सत्संग औषधि        
यूँ तो हमारे शहर में कई कथाओं का आयोजन होता रहता है ,कुछ समय पूर्व हमारे घर से कुछ ही दूरी पर भागवत कथा का आयोजन हुआ ,कोई बहुत बड़े संत आ रहे थे , हम एक दो पड़ोसियों ने मिलकर प्रोग्राम बनाया की हम रोज भागवत   सुनने जाएंगे ,हम चार महिलाओं की सहमति हो गयी ,आखिर कथा का दिन आ गया ,हम चारों महिलाएं घर का सारा काम निपटा के अच्छे से तैयार होकर घर से चल दी। हमारी चेहरों की चमक ही अलग थी ,चेहरों के हाव -भाव दिल की ख़ुशी ब्यान कर रहे थे। तभी राह चलते -चलते एक महिला मिल गयी ,बोली क्या बात है इतने अच्छे से तैयार होकर कहाँ जा रही हो, शॉपिंग पर जा रही हो क्या /.... 
कोई सेल लगी है क्या। …?
 इस पर हम चारों महिलाएं मुस्करा दी और बोली हाँ लगी है ,चलो तुम भी चलो ,वह बोली नहीं आज नहीं कल चलूंगी यह सैल कितने दिन चलेगी ,मैंने बोला आठ दिन और हम सब तो आतों दिन जाएंगी ,इस पर वह महिला बोली आठों दिन ज्यादा पैसा आ रहा  क्या। …?
कितनी शॉपिंग करोगी ?  
इस पर मै बोली इस सेल मै पैसा नहीं लगता ,  वह महिला फिर चकित -----
ऐसे कौन सी सेल है ,जहां पैसा नहीं लगता मै भी चलूँगी।       
अगले दिन वह महिला भी तैयार होकर हमारे साथ चल दी ,फिर वह बोली हम जा कहाँ रहे हैं ,मैंने कहा कथा सुनने वह महिला तिरछा सा मुँह बना कर बोली हैं कथा सुनने। .... पहले क्यों नहीं बताया तुम लोग भी न बस। … इस पर मैने उसे समझाया , वहां संतों के मुख से जो सुनने को मिलेगा न वह अनमोल होगा संतों के मुख से दिव्य आलौकिक ज्ञान की जो बरसात होगी ,उसके बाद कुछ पाने की चाह नहीं होगी। 

मनुष्य  यूँ ही रोता रहता है मेरे  पास यह नहीं है वो नहीं है ,सब कुछ तो है। 
भगवत कथा  रस  अमृत वो  अमृत है  जिसे कानो के माध्यम से श्रवण करने के बाद  जो नशा चढ़ता   है न वो ,अनमोल  होता है ,अतुलनीय  होता है ,उसके बाद पूर्ण संतुष्टि मिलती  है सच्चा सत्संग एक  ौषधि है।  
                               '' खुला दरवाजा ''               

आज मैं कई महीनों  बाद अपने दूर के रिश्ते की अम्मा जी  से मिलने गयी।  ना जाने क्यों दिल कह रहा था ,की
ऋतु कभी अपने बड़े -बुजर्गों से भी मिल आया कर। आज कितनी अकेली हैं वो अम्मा ,  कभी वही घर था ,
भरा पूरा , अपने चार बच्चे ,  देवर -देवरानी उनके  बच्चे ,  सारे दिन चहल -पहल  रहती थी ,  ये नहीं की  मन मुटाव नहीं होते  थे , फिर भी दिलों मे मैल नहीं था।  दिल लगा  रहता था  मस्त।
मुझे याद है , जब  उनके बडे बेटे की शादी  हुई थी , बहुत खुश थी  अम्मा  की बहू आएगी  ,चारों तरफ  खुशियाँ होगी ,पोते -पोतियों  को खिलाऊँगी  ,कुछ महीने तो सब ख़ुशी -ख़ुशी  चलता रहा , परन्तु अचानक एक दिन
बेटे की नौकरी का तबादला हो गया , वह तबादला ट लने वाला नहीं था ,बस क्या था बहू बे टा दूसरे शहर बस गए।
एक एक करके चारों बेटों की शादियाँ  हो गयी।   सब कुछ ठीक से चलता रहा ,परन्तु  आज वो सयुंक्त  परिवार में रहने वाली अम्मा  जिसके सवयं के चार बेटे -बहुएँ  पोते -पोतियाँ  हैं ,सब अपने अलग -अलग मकानों में अलग जिंदगियाँ बिता रहें हैं।  
बूढ़ी अम्मा के घर का दरवाजा यूँ ही बंद रहता है।  कोई कुंडा या ताला नहीं लगाती हैं अम्मा जी , बस यूँ ही बंद रहता है , मैंने दरवाजा खोला और बोला , अम्मा कुंडा तो लगा लिया करो कोई चोर आ गया तो ,अम्मा  अपने दिल के दर्द को छुपाते हुए बोली ,और कैसी है तू ठीक है ,मीठी सी मुस्कान लिए मैंने भी सि र हिल दिया।
मैंने कहा अम्मा रात को भी कुंडा नहीं लगाती हो क्या ,अम्मा बोली कोई क्या चोरी कर के  ले जाएगा  अब कुछ

नहीं है मेरे पास  अपने  आँसूओं को दबाते हुए बोली ,…। मुझसे नहीं रह  गया  मैंने प्यार से अम्मा को गले लगा लिया ,अम्मा अपने आँसूओं में अपनी जैसे कई अम्मॉँ के  दिल का दर्द ब्यान कर गयी। ……
' हर -हर गंगे '
मै हूँ ,भारत की पहचान ,
भारतवासियों का अभिमान ,मा गंगा कहकर करतें हैं 
सब मेरा सम्मान ,
सबके पाप पुण्य मुझे ही अर्पण ,मै हूँ निर्मलता का दर्पण ,
हिमालय की गोद से निकली ,गंगोत्री है मेरा धाम ,
शिव की जटाओं से नियन्त्रित ,प्रचण्ड वेग ,पवित्रतम गंग धारा। 
सूर्य के तेज से ओजस्वी ,चन्द्रमा की शीतलता लिए ,चांदी सी ,
चमकती ,पतित पावनी पापों को धोती ,गतिशीलता  ही मेरी पहचान  
भक्तों की हूँ ,मई आन बान और शान ,
गंगा जल से पूर्ण होते हैं सब काम ,
भगीरथी सुरसरि गंगे मैया इत्यादि हैं मेरे कई नाम ,  
भक्त गंगे मैया गंगे मैया ,कहकर करते हैं जीवन नैया पार 
युगों युगों से करती आई, भक्तों के जीवन का उद्धार 
अपने भक्तों के पाप पुण्य सब मुझे हैं स्वीकार।
''  मेहनती हाथ  ''
मेहनत मेरी पहचान ,मैं  मजदूर मजे से दूर। 
धनाभाव के कारण  थोड़ा मजबूर ,
मैले कुचैले वस्त्र मिट्टी से सने हाथ। 
तन पर हज़ारों घात कंकाल सा  तन 

मै मज़दूर कभी थकता नही , क्या कहूँ थक के चूर -चूर 
भी हो जाऊं पर कहता नहीं। 

क्योंकि में हूँ मजबूर  मज़दूर------
मेरे पसीने की बूँदों से सिंचित बड़ी -बड़ी आलीशान ईमारतें 
देख -देख सवयं पर नाज़ करता हुँ। 
और अपनी टूटी -फूटी झोपड़ियों मे खुश रहता हूँ। 

यूं तो रहते हैं सब हमसे दूर ,
पर बड़े -बड़े सेठ हम से काम करवाने को मज़बूर 
मजदूरों के बिना रह जाते हैं बड़े -बड़े आलिशान इमारतों के सपने अधूरे -----
में मजदूर सबके बड़े काम का ,फिर भी त्रिस्कृत 
नहीं मिलता अधिकार मुझे मेरे हक का ,
में मजदूर बड़े काम का । 


                                           ''   दर्पण ''

         शायद मेरा दर्पण मैला है ,यह समझ ,
मै उसको बार -बार साफ़ करता। 
दाग दर्पण में नहीं , मुझमे है, मुझे यकीन नहीं था। 
  
परन्तु एक मसीहा जो हमेशा मेरे साथ चलता है ,
मुझे अच्छे बुरे का विवेक कराता है ,मेरा मार्गदर्शक है ,
मुझे गुमराह होने से बचाता है। 
पर मै मनुष्य अपनी नादानियों से भटक जाता हूँ ,
स्वयं को समझदार समझ ठोकरें पर ठोकरें खाता  हूँ। 
दुनियाँ की रंगीनियों में स्वयं को इस क़दर रंग लेता हूँ ,
कि अभद्र हो जाता हूँ ,  फिर दर्पण देख पछताता हूँ। 
   
रोता हूँ ,और फिर लौटकर मसीहा के पास जाता हूँ '
उस मसीहा परम पिता के आगे शीश झुकता हूँ ,
उस पर भी अपनी नादानियों के इल्जाम मसीहा पर लगता हूँ। 
वह मसीहा हम सब को माफ़ करता है ,
वह मसीहा हम सब की आत्मा में बैठा परम पिता परमात्मा है।
देने के सिवा मुझे  कुछ आता नहीं !!!!!
                                                              एक दिन मैंने पुष्प से पुछा
                                                         आकाश की छत  मिटटी की गोद ,
                                                       क्या कारण  है जो काटों के  बीच भी,
                                                             बगीचो की शोभा बढ़ाते  हो ,
                                                   दुनिया को रंग-बिरंगा खूब सूरत बनाते हो
                                                                  मुस्कुराहटें  फैलाते हो।

                                                           उदास चेहरों पर हँसी  ले आते हो
                                                           इत्र बनकर हवा में समा  जाते हो
                                             अपने इस छोटे से जीवन में जीने का अर्थ बता जाते हो
                                                               ख़ुशी का सबब बन जाते हो।
                                                        

                                                          पुष्प ने कहा मेरा स्वाभाव ही ऐसा है ,
                                                       मुस्कुराने के सिवा मुझे कुछ आता नहीं,
                                                           देने के  सिवा मुझे कुछ भाता नहीं ,
                                                             माना   की जीवन संघर्ष है मेरा,
                                                                    छोटा सा जीवन है मेरा
                                                                     मुझे आपार हर्ष है, कि ,
                                                                नहीं जाता जीवन व्यर्थ है मेरा
                                                        ख़ुशी हो या गम , हर जगह उपयोग होता है,
                                                                                  मेरा  ।।। 

                  "क्योंकि वह दूर की सोचते थे"
                                          { -   कहते है न देर आये दुरुस्त आये  -३ }
      सीधा,सरल और सच्चा रास्ता थोडा लम्बा और कठिनाइयों भरा अवश्य हो सकता है,परन्तु इसके बाद जो सफलता मिलती है,वह चिर स्थाई होती है।यह विषय मेरा पसंदीदा विषय है।
       माना कि,आज के युग मैं सीधे -सरल लोगो को दुनियाँ मूर्ख समझती है,या यूं कहिए कि ऐसे लोग ज्यादा बुधिमान लोगो कि श्रेणी मैं नहीं आते।  परन्तु वास्तव मैं वे साधारण लोगो कि तुलना में अधिक बुद्धिमान  होते है क्योंकि वह दूर कि सोचते है।  भारतीय पौराणिक इतिहास मैं सच्ची घटनाओ  पर आधारित कई ऐसे महाकाव्य है,उन महाकाव्य में महान व्यक्तियो जीवन चरित्र किसी भी विकट परिस्थिति  मैं सत्य और धर्म कि  राह  को न छोड़ने वाले जीवन चरित्र अदभुद अतुलनीय अमिट छाप छोड़ते है।
       रामायण ,महाभारत उन्ही महाकाव्यों में से एक हैं। यह सिर्फ महाकाव्य ही नहीं परन्तु आदर्श जीवन कि अनमोल सम्पदाएँ हैं।
     
       मर्यादा पुरोषत्तम ''श्री राम '' प्राण जाए पर वचन न जाए
क्या रावण जैसे महादैत्य को मारने वाले श्री राम कभी कमजोर हो सकते हैं। राम जी चाहते तो चौदह वर्ष के लिए वनवास जाने के लिए इंकार कर सकते थे। परन्तु वो तो थे मर्यादा पुरोषत्तम श्री राम ' अनेको कठिनाइयों का सामना करने क बाद जीत तो सत्य और धर्म की ही हुई, अधर्म   रुपी रावण मारा गया।
दूसरा महा काव्य "महाभारत" जो आज के  युग में जन -जन  के  जीवन का यथार्थ बन चूकाहै। धर्म और अधर्म की जंग में "श्री कृष्णा " - अर्जुन के सारथी  बने  , द्रोपदी की लाज  बचाई , और अंत में जीत धर्म की हुई।
आज की पीढ़ी का मनोबल बोहोत कमज़ोर है जिसके कारण वह धर्म से भटक जाती  है।  उन्हें आव्यशकता है संयम  की , संयम  जो हमें श्री कृष्ण  , श्री राम , ध्रुव , प्रह्लाद आदि महान चरित्रों के जीवन चरित्रों को बार-बार चरित्रार्थ करने से मिलेगा।  जब धरती पर अधर्म बड़ जाता है धर्म की हानि होती है मनुष्य  में दिव्य  शक्तियों का ह्रास होता है तब धर्म रुपी दिव्य शक्तियाँ धरती पर  अवतरित होती  है।

       सत्य और धर्म की राहें चाहें कितनी भी बाधाओं से भरी हों परन्तु अंत में जीत सत्य और धर्म की ही होती है।  वह जीत चिरस्थाई  होती है।  

        आज का मानव वर्तमान में जीता है।  प्रतिस्पर्द्धा  की दौड़  में दौड़े जा रहा है।  कल क्या होगा किसने देखा।  दूर की सोचना तो आज मानव भूल ही गया है।  उसमे  दूर दर्शिता का रास होता जा रहा है।  

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...