्नपूंर्णा बन अपनी संतानों का पालन पोषण करती है , तो कभीमाँ  सरस्वती का रूप धारण कर अपनी संतानों में ज्ञान के बीज बोती है, तो वहीँ लक्ष्मी बन जगत को सुख समृद्धि प्रदान करती है।
माँ हमेशा से पूजनीय है , नवरात्रों में देवी की पूजा का विशेष महत्व है , नवरात्रों  में गुजरात में गरबा का विशेष महत्त्व है । कोल्कता में  काली माँ की पूजा ,बंगाली समुदाय द्वारा काली पूजा  बड़े ही पाराम्परिक ढंग से व् श्रद्धा से की जाती है ।
हमें जन्म देने वाली.माँ को भी हमें उतना ही सम्मान देना चाहिए ,क्योंकि धरती पर सर्वप्रथम माँ ने ही हमें समर्थ बनाया ।

"शक्ति के साथ भक्ति भी के रंग भी दिखे मोदी जी में"

 शक्ति के साथ भक्ति भी है मोदी जी में
प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी की यह पहली यात्रा थी ,ऋषिकेश में ।
मोदी जी का ऋषिकेश के आई .डी.पी.एल ग्राउंड में भव्य स्वागत किया गया ।चौबीस घंटे में इतनी तैयारी करना अद्भुत कहा ,मोदी जी ने उसके लिए हृदय से अभिनन्दन किया।
मोदी जी की यह ऋषिकेश यात्रा निजी थी ,वह ऋषिकेश अपने दीक्षा गुरु  दयानंद सरस्वती जी से मिलने पहुँचे,
गुरु जी का स्वास्थ्य कुछ समय से अस्वस्थ चल रहा है ,
नरेंद्र मोदीजी ने ऋषिकेश में विशाल जन सभा को सम्भोदित करते हुए कहा ,की अभी तो बहुत कुछ करना हैः हमारी बेटियाँ पढ़नी चाहियें बेटियाँ पढेगी तभी देश तरक्की करेगा ।  बैंको का राष्ट्रीयकरण किया गया , बैंको के पैसे पर पहला हक़ गरीबों का है , मेरी माँ बहनो का है ।   प्रधानमंत्री जन संघ योजना में  सोलह करोड़ एकाउंट खुले  ।   एक हज़ार दिवस में अठ राह हज़ार  गावों में बिजली देनी है ।
,हमारे जवानो को वन रैंक वन पेंशन जवानों का सम्मान बड़ा रही है ।मोदी जी ने कहा वह देवभूमि के विकास में कोई कसर नहीं छोड़गे ।
मोदी जी ने अपने दीक्षांक गुरु दयानंद सरस्वती को तीन वचन दिए ,
पहला गरीब को छत ,दूसरा युवाओं को रोजगार और हर घर में बिजली ।
सबको मिलकर चलना है, विफलता से ही सफलता का रास्ता होकर निकलता है

जन-जन के प्यारे श्री कृष्ण

कहते है ना जब जब धर्म की हानि होती है पाप और अत्याचार अत्यधिक बढ़ जाता है ,तब -तबध अधर्म का  अंत करने के लिए ,परमात्मा स्वयं धरा पर जनम लेते हैं ।
 हम लोग भाद्रपद में कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन श्री कृष्ण के जन्म दिवस के रूप में ,बड़े धूम धाम से मानते हैं ,जगह -जगह मंदिर सजाये जातें हैं ,श्री कृष्ण की लीलाओं की सूंदर -सूंदर झांकियाँ सजायी जाती हैं ,हम श्री कृष्ण की लीलाओं का स्मरण करते हैं ,प्रेरणा लेते है । आप लोग क्या सोचतें हैं की भगवान धरती पर आये और पापियो को मारा।  ..... ।नहीं भगवान् को भी एक साधारण मानव की तरह इस धरती पर जन्म लेना पड़ता है ,भगवान् राम को भी अपनी जीवन काल में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था ।
चाहते तो कृष्ण धरती पर आते कंस का वध करते और धरती को पाप मुक्त करा देते ,नहीं पर ये इतना आसान नहीं था ,भगवान भी जब धरती पर जन्म लेते हैं ,तो उन्हें भी साधारण मानव की तरह जन्म लेना पड़ता है ,मानव जीवन की कई यातनाएँ उन्हें भी साहनी पड़ती हैं ,कृष्ण का जन्म कारावास में हुआ ,जन्म देने वाली माँ देवकी ,नंदगाँव में माँ यशोदा की ममता की छांव मिली , बारह वर्ष ग्वाले का जीवन बिताया ,माखन चोर ,के नाम से.जाने गए अरे वो तो भगवान थे ,उन्हें माखन चुराने की क्या आव्यशकता थी  । प्रेम वश् गायोँ के ग्वाले गोपियों के गोपाल कहलाये  श्री कृष्ण की लीलाओं में बस इतना फर्क था की उनकी लीलाओं में कोई कपट नहीं था स्वार्थ नहीं था ,उनका प्रत्येक प्राणी.के प्रति समभाव था । चाहते तो  कृष्ण अपने सुदर्शन चक्र से एक ही बार में पापी कंस का वध कर देते ,नहीं पर श्री कृष्ण ने ऐसा नहीं किया,क्योंकि उन्होंने आने वाले समाज को प्रेरणा और सीख दी की धरती पर रहते हुए एक साधारण मानव  भी अपने शुभ कर्मो के आत्मबल  की शक्ति की युक्ति से चाहे जो भी वो कर सकता है ,चाहे तो वह धरती को स्वर्ग बना सकता है ,चाहे नरक ,परमात्मा ने ये धरती मानवों के लिए बनाई है मानव चाहे अपने कर्मो द्वारा धरती को स्वर्ग बना सकता है या .....जैसा चाहे ......श्री कृष्ण जन-जन के प्यारे उनका माखन चुराना भी सबको प्रिय लगता था ,क्योंकि वह निष्कपट थे ,क्योंकि उन्होंने सिर्फ प्रेम का ही सन्देश दिया चाहे वह ग्वालों केरूप में गायों के प्रति था,या फिर गोपियों ,सोलह हज़ार रानियाँ , श्री कृष्ण के सुरक्षा  कवच में सब  सुरक्षित थे ।

"शिक्षक का स्थान सबसे ऊँचा"

आदरणीय, पूजनीय ,
               सर्वप्रथम ,  शिक्षक का स्थान  समाज में सबसे ऊँचा
               शिक्षक समाज का पथ प्रदर्शक ,रीढ़ की हड्डी
               शिक्षक समाज सुधारक ,शिक्षक मानो समाज.की नीव
               शिक्षक भेद भाव से उपर उठकर सबको सामान शिक्षा देता है ।
               शिक्षक की प्रेरक कहानियाँ ,प्रसंग कहावते बन विद्यार्थियों के लिए
               प्रेरणा स्रोत ,अज्ञान का अन्धकार दूर कर ,ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं,
                तब समाज प्रगर्ति की सीढ़ियाँ चढ़ उन्नति के शिखर पर पहुंचता है,
             
              जब प्रकाश की किरणे चहुँ और फैलती हैँ ,
              तब समाज का उद्धार होता है ,
              बिन शिक्षक सब कुछ निर्रथक, भरष्ट ,निर्जीव ,पशु सामान ।
             
              शिक्षक की भूमिका सर्वश्रेष्ठ ,सर्वोत्तम ,
              नव ,नूतन ,नवीन निर्माता सुव्यवस्तिथ, सुसंस्कृत ,समाज संस्थापक,
              बाल्यकाल में मात ,पिता शिक्षक,  शिक्षक बिना सब निरर्थक सब व्यर्थ
           
              शिक्षक नए -नए अंकुरों में शुभ संस्कारों ,शिष्टाचार व् तकनीकी ज्ञान
               की खाद डालकर सुसंस्कृत सभ्य समाज की स्थापना करता है ।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...