''पोशाकों में छिपा व्यक्तित्व ''

                                          आधुनिक मानव का पोशाकों में छिपा व्यक्तित्व ,
कहतें हैं ,मनुष्य के व्यक्तित्व की पहचान उसकी 
पोशाक से होती है।

                     परन्तु आधुनिक मानव की पोशाकों का क्या                   
कहना ,किसी भी मानव का व्यक्तित्व सिमट कर रह गया है ,उसकी  पोशाकों में ,
जितनी आड़ी तिरछी पोशाक उतना ही वह धनवान आधुनिक। 
नैतिकता का कोई नाम नहीं ,अनैतिकता का है बोलबाला। 
आधुनिकता की दौड़ में अंधों की तरह दौड़ रहा है आज का मानव ,
भले बुरे का विवेक नहीं , 
 दुष्कर्मों का कोई खेद नहीं। 

 अभद्रता ,अश्लीलता ,में डूबा आज का समाज 
धिक्कार है धिक्कार है।  प्रसिद्धि पाने का अभद्र तरीका।    मदर टेरिसा ,इन्दिरा ग़ांधी ,इत्यादि ऐसी कई महान हस्तियों का व्यक्तित्व है मिसाल ,की मनुष्य की साधारण पोशाकों में भी बन सकती है ऊँची पहचान। 
 प्रसिद्धि पाने का अभद्र तरीका ,
 कुछ एक ने लोभ में बेची है अपनी लाज। 

भारत माता आज खतरे में ,  
है तेरे दुलारों का ,
मान सम्मान। मनुष्य के कर्मों में हो नैतिकता का अस्तित्व ,
तो साधारण पोशाकों में भी निखरता है व्यक्तित्व।  
                         ''खूबसूरत '' 
जिंदगी इतनी खूबसूरत हो सकती है ,
किसे पता था। 
मैंने प्रेम की जोत जलाई तो सारा जहाँ रोशन हो गया। 
जब नफ़रत के बीज थे ,तब कांटे -ही कांटे थे। 
बाह्य ख़ूबसूरती ही ख़ूबसूरती नज़र आती थी ,
बाह्य ख़ूबसूरती को ख़ूबसूरती समझ कई बार धोखे खाये। 
अब मैं आंतरिक यात्रा पर निकली हूँ ,
अंदर कभी झाँक -कर नहीं देखा था ,
ख़ूबसूरती का आइना मन है ,ज्ञात नहीं था ,
ख़ूबसूरती शुभ विचारोँ की निर्मलता और 
सत्यता का शृंगार 
विचारों की झाँकी चेहरे पर आ जाती है 
चेहरे केआइने  में झलक दिखला जाती है ,
मन के आइने में झलक दिखला जाती है 
अब आन्तरिक सुन्दरता पर ध्यान केन्द्रित किया है ,
प्रेम त्याग ,दया क्षमा ,आदि बन मन के हार श्रृंगार 
बड़ा रहे हैं ,चेहरे का नूर ,
विकारों से दूर , मज़हब मेरा परस्पर  प्रेम से पूर्ण 
अपना लिये हैं अपनत्व के सारे गुण ,
अपनत्व के बीज ,परस्पर प्रेम की खाद ,
ख़ूबसूरती का राज़ , ख़ूबसूरती का राज़।
 
जूनून

जो दिल से निकलती  ,है वही सच्ची कविता होती है ,
दिल में जो आग है ,तूफ़ान है 
कुछ कर गुजरने का जनून है ,ऐसे लोगो को  कहाँ 
सुकून है। 

दिल की हलचल ही तो वरदान है। 
मनुष्य तो यूँ ही बदनाम है। 
नेकी की राह चलना नहीं बहुत आसान है। 
नेकी की राह पर चलने वाले मा ना  की बहुत कम हैँ। 

पर नेकी की राह पर चलने वालों की जिद्द के आगे आसमां भी बुलंद है। 
यही तो जीवन का द्वन्द है ,
लोग क्या कहेंगे की छोड़ो  , दिल में जो  आग है ,
उसे करके छोड़ो।   माना की राहें बहुत तंग हैं ,
रोशनी के घरौंदे  तले  अँधेरा  बहुत है 

जिनके जीवन में उम्मीदों का संग है, 
उन्हें मुश्किलों से लड़ जाना पसंद है।
उम्मीदें ही तो भरती जीवन में नया रंग हैं।
जीवन के केनवास  में सुन्दर  रंग भरना 
भी एक कला है ,
नेकी की राह पर चलकर मंजिल पा जाने 
वाले को मिलता परमानन्द है।  
                                            सत्संग औषधि        
यूँ तो हमारे शहर में कई कथाओं का आयोजन होता रहता है ,कुछ समय पूर्व हमारे घर से कुछ ही दूरी पर भागवत कथा का आयोजन हुआ ,कोई बहुत बड़े संत आ रहे थे , हम एक दो पड़ोसियों ने मिलकर प्रोग्राम बनाया की हम रोज भागवत   सुनने जाएंगे ,हम चार महिलाओं की सहमति हो गयी ,आखिर कथा का दिन आ गया ,हम चारों महिलाएं घर का सारा काम निपटा के अच्छे से तैयार होकर घर से चल दी। हमारी चेहरों की चमक ही अलग थी ,चेहरों के हाव -भाव दिल की ख़ुशी ब्यान कर रहे थे। तभी राह चलते -चलते एक महिला मिल गयी ,बोली क्या बात है इतने अच्छे से तैयार होकर कहाँ जा रही हो, शॉपिंग पर जा रही हो क्या /.... 
कोई सेल लगी है क्या। …?
 इस पर हम चारों महिलाएं मुस्करा दी और बोली हाँ लगी है ,चलो तुम भी चलो ,वह बोली नहीं आज नहीं कल चलूंगी यह सैल कितने दिन चलेगी ,मैंने बोला आठ दिन और हम सब तो आतों दिन जाएंगी ,इस पर वह महिला बोली आठों दिन ज्यादा पैसा आ रहा  क्या। …?
कितनी शॉपिंग करोगी ?  
इस पर मै बोली इस सेल मै पैसा नहीं लगता ,  वह महिला फिर चकित -----
ऐसे कौन सी सेल है ,जहां पैसा नहीं लगता मै भी चलूँगी।       
अगले दिन वह महिला भी तैयार होकर हमारे साथ चल दी ,फिर वह बोली हम जा कहाँ रहे हैं ,मैंने कहा कथा सुनने वह महिला तिरछा सा मुँह बना कर बोली हैं कथा सुनने। .... पहले क्यों नहीं बताया तुम लोग भी न बस। … इस पर मैने उसे समझाया , वहां संतों के मुख से जो सुनने को मिलेगा न वह अनमोल होगा संतों के मुख से दिव्य आलौकिक ज्ञान की जो बरसात होगी ,उसके बाद कुछ पाने की चाह नहीं होगी। 

मनुष्य  यूँ ही रोता रहता है मेरे  पास यह नहीं है वो नहीं है ,सब कुछ तो है। 
भगवत कथा  रस  अमृत वो  अमृत है  जिसे कानो के माध्यम से श्रवण करने के बाद  जो नशा चढ़ता   है न वो ,अनमोल  होता है ,अतुलनीय  होता है ,उसके बाद पूर्ण संतुष्टि मिलती  है सच्चा सत्संग एक  ौषधि है।  
                               '' खुला दरवाजा ''               

आज मैं कई महीनों  बाद अपने दूर के रिश्ते की अम्मा जी  से मिलने गयी।  ना जाने क्यों दिल कह रहा था ,की
ऋतु कभी अपने बड़े -बुजर्गों से भी मिल आया कर। आज कितनी अकेली हैं वो अम्मा ,  कभी वही घर था ,
भरा पूरा , अपने चार बच्चे ,  देवर -देवरानी उनके  बच्चे ,  सारे दिन चहल -पहल  रहती थी ,  ये नहीं की  मन मुटाव नहीं होते  थे , फिर भी दिलों मे मैल नहीं था।  दिल लगा  रहता था  मस्त।
मुझे याद है , जब  उनके बडे बेटे की शादी  हुई थी , बहुत खुश थी  अम्मा  की बहू आएगी  ,चारों तरफ  खुशियाँ होगी ,पोते -पोतियों  को खिलाऊँगी  ,कुछ महीने तो सब ख़ुशी -ख़ुशी  चलता रहा , परन्तु अचानक एक दिन
बेटे की नौकरी का तबादला हो गया , वह तबादला ट लने वाला नहीं था ,बस क्या था बहू बे टा दूसरे शहर बस गए।
एक एक करके चारों बेटों की शादियाँ  हो गयी।   सब कुछ ठीक से चलता रहा ,परन्तु  आज वो सयुंक्त  परिवार में रहने वाली अम्मा  जिसके सवयं के चार बेटे -बहुएँ  पोते -पोतियाँ  हैं ,सब अपने अलग -अलग मकानों में अलग जिंदगियाँ बिता रहें हैं।  
बूढ़ी अम्मा के घर का दरवाजा यूँ ही बंद रहता है।  कोई कुंडा या ताला नहीं लगाती हैं अम्मा जी , बस यूँ ही बंद रहता है , मैंने दरवाजा खोला और बोला , अम्मा कुंडा तो लगा लिया करो कोई चोर आ गया तो ,अम्मा  अपने दिल के दर्द को छुपाते हुए बोली ,और कैसी है तू ठीक है ,मीठी सी मुस्कान लिए मैंने भी सि र हिल दिया।
मैंने कहा अम्मा रात को भी कुंडा नहीं लगाती हो क्या ,अम्मा बोली कोई क्या चोरी कर के  ले जाएगा  अब कुछ

नहीं है मेरे पास  अपने  आँसूओं को दबाते हुए बोली ,…। मुझसे नहीं रह  गया  मैंने प्यार से अम्मा को गले लगा लिया ,अम्मा अपने आँसूओं में अपनी जैसे कई अम्मॉँ के  दिल का दर्द ब्यान कर गयी। ……
' हर -हर गंगे '
मै हूँ ,भारत की पहचान ,
भारतवासियों का अभिमान ,मा गंगा कहकर करतें हैं 
सब मेरा सम्मान ,
सबके पाप पुण्य मुझे ही अर्पण ,मै हूँ निर्मलता का दर्पण ,
हिमालय की गोद से निकली ,गंगोत्री है मेरा धाम ,
शिव की जटाओं से नियन्त्रित ,प्रचण्ड वेग ,पवित्रतम गंग धारा। 
सूर्य के तेज से ओजस्वी ,चन्द्रमा की शीतलता लिए ,चांदी सी ,
चमकती ,पतित पावनी पापों को धोती ,गतिशीलता  ही मेरी पहचान  
भक्तों की हूँ ,मई आन बान और शान ,
गंगा जल से पूर्ण होते हैं सब काम ,
भगीरथी सुरसरि गंगे मैया इत्यादि हैं मेरे कई नाम ,  
भक्त गंगे मैया गंगे मैया ,कहकर करते हैं जीवन नैया पार 
युगों युगों से करती आई, भक्तों के जीवन का उद्धार 
अपने भक्तों के पाप पुण्य सब मुझे हैं स्वीकार।
''  मेहनती हाथ  ''
मेहनत मेरी पहचान ,मैं  मजदूर मजे से दूर। 
धनाभाव के कारण  थोड़ा मजबूर ,
मैले कुचैले वस्त्र मिट्टी से सने हाथ। 
तन पर हज़ारों घात कंकाल सा  तन 

मै मज़दूर कभी थकता नही , क्या कहूँ थक के चूर -चूर 
भी हो जाऊं पर कहता नहीं। 

क्योंकि में हूँ मजबूर  मज़दूर------
मेरे पसीने की बूँदों से सिंचित बड़ी -बड़ी आलीशान ईमारतें 
देख -देख सवयं पर नाज़ करता हुँ। 
और अपनी टूटी -फूटी झोपड़ियों मे खुश रहता हूँ। 

यूं तो रहते हैं सब हमसे दूर ,
पर बड़े -बड़े सेठ हम से काम करवाने को मज़बूर 
मजदूरों के बिना रह जाते हैं बड़े -बड़े आलिशान इमारतों के सपने अधूरे -----
में मजदूर सबके बड़े काम का ,फिर भी त्रिस्कृत 
नहीं मिलता अधिकार मुझे मेरे हक का ,
में मजदूर बड़े काम का । 


आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...